दोस्तों ,
लीजिये एक बार फिर हाजिर हैं आपके बहुरंगी कार्यक्रम के साथ
..........आपके ब्लॉग की चर्चा गर्भनाल पत्रिका के संग .........
इस लिंक पर आपकी धरोहर है अगर न खुले तो नीचे लगा ही
दी है
शब्दों को आकार देना और उन्हें एक मंच प्रदान करने में ब्लोगिंग के महत्त्व को नाकारा नहीं जा सकता . आज हिंदी ब्लोगिंग ने हर खास-ओ-आम को एक दूसरे से जोड़ दिया है और अभिव्यक्ति कि क्रांति के बीज को इस तरह रोपित किया है कि हर तरफ ब्लोग्स कि फसल लहलहा रही है और इसने आज अपनी एक ऐसी पहचान बना ली है जिसे नकारना अब किसी के लिए संभव नहीं. यदि जानना है कैसे तो देखिये यहाँ कैसे अनमोल मोती बिखरे पड़े हैं . सबसे पहले बात करते हैं ......
१)
बुलंदशहर के एक गाँव के जन्में ओमप्रकाश यूँ तो साहित्य की सभी विधाओं के महारथी हैं, पर उनकी सबसे पहचान बनी तोवह बाल साहित्य है।अपने ब्लॉग ‘आखरमाला’ (http:// omprakashkashyap.wordpress.कॉम और ‘संधान’(http://opkaashyap. wordpress.com) पर उनके लेखन का प्रमाण मिलता है .वो सिर्फ उपदेशात्मक बाल कवितायेँ ही नहीं लिखते बल्कि विद्रूपताओं को भी शामिल करते हैं जो उनके सशक्त लेखन का प्रमाण है .आखरमाला में आलोचनात्मक लेखन और संधान में मौलिक रचनायें हैं
२)
http://aadhasachonline. blogspot.com/ के चिट्ठाकार महेंद्र श्रीवास्तव जी पेशे से पत्रकार हैं मगर अब एक प्रतिष्ठित टी वी चैनल से जुड़े हैं
मीडिया से जुडे़ होने के कारण उन्हें सत्ता के नुमाइंदों को काफी करीब से देखने का मौका मिलता है। इस बारे में उनका कहना है कि हमाम में सब......यानि एक से हैं। इसी सच को शब्दों में ढालने की कोशिश करते हैं जो उनकी पोस्ट्स में परिलक्षित होता है. सच भी ऐसा जो दिल और दिमाग दोनों पर चोट करता है बेशक सच कडवा होता है जो हर किसी के हलक से नीचे नहीं उतरता मगर सच तो सच ही रहता है चाहे आधा ही क्यूँ ना कहा गया हो .
३)
"something for mind something for soul"
http://blogmridulaspoem. blogspot.com/2011/09/blog- post_30.html ब्लॉग की स्वामिनी मृदुला प्रधान जी का कहना है कि वो कुछ दिमाग के लिए तो कुछ अपनी आत्मा की संतुष्टि के लिए लिखती हैं . जो भी आपको संतुष्ट कर सके वो ही लेखन सार्थक कहलाता है जहाँ आत्मा को सुकून मिले. अब तक मृदुला जी की पांच किताबें छप चुकी हैं.
मृदुला जी के लेखन की खासियत ये है कि वो चाहे रिश्ते हों , परिवार हो या आपसी सम्बन्ध या मन की कोई दशा उसे बहुत खूबसूरती से पिरोती हैं कि पाठक भी आत्मसात कर लेता है उसे यूँ लगता है जैसे आस पास ही सब घटित हो रहा है और ऐसा लेखन ही दिलों को छूता है .उनके लेखन की एक बानगी देखिये ........
हवा का एक तेज़ झोंका/मेरी उनींदी /आँखों को खोल गया/ जब खोली मैंने,/अपने कमरे की/ कबसे बंद खिड़की......../जब खोली मैंने,/अपने कमरे की/बारिश की तेज़ फ़ुहार /सहला गयी /मेरे / अंतर्मन को/ख्यालों के चक् रव्यूह में/ घिरा मेरा मन,/अँधेरे की हल्की सी/पदचाप भर / सुना ......कि/अचानक / सूरज की तेज़ किरणें/ ठहर गयीं,/मेरे ऊपर/ और/धूप की चमकती /नर्म गर्माहट/मैंने अपनी मु ट्ठी में
बांध ली........../कि/अब ,अँधे रा /कभी नहीं होगा .........
आशा का संचार करती एक नारी के मनोभावों का प्रकृति के माध्यम से व्यक्त करना ही उनके लेखन की खूबसूरती है .
४)
विशाल चर्चित नए ब्लोगर हैं जो हिन्दी कॉपीराइटर, लेखक व कवि (व्यंग्य) तथा शायर हैं अपने ब्लॉग विशाल चर्चितhttp://charchchit32. blogspot.com/2011/09/blog- post_30.html?showComment= 1317379166369# c5352871914809153876 पर अपने भावों का सागर उंडेलते हैं तथा हर तरह के विचारों को कभी तो शायरी में तो कभी व्यंग्यात्मक लहजे में प्रस्तुत करते हैं और पाठकों का मन मोह लेते हैं .
५)
www.jindagikeerahen.blogspot. com ज़िन्दगी की राहें ब्लॉग मुकेश कुमार सिन्हा का है जो कहते हैं .......जिंदगी की राहें! कभी लगती है, बहुत लम्बी! तो कभी दिखती है बहुत छोटी!! निर्भर करता है पथिक पर, वो कैसे इसको पार करना चाहता है.........
उनकी एक और कविता क्वालिटी ऑफ़ लाइफ के कुछ अंश देखिये .......
कर रहे थे मेहनत /जी रहे थे कुछ रोटियों के साथ../जो कभी कभी होती/थी बिना सब्जी के साथ.../पर रात की नींद /होती थी गहरी/होती थी/रंग बिरंगे सपने के साथ /पर इन्ही सुनहरे सपनो ने/फिर उकसाय/मेहनत की कमाई/महीने में एक बार मिलता वेतन/नहीं दे पायेगा../ऐश से भरी जिंदगी/
कैसे पाओग/"क्वालिटी ऑफ़ लाइफ"
ज़िन्दगी की छोटी छोटी खुशियाँ ढूंढना और उन्हें शब्दों में पिरोना तो कभी सामाजिक विद्रूपताओं से आहत हो अपने शब्दों में बांधना ही उनके सार्थक लेखन को दर्शाता है.
६)
http://shabdshikhar.blogspot. com/ शब्द शिखर पर
आकांक्षा यादव अपने बारे में बताती हैं .........कॉलेज में प्रवक्ता के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी प्रवृत्त। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। विकीपीडिया पर भी तमाम रचनाओं के लिंक्स उपलब्ध। दर्जनाधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों /संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी पोर्टब्लेयर से वार्ता, रचनाओं इत्यादि का प्रसारण। व्यक्तित्व-कृतित्व पर डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित ‘बाल साहित्य समीक्षा’ (कानपुर) का विशेषांक जारी। विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त। एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है.
अब इसके बाद कहने को क्या बचता है.........हर पोस्ट में कुछ ना कुछ देने का प्रयास करना और सच के रूपों से परिचित कराना ही आकांक्षा जी लेखनी को उत्कृष्ट और सबसे विशिष्ट बनाता है .
७)
परावाणी : The Eternal पोएट्री अरविन्द पाण्डेय जी का ब्लॉग जहाँ वो अपने बारे में कहते हैं .........
मेरा प्रयास है कि हिन्दी कविता-प्रेमी उस स्वर्ण-युग की स्मृतियों से आनंदित हों जब हिदी कविता, विश्व की समस्त भाषाओं और साहित्य की गंगोत्री - संस्कृत-कविता से अनुप्राणित और अनुसिंचित होती, अपने स्वर्ण-शिखर पर विराजमान होकर रस - धारा प्रवाहित कर रही थी
अब तक साहित्यकार , साहित्य के स्वरुप की व्याख्या करते आये हैं मगर समस्या यह है कि साहित्य के वर्त्तमान स्वरुप को बदला कैसे जाय ..
हिंदी-साहित्य के छायावादी दृश्य-परिवर्तन के बाद पश्चिम के अपरिपक्व सामाजिक और साहित्यिक दर्शन का नक़ल करने वालों ने हिन्दी-साहित्य को एक निरुद्देश्य शाब्दिक धंधा बना कर रख दिया ..
अब आगे की ओर सकारात्मक-गति आवश्यक है क्योंकि कविता ही आज के युग की सर्वाधिक शक्तिमती मुक्ति-दात्री है..
उनके लेखन की बानगी उनके ही शब्दों में देखिये इस कविता में
महारास : नौ वर्षों की आयु कृष्ण की,सजल-जलद सी काया.
मस्तक पर कुंचित अलकावलि पवन-केलि करती थी .
चारु-चन्द्र-कनकाभ-किरण चन्दन- चर्चा भरती थी.
चन्दन-चर्चित चरण ,सृष्टि को शरण-दान करता था.
करूणा-वरुणालय-नयनों से रस-निर्झर बहता था
कितनी सुन्दरता , सहजता और सरलता से प्रकृति के श्रृंगार के साथ प्रभु के हास- विलास का चित्रण किया है जो मन को मोह जाता है जहाँ ना सिर्फ शब्द सौंदर्य है बल्कि भाव प्रधानता भी दृष्टिगोचर होती है जो दर्शाती है कि अरविन्द जी की कथनी और करनी एक जैसी है जैसा वो चाहते हैं वैसा ही लिख रहे हैं और हिंदी और संस्कृत को एक नयी दिशा देने में प्रयासरत हैं .
८)
feminist poems http://feministpoems. blogspot.com/ आराधना चतुर्वेदी जी का ब्लॉग एक औरत के दिल से निकले कुछ शब्द जब दिल से निकल पाठक के अंतस को छूते हैं तो मन के कोने कोने को भिगो देते हैं.
उनके मन के भाव जिस तरह कविता में उतरते हैं वो काबिल -ए- तारीफ है जिसकी एक बानगी उनकी कविता दोस्त में कुछ इस तरह परिलक्षित होती है .........
मैं खुद को आज़ाद तब समझूँगी/जब सबके सामने यूँ ही/लगा सकूँगी तुम्हें गले से/इस बात से बेपरवाह कि तुम एक लड़के हो,/फ़िक्र नहीं होगी/कि क्या कहेगी दुनिया?/या कि बिगड़ जायेगी मेरी 'भली लड़की' की छवि,/चूम सकूँगी तुम्हारा माथा/या कि होंठ/बिना इस बात से डरे/कि जोड़ दिया जाएगा तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ/और उन्हें लेते समय/लोगों के चेहरों पर तैर उठेगी कुटिल मुस्कान/वादा करो मेरे दोस्त!/
साथ दोगे मेरा,/भले ही ऐसा समय आते-आते/हम बूढ़े हो जाएँ,/या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए/उस दुनिया में/जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,/दोस्ती और प्यार को/परिभाषाओं से आज़ादी मिले.
एक सामाजिक चेतना को जागृत करती उनकी सोच कुछ पल रुक कर सोचने को विवश करती है कि कब हम अपनी रूढ़िवादी सोच से बाहर आकर स्वीकार कर पायेंगे बदलाव को और रिश्तों को उनकी सच्चाई के साथ सहजता से स्वीकार कर पाएंगे.
९)
कडुवा सच http://kaduvasach. blogspot.com/2011/10/blog- post_9682.html?utm_source= feedburner&utm_medium=feed& utm_campaign=Feed%3A+blogspot% 2FlKxo+%28%E0%A4%95%E0%A4%A1% E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE+% E0%A4%B8%E0%A4%9A%२९ श्याम कोरी उदय जी का ब्लॉग यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करता है. हर सच को इस तरह से कह जाते हैं की कडवा होते हुए भी स्वीकारा जाता है . इसका उदाहरण उनकी कविता मूकबधिर में देखा जा सकता है कितनी स्पष्टता और सपाट लहजे में सच को कहते हैं ....
मूकबधिर ...
तुम/कल भी मूकबधिर थे/आज भी हो/और कल भी रहोगे !/कल की तरह ही -/कल भी/मैं तुम्हें खरीद लूंगा/धन से -/या किसी हथकंडे से !/और मैं/फिर से जीत जाऊंगा/चुनाव/राजनीति/सत्ता, और लोकतंत्र !!
सत्य आसानी से ना स्वीकार्य होता है और ना ही कोई सुनना पसंद करता है पर ये कर्मरथी अपने कार्य में लगा है पूरी निष्ठा और समर्पण से .......कभी तो कोई जगेगा ही , कभी तो सत्य को उसकी पहचान मिलेगी.
तो दोस्तों फरवरी का सफ़र यहीं तक .......अगले महीने फिर मिलेंगे नए रंगों के साथ
दोस्तों ,
लीजिये एक बार फिर हाजिर हैं आपके बहुरंगी कार्यक्रम के साथ
..........आपके ब्लॉग की चर्चा गर्भनाल पत्रिका के संग .........
इस लिंक पर आपकी धरोहर है अगर न खुले तो नीचे लगा ही
दी है
शब्दों को आकार देना और उन्हें एक मंच प्रदान करने में ब्लोगिंग के महत्त्व को नाकारा नहीं जा सकता . आज हिंदी ब्लोगिंग ने हर खास-ओ-आम को एक दूसरे से जोड़ दिया है और अभिव्यक्ति कि क्रांति के बीज को इस तरह रोपित किया है कि हर तरफ ब्लोग्स कि फसल लहलहा रही है और इसने आज अपनी एक ऐसी पहचान बना ली है जिसे नकारना अब किसी के लिए संभव नहीं. यदि जानना है कैसे तो देखिये यहाँ कैसे अनमोल मोती बिखरे पड़े हैं . सबसे पहले बात करते हैं ......
१)
दोस्तों ,
लीजिये एक बार फिर हाजिर हैं आपके बहुरंगी कार्यक्रम के साथ
..........आपके ब्लॉग की चर्चा गर्भनाल पत्रिका के संग .........
इस लिंक पर आपकी धरोहर है अगर न खुले तो नीचे लगा ही
दी है
शब्दों को आकार देना और उन्हें एक मंच प्रदान करने में ब्लोगिंग के महत्त्व को नाकारा नहीं जा सकता . आज हिंदी ब्लोगिंग ने हर खास-ओ-आम को एक दूसरे से जोड़ दिया है और अभिव्यक्ति कि क्रांति के बीज को इस तरह रोपित किया है कि हर तरफ ब्लोग्स कि फसल लहलहा रही है और इसने आज अपनी एक ऐसी पहचान बना ली है जिसे नकारना अब किसी के लिए संभव नहीं. यदि जानना है कैसे तो देखिये यहाँ कैसे अनमोल मोती बिखरे पड़े हैं . सबसे पहले बात करते हैं ......
१)
बुलंदशहर के एक गाँव के जन्में ओमप्रकाश यूँ तो साहित्य की सभी विधाओं के महारथी हैं, पर उनकी सबसे पहचान बनी तोवह बाल साहित्य है।अपने ब्लॉग ‘आखरमाला’ (http:// omprakashkashyap.wordpress.कॉम और ‘संधान’(http://opkaashyap. wordpress.com) पर उनके लेखन का प्रमाण मिलता है .वो सिर्फ उपदेशात्मक बाल कवितायेँ ही नहीं लिखते बल्कि विद्रूपताओं को भी शामिल करते हैं जो उनके सशक्त लेखन का प्रमाण है .आखरमाला में आलोचनात्मक लेखन और संधान में मौलिक रचनायें हैं
२)
http://aadhasachonline. blogspot.com/ के चिट्ठाकार महेंद्र श्रीवास्तव जी पेशे से पत्रकार हैं मगर अब एक प्रतिष्ठित टी वी चैनल से जुड़े हैं
मीडिया से जुडे़ होने के कारण उन्हें सत्ता के नुमाइंदों को काफी करीब से देखने का मौका मिलता है। इस बारे में उनका कहना है कि हमाम में सब......यानि एक से हैं। इसी सच को शब्दों में ढालने की कोशिश करते हैं जो उनकी पोस्ट्स में परिलक्षित होता है. सच भी ऐसा जो दिल और दिमाग दोनों पर चोट करता है बेशक सच कडवा होता है जो हर किसी के हलक से नीचे नहीं उतरता मगर सच तो सच ही रहता है चाहे आधा ही क्यूँ ना कहा गया हो .
३)
"something for mind something for soul"
http://blogmridulaspoem. blogspot.com/2011/09/blog- post_30.html ब्लॉग की स्वामिनी मृदुला प्रधान जी का कहना है कि वो कुछ दिमाग के लिए तो कुछ अपनी आत्मा की संतुष्टि के लिए लिखती हैं . जो भी आपको संतुष्ट कर सके वो ही लेखन सार्थक कहलाता है जहाँ आत्मा को सुकून मिले. अब तक मृदुला जी की पांच किताबें छप चुकी हैं.
मृदुला जी के लेखन की खासियत ये है कि वो चाहे रिश्ते हों , परिवार हो या आपसी सम्बन्ध या मन की कोई दशा उसे बहुत खूबसूरती से पिरोती हैं कि पाठक भी आत्मसात कर लेता है उसे यूँ लगता है जैसे आस पास ही सब घटित हो रहा है और ऐसा लेखन ही दिलों को छूता है .उनके लेखन की एक बानगी देखिये ........
हवा का एक तेज़ झोंका/मेरी उनींदी /आँखों को खोल गया/ जब खोली मैंने,/अपने कमरे की/ कबसे बंद खिड़की......../जब खोली मैंने,/अपने कमरे की/बारिश की तेज़ फ़ुहार /सहला गयी /मेरे / अंतर्मन को/ख्यालों के चक् रव्यूह में/ घिरा मेरा मन,/अँधेरे की हल्की सी/पदचाप भर / सुना ......कि/अचानक / सूरज की तेज़ किरणें/ ठहर गयीं,/मेरे ऊपर/ और/धूप की चमकती /नर्म गर्माहट/मैंने अपनी मु ट्ठी में
बांध ली........../कि/अब ,अँधे रा /कभी नहीं होगा .........
आशा का संचार करती एक नारी के मनोभावों का प्रकृति के माध्यम से व्यक्त करना ही उनके लेखन की खूबसूरती है .
४)
विशाल चर्चित नए ब्लोगर हैं जो हिन्दी कॉपीराइटर, लेखक व कवि (व्यंग्य) तथा