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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

आखिर कोई कैसे खुद ही अपनी चिता को आग लगाये

पलायन 
किस किस से करें 
और कैसे
रिश्तों से पलायन
संभव है
समाज से पलायन 
संभव है
मगर खुद से पलायन
एक प्रश्नचिन्ह है
एक ऐसा प्रश्नचिन्ह
जिसका जवाब भी
अपने अन्तस मे ही
सिमटा होता है
मगर हम उसे
खोजना नही चाहते
उन्हे अबूझा ही
रहने देना चाहते हैं
और अपनी पलायनता का
ठीकरा दूसरों पर
फ़ोडना चाहते हैं
जबकि सारे जहाँ से
पलायन संभव है
मगर खुद से नही
फिर भी उम्र की 
एक सीमा तक
हम खुद से भी
नज़र बचाते फ़िरते हैं
इस आस मे 
शायद ये मेरा 
कोरा भ्रम है
मगर सच से कोई
कब तक नज़रे चुरायेगा
कभी तो मन का 
घडा भर ही जायेगा
और खुद को धिक्कारेगा
वो वक्त आने से पहले
आखिर कोई कैसे 
खुद ही अपनी चिता को आग लगाये

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

चाहतें तो तुम्हारे मन में भी भांवरे डालती हैं .......






कान्हा 
चलो आज तुमसे कुछ बतिया लूं
कुछ तुम्हारा हाल जान लूं
सुना है तुम निर्लेप रहते हो
कुछ नहीं करते 
सुना है जब महाप्रलय होती है
तुम गहरी नींद में सो जाते हो
और हजारों वर्ष गहरी नींद में 
सोने के बाद योगमाया जगाती है
और फिर तुम्हें अपने अकेलेपन का भास होता है
और सृष्टि निर्माण का संकल्प मन में उठता है
मगर मैंने तो सुना था
तुम्हारे तो मन ही नहीं होता
फिर संकल्प कैसा और क्यों?
सारे उपद्रव तो मन ही मचाता है ना
तो फिर कैसे तुम्हें अपने अकेलेपन से 
निज़ात पाने की चाह होती है
जबकि तुम्हारे तो मन ही नहीं होता


अच्छा बताओ ज़रा
जब तुम्हारी 
एक से अनेक होने की
इच्छा होती है तो 
बिना मन के तो इच्छा 
नहीं हो सकती ना
फिर कैसे कहते हो 
मन नहीं है तुम्हारे पास?
बहुत चालाक हो तुम छलिये 
बहुत अच्छे से छलना जानते हो
और हमें मूर्ख बनाते हो
छलिये ........आज जानी हूँ तुम्हें
पहचाना है तस्वीर का दूसरा रुख
सच में दूसरा पक्ष हमेशा काला ही होता है
और तुम.........तुम तो दोनों तरफ से काले हो
देखो यूँ नाराज मत हो ............
कहने का अधिकार तो दोनों पक्षों को होता है
और आज मेरी बारी है ............
क्यूँ तुम जब नचाते हो हमें
तो हम कुछ नहीं कर पाते ना
नहीं कह पाते तुम्हें कुछ भी
सिवाय सिर झुकाकर  तुम्हारी बात मानने के
और कोई चारा कभी छोड़ा है तुमने हमारे लिए
मगर आज तो तुम्हारी कारगुजारी
मेरी नज़रों से गुजरी है
आज जाना है मैंने तुम्हारा असली चेहरा
ये सब एक भरम फैलाया है तुमने
एक जाल बिछाया है और दाना डालते हो
देखें कौन सी मछली चुगती है 
और तुम्हारे बिछाए जाल में फंसती है
और फिर तड़पती है ..........तुमसे मिलने को
तुम्हें देखने को .......तुम्हें पाने को
उसकी चाहत का अच्छा सिला देते हो
उम्र भर का रोग लगा देते हो
और दिल के रोग की तो दवा भी कोई नहीं होती 
और फिर खेलते हो खेल ......लुकाछिपी का 
तो बताओ तो ज़रा रंगीले ............
क्या बिना मन के ये सब संभव है ?
मन तो है तुम्हारे भी ..........बस मानते नहीं हो
वर्चस्व टूटने का खतरा नहीं उठाना चाहते ना




वैसे बताना ज़रा 
कैसे रह लेते हो अकेले ?
कहीं कुछ नहीं ..........सिर्फ अपने साथ
मुश्किल होता होगा ना जीना
शायद तभी बनाते हो सृष्टि
और फिर लगा देते हो माया का चक्कर
और इंसान की विवशता से खेलते हो
हाँ सही कह रही हूँ .......खेलते ही तो हो
क्यूँकि है एक मन तुम्हारे पास भी
तभी करते हो तुम भी अपने मन की
जन्म मृत्यु के चक्कर में फँसा कर 
रचते हो एक चक्रव्यूह 
और मानव तुम्हारे हाथ की कठपुतली
जैसा चाहे नाचते हो .........
कभी गीता में उपदेश देते हो 
मन पर लगाम लगाओ 
और सब प्रभु समर्पण करते जाओ 
साथ ही कहते हो 
एक मेरे अंश से ही सारा संसार उपजा है
मेरा ही रूप सब में भास रहा है
तो बताना ज़रा 
क्या तुम लगा पाए 
अपने मन पर लगाम ?
कहो फिर क्यों रच दिया संसार ?
खुद से खेलना या कहो 
अपनी परछाईं से खेलना 
और खुश होना कितना जायज है
खेल के लिए दो तो होने चाहियें
मज़ा तो उसी में होता है 
और तुमने बना दिए 
स्त्री और पुरुष ...........है ना
दो रूप अपने ही 
दोनों को साथ रहने का 
गृहस्थ धर्म निभाने का 
एक तरफ उपदेश देते हो
तो दूजी तरफ 
मोह माया से दूर रहने का
सब कुछ त्यागने का सन्देश देते हो
ज़रा बताना तो सही
कैसे एक ही वक्त में 
इन्सान दो काम करे 
क्या तुम कर सकते हो
ये तुम ही तो इस रूप में होते हो ना
बताओ तो ज़रा क्या फिर कैसे 
खुद से पृथक रह सकते हो
जब तुम खुद से जुदा नहीं हो 
हर रूप में तुम ही भास रहे हो
सिर्फ बुद्धि विवेक की लाठी
 हाथ में पकड़ाकर
नर नारी बनाकर 
कौन सा विशेष कार्य किया
सब तुम्हारा ही तो किया धरा है 
राधा मीरा शबरी के प्रेम का पाठ पढ़ाते हो
कभी भक्तों की दीन हीन दशा दर्शाते हो
क्यों श्याम ये भ्रम फैलाते हो 
जबकि हर रूप में खुद ही भासते हो
या फिर जीने दो इंसानों को भी इन्सान बनकर
खुद की तरह .........जैसे तुम जी रहे हो
अकेले अपने मन के मुताबिक 
करते हो ना मन की इच्छा पूर्ण
सिर्फ अपने मन की ...........
तभी तो इन रूपों में आते हो
प्रेम का ओढना ओढ़ 
सबको नाच नाचते हो
फिर अदृश्य हो जाते हो
क्या है ये सब ?
खुद में खुद का ही विलास 
या करते हो तुम मानव बनाकार
उनका उपहास 
अरे मान भी लो अब 
तुम बेशक ईश्वर हो 
मगर तुम भी मन के हाथों मजबूर हो 
जब तुम मन के हाथों मजबूर हो 
नयी सृष्टि रचाते हो
तो फिर मानव को क्यूँ उपदेशों से भरमाते हो
क्यों नहीं जीने देते 
क्यों उसे दो नाव की सवारी करवाते हो 
जानती हूँ
तुम ही उसमे होते हो.....मैंने ही कहा है अभी
क्योंकि तुमने ही तो कहा है गीता में
धर्म ग्रंथों में ...........हर रूप तुम्हारा है
कण कण में वास तुम्हारा है
वो ही मैं कह रही हूँ ............
फिर बताओ तो सही 
कौन किससे जुदा है
और कौन किसके मन की कर रहा है
तुम और तुम्हारा मन ..........हा हा हा कान्हा 
मान लो आज .............है तुम्हें भी मन 
और किसके कहने पर
सिर्फ तुम्हारे मन के कहने पर 
तुमने अपने संकल्प को रूप दिया 
तो बताओ तो ज़रा .............
तुम भी तो मन के हाथों मजबूर होते हो
फिर कैसे ये उपदेश जगत को देते हो



नहीं कान्हा .........तुम्हारी भी 
कथनी और करनी में बहुत फर्क है 
ये तो मानव बुद्धि है 
जो तुम्हारे ही वश में है
जैसे चाहे यन्त्रारूढ चलाते हो 
और व्यर्थ के जाल में सबको फंसाते हो
जबकि सत्य यही है
तुम भी अकेले हो .......नितांत अकेले
और अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए
अपने मन को बहलाने के लिए
तुम दुनिया बनाते हो ............और उसमे खुद ही भासते हो 
खुद को भी उपदेश देते हो 
खुद से ही  खुद को पुजवाते हो 
पर खुद को ही ना जान पाते हो

धर्म ग्रंथों में क्या लिखा है किसने लिखा 
उसका किसने क्या अर्थ निकाला 
सब जाना ..........और तुमने क्या कहा वो भी
तुमने ही तो कहा है .............
श्री मद भागवद मेरा वांगमय स्वरुप है
तो कहो अब .........क्या तुम्हारी वाणी झूठी है
अंततः तो यही निष्कर्ष निकला ना 
बिना मन के इच्छा का जन्म नहीं होता
और बिना इच्छा के सृष्टि का निर्माण नहीं होता
फिर कहो प्यारे ...........और मान लो 
मन की कालरात्रि के चक्रव्यूह में तुम भी फंसते हो 
तुम कर्तुम अकर्तुम अन्यथा कर्तुम 
ये सन्देश गलत ही देते हो 
चाहतें तो तुम्हारे मन में भी भांवरे डालती हैं .......
बस इतना नहीं समझ पाते हो 
तुम इतना नहीं समझ पाते हो .............
अगर हो कोई जवाब तो देना जरूर
इंतज़ार करूंगी मोहन उर्फ़ ब्रह्म उर्फ़ निराकार ज्योतिर्पुंज ............



सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

मोहब्बत के रोजे हर किसी का नसीब नहीं होते ...........




जानती हूँ जीना चाहते हो तुम 
एक मुकद्दस ज़िन्दगी 
ख्वाबों की ज़िन्दगी 
हकीकत के धरातल पर 
सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे संग ………है ना
लिखना चाहते हो सारी कायनात पर 
मोहब्बत का फ़लसफ़ा 
अपने और मेरे नाम के साथ 
हर कण मे समेट देना चाहते हो 
अपनी मोहब्बत को 
जहाँ तक सृष्टि है और जहाँ तक दृष्टि है 
वहाँ तक हर अक्स पर उकेरना चाहते हो
एक तस्वीर , एक नाम , एक शहर मोहब्बत का
जिसकी हवा भी मोहब्बत की खुशबू से महकती हो
सांसों संग रूह में उतरती हो
जर्रे जर्रे पर एक ही नाम अंकित हो
खुदा गवाह हो उस मोहब्बत का 
जहाँ कदम दर कदम 
एक दुआ मोहब्बत की 
उसकी दरगाह पर कलमे पढ़ती हो 
फिर चाहे बहती नदी हो या 
चलता बादल या रूकती जमीं 
या फिर बदलती रुत 
हर स्पंदन में सिर्फ और सिर्फ
मोहब्बत की आवाज़ गूंजती हो
हमारे नाम के साथ.........
है ना .........यही चाहते हो ना तुम
नहीं चाहते कुछ भी आधा अधूरा
सब पूरा चाहिए तुम्हें ............
मोहब्बत आधी अधूरी कब रही है 
जब भी सुनो तुम चिड़ियों की चहचाहट 
जब भी देखो तुम उन्हें छत पर 
चुग्गा चुगते हुए 
जब भी सुनो तुम मौन स्पंदन
समझना मोहब्बत ने दस्तक दी है
मौन भी तो बोलता है 
और हम तो हमेशा मौन में ही बतियाते रहे 
शब्दों से परे रहे हमारे अस्तित्व 
तभी तो कायनात के जर्रे जर्रे पर
अंकित करने की है तुम्हारी हसरत 
हमारी मोहब्बत को चाहते हो बनाना
सारी कायनात की सबसे सुन्दर प्रेम कहानी 
सब जानती हूँ ...............
मगर शायद तुम ये नहीं जानते 
ख्वाबों के गलियारों में मोहब्बत 
सुकून नहीं पाती 
अधूरेपन में ही पूर्ण होती है मोहब्बत की जिंदगानी
शायद तभी दूरियों में भी नजदीकियां भासती हैं 
और मोहब्बत लिख देती है एक इबारत .........जुदाई की 
मोहब्बत के रोजे हर किसी का नसीब नहीं होते .................है ना सनम !!!!!!!

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

अब आते हैं मुद्दे पर ............आप सबके जूते मेरे सिर पर


दोस्तों
जब ये निम्नलिखित सूचना पढ़ी सूत्रधार जी के ब्लॉग पर और वहाँ  टिप्पणियां पढ़ीं तो हमारा दिमाग तो खिसक ही गया पूरी तरह से ..........अब देखिये कहाँ जाकर रुकता है कह नहीं सकते..........किस किस की खाल खींचता है और किस किस को सुकून पहुँचाता है कह नहीं सकते .........तो भाई लोगों ये तो थी हमारी वहाँ टिप्पणी...............



लो जी अभी तो उदघोषणा हुई है और हाहाकार शुरु हो गया…………जय हो जय हो जय हो ब्लोगवुड तेरी जय हो…………तेरी महिमा न्यारी है ………अब मन मे कुछ आ गया है जो कविता मे ढलेगा और पक्का है उसके बाद सारे जूते हमारे ही सिर पर होंगे …………लेकिन हम भी कम थोडे हैं कहे बिना तो नही रहेंगे…………उन लोगों की तरफ़ से जिनका जिक्र करके भी नही किया आपने ………………हो जाओ तैयार होशियार खबरदार 






ये कमेन्ट मैं वहां दो बार लगा चुकी और दोनों ही बाद नदारद है .....क्या मैंने कुछ गलत कह दिया ?....और बाद में कमेन्ट करने वालों के दिख रहे हैं .........पता नहीं क्या चक्कर है .........अब तो हम लिखे बिना और पोस्ट किये बिना नहीं रह सकते 


और ये था आलेख 



शुक्रवार, 17 फरवरी 2012


दुखद ...


मैं सूत्रधार ... क्यूँ दुखी हूँ ? हमेशा से यही होता रहा है . ब्‍लॉगर्स को प्रब्‍लेस शिखर सम्‍मान मुबारक हो ! Prize  , जब ऐसी खुशियाँ आती हैं =  प्रब्लेस शिखर सम्मान की उद्घोषणा.....   . मैं किसी व्यक्तिविशेष को दोष नहीं देता , इस मनःस्थिति को हम सब जानते हैं कि बजाये खुश होने के लोग तलवार निकल लेते हैं व्यंग्य बाणों के ! 
अब हम कुछ देर के लिए मान लें कि दिए गए उदाहरण की तरह लिखित नामों ने खुद लिखा , खुद को पुरस्कृत किया ... तो हम क्या साबित कर रहे कि अपनी योग्यता को ये खुद फैला रहे . क्या सच में इन्हें पढ़ने के बाद यह प्रतीत होता है ? सूरज खुद निकलता है , प्रकाश देता है - पुरस्कृत करो न करो, सूरज ही होता है . 
रवीन्द्र जी हों या अविनाश जी या रश्मि जी = इनकी प्रतिभा से कौन इन्कार करेगा ? आलोचना तो ईश्वर की भी होती है = पर सत्य प्रतीक्षा नहीं करता . और यदि सत्य ने खुद को खुद पुरस्कृत किया है तो बाकी लोगों के लिए शर्म की बात है कि वे संकुचित रहे , उनके लिए आगे बढ़कर कुछ नहीं किया !!!





अब आते हैं मुद्दे पर ............आप सबके जूते मेरे सिर पर ..........मारो तो भला न मारो तो भला 




( ओये होए हास्य है ........कहीं सच मुच ही जूते लेकर ना दौड़ पड़ना .......अरे उन लोगों की  तरफ से भी कभी कभी लिखना चाहिए जिन्हें ऐतराज होता है आखिर वो भी तो हमारे हैं :))))))))) ......अब ज्यादा घूरिये मत और पढ़िए .........मेरा दिल जोर से धड़क रहा है डर के मारे ..........मगर क्या करूँ जब कहती हूँ तो कह ही देती हूँ बिना लाग लपेट के ...........हा हा हा ) 


और ये भी नहीं पता किसे ऐतराज़ हुआ मगर हमारे तो दिमाग का पेंच जरूर हिल ही गया है तो अब तो आपको इसे झेलना ही पड़ेगा 

ये मैंने नहीं कहा है ............ये उनकी तरफ से जिन्हें ऐतराज हुआ है :))


ब्लॉगवुड फेसबुक ट्विट्टर पर छाए महारथी

जब से खुद को लाटसाहब समझने लगे 
तब से उनके भी पर निकालने लगे 
जिन्होंने जुम्मा- जुम्मा अभी 
आँख खोली ही थी
या पैदा होने की ज़हमत उठाई ही थी
उनके मुँह में भी जुबाँ आ गयी थी
तभी तो बिल्ली के भागों छींके टूट रहे थे
नए नए बिलौटे ही मलाई खा रहे थे
बेचारे पुराने तो अपने घिसे पिटे 
ढोल ही बजा रहे थे
इन पुरानों को इक नाम मिला ........रेंगने वाले कीड़े
हाँ वो ही तो हैं ये ..........जब से आये हैं
सिर्फ रेंग ही रहे हैं
कभी इसके ब्लॉग पर
तो कभी उसके ब्लॉग पर
कभी फेसबुक पर तो कभी ट्विट्टर पर
अपना रास्ता खोज रहे हैं
मगर कोई कमाल ना दिखा पा रहे हैं
ये कीड़े तो बस रेंगते ही जा रहे हैं
सबके हाथों की कठपुतली बनते जाते हैं
कभी साझे ब्लॉग अपनाते हैं
कभी चर्चा सजाते हैं 
कभी किसी को लड़वाते हैं
कभी सबको आमंत्रित करते हैं 
और इक आयोजन करते हैं 
पर इतना करने पर भी 
कुछ दिन में दिल से उतर जाते हैं
और अपने पुराने रूप में वापस आ जाते हैं
फिर रेंगना शुरू करते हैं 
और बस रेंगते ही जाते हैं 
कुछ प्रजातियाँ जो नयी उभर कर आई हैं
हर हथकंडे सीख कर आई हैं
कैसे नाम कमाना है 
कैसे किताबें छपवाना है
कैसे पब्लिसिटी करवाना है
कैसे पुरस्कार पाना है
आते ही ऐसे पाँव पसारते  हैं
सब उनके मुरीद हो जाते हैं 
सब जुगाड़ लड़ा लेते हैं
ये कीड़े जुगाडू कहाते हैं
जो पुस्तक मेलों तक में 
अपनी पहुँच बनाते हैं
फिर सरकारी अकादमियों तक
राह आसान बनाते हैं
मुफ्त में किताब छपवाते हैं
समीक्षाएं करवाते हैं
अख़बारों के पन्नों पर छा जाते हैं 
पर अपने गुर ना किसी को बताते हैं
ना ज्यादा बतियाते हैं
ना किसी को कुछ बतलाते हैं
ये जुगाडू कीड़े सिर्फ सब्जबाग दिखाते हैं
और अपना परचम फहराते हैं
किसी को गुरु तो किसी को प्रणाम करते हैं
और चापलूसी के ईंधन से 
नए आयाम तय करते हैं
मगर ऊपर से सामान्य  नज़र आते हैं
अपनेपन का चश्मा पहने रहते हैं
बातें मीठी- मीठी करते हैं 
सामने वाले का मन हर लेते हैं 
मगर मन से जुगाड़ में लगे रहते हैं
ऐसे में कहाँ रेंगते कीड़े इन्हें नज़र आते हैं
उन्हें तो ये सिर्फ सब्जबाग दिखाते हैं
पर कभी उन्हें आगे ना बढ़ने देते हैं
बस अपने नाम के लिए ही जुगाड़ करते रहते हैं
बेचारे रेंगते कीड़े 
यहीं पैदा होते हैं
खीजते हैं 
और फिर एक दिन
चुपचाप कुछ ना कर पाने की हसरत लिए
इन जगहों से विदा ले लेते हैं 
जिन्हें यहाँ कोई ना याद करता है
जिनका नामो- निशाँ भी मिट जाता है
बेशक लेखन सार्थक हो
बेशक उनमे बहुत दम हो
मगर जिसका ना कोई 
गौड फादर  होता है 
उसका तो यहाँ 
यही हश्र होता है 
पर जुगाडू का तो परचम हमेशा लहराता है 
हर जगह बस वो ही अपनी डुगडुगी बजाता है
पर ये भी सच है आज की दुनिया में 
वो ही सफल कहाता है ..........वो ही सफल कहाता है 


तो बोलो भैया ब्लॉग वुड की जय हो .........
ये हास्य व्यंग्य यूँ ही चलता रहे 
सबका मन हल्का होता रहे ..............
सबको मौका मिलता रहे ............कहने का भी ..........:))


उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगे ...........

चलो जी हो जाओ शुरू 
मैं गिनती करती हूँ
कितने पड़े और 
कितने बाल मेरे बचे 

वैसे ये बात (रेंगने वाले कीड़े और जुगाडू ) हम सब पर लागू होती है मगर हमें तो दूसरे की ख़ुशी में ख़ुशी होती है 
एक आगे बढेगा तो दूसरों को भी सहारा जरूर देगा 
इसलिए हमें इस सोच से निजात पाना होगा ........शायद पा सकें 

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

लगता है तुझे भी मोहब्बत की पीर समझ आई है ..........


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ओह श्याम क्यूँ आज ये छवि बनाई है
लगता है तुझे भी मोहब्बत की पीर समझ आई है 


ओह !दृग बिंदु कैसे बरस रहे हैं
आज श्याम भी तरस रहे हैं
ना जाने किस वैरागन से 
मिलन को नैना बरस रहे हैं
पीर नीर बन बह रही है
कोई प्यारी नैनों में अटक गयी है
या प्रीत का कोई तार छू गया है
जो नैनों से अश्रु प्रस्फुटित हो गया है
किस जोगन के तप का फल है
किस विरहिणी का अश्रु प्रपात
श्याम नयन से झर रहा है
ये निर्मोही , अनित्य , चिदानंद
आज किस के लिए रो रहा है
इसने तो किसी का होना ना जाना
कर्तुम अकर्तुम अन्यथा कर्तुम 
वेश बना सिर्फ यही सन्देश दिया
ना मैं करता ना मैं भोक्ता
फिर क्यूँ कर आज ये नीर बहा
लगता है आज तू इन्सान बन गया
जभी तुझे भी दर्द हुआ
और अश्रुधार बह चली
तेरे मन की व्यथा भी कह चली
प्रेम ना बोया काटा जा सकता है
प्रेम दीवानों को तो सिर्फ
प्रेम भ्रमर ही काट सकता है
प्रेम ही जिला सकता है 
प्रियतम से मिला सकता है
ये प्रेम की अनुभूति लगता है 
आज तूने भी जान ली है
यूँ ही तो नहीं नैनों से अश्रु लड़ी झड़ी  है .........क्यूँ श्याम है ना !!!

बता न श्याम ..........
क्या तूने भी भाव सागर में डुबकी लगायी है
या राधे चरणों की याद सता रही है 
क्या राधा प्यारी की निस्वार्थ प्रीत याद  रही है
या मैया का निष्कपट स्नेह की याद आ गयी है
या वृन्दावन की कुञ्ज गलियाँ बुला रही हैं
या गोपियों का माखन याद आ रहा है
या कदम्ब की डाली बुला रही है
बंसी की धुन जहाँ अब भी गुंजा रही है 
या यमुना का तट बाट जोह रहा है
और तेरा मन टोह रहा है 
या गईयों की रम्भाहट तुझे अकुला  रही हैं 
जो तेरी वंशी सुनने को तरस रही हैं
या बृज रज को तू भी तरस रहा है
बता ना श्याम ! ये अश्रुपात क्यूँ कर हो रहा है 


शायद मीरा ने तान लगायी है
शायद शबरी ने फिर राह बुहारी है
शायद विदुरानी के छिलके याद आये हैं
शायद सुदामा के तंदुल की भूख सताई है
शायद फिर किसी द्रौपदी की पुकार कर्णों में आई है 
शायद फिर किसी ध्रुव ने तेरा आसान हिलाया है
शायद फिर कोई भक्त तेरे प्रेम में मतवाला हुआ है
और तेरे प्रेम रस की भांग जिसने पी ली है 
पीली  चुनरिया भी पहन ली है 
प्रेम का महावर रचा लिया है
श्याम नाम की मेहंदी लगा ली है
प्रीत का आज बासन्ती  श्रृंगार किया है 
महारास का फिर किसी ने इज़हार किया है 
अपना संपूर्ण समर्पण किया है 
शायद फिर कोई भक्त मीरा- राधा - सा
प्रेम का गरल पी मरणासन्न हुआ है 
कोई तो कारण है ..........श्याम 
यूँ ही तो नहीं नैनों ने अश्रु मोतियों से श्रृंगार किया है ...........


मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

प्रेम दिवस की फूलझडी






वैलेन्टाइन के बहाने से



आशिकी झाड़ने वालों




बच के रहना




जिस दिन कोई




सिरफिरी टकरा जाएगी




आशिकी की सारी




भूतनियाँ उतार जाएगी




जेब के पैसे जब




डकार जाएगी




तब घरवाली भी




हाथ से निकल जाएगी




वैलेन्टाइन की माला




जपने वाले एक बार में ही




तेरा वैलेन्टाइन मना जाएगी




फिर हर औरत में तुम्हें




माँ , बहन ही नज़र आएगी




तेरी आशिकी की फूलझड़ी में




कंगाली का बम लगा जाएगी




इस बार की होली में




अपनी दिवाली और




तेरा दिवाला निकाल जाएगी




दोस्तों आज ये पोस्ट दोबारा लगा रही हूँ ........क्यूंकि आज के दिन पर 

फिट बैठती है .......पढ़िए और एन्जॉय कीजिये 






और एक रंग ये भी देखिये प्रेम दिवस का 






चलो हमने प्रेम दिवस माना लिया 





प्यार का कैसा खुमार छाया


देखो देखो प्रेम दिवस आया


सुबह ट्वीट किया छैला ने


बनोगी लैला मेरी एक दिन के लिए


जवाब में लैला का मोबाइल खनखनाया


और दोपहर तक तो प्रेम ने अपना रंग दिखाया


शाम को क्लब में मिलने का प्रोग्राम बनाया


कुछ गुलाब, कुछ चौकलेट और कुछ गिफ्ट्स ने 


अपना रंग दिखाया 


रात होते- होते तो खुमार दिल से जिस्म तक छाया


प्रेम का आदान - प्रदान किया 


और बारह बजते - बजते तक तो 


सारा नशा हवा हुआ


फिर तू कौन मैं कौन का चलन हुआ


तू मेरी वैलेन्टाइन मैं तेरा वैलेन्टाइन का नशा हिरन हुआ 



अब मिले फिर ना मिलेंगे का वादा किया 


चलो हमने प्रेम दिवस माना लिया 

कह दिल को सुकून दिया ............:)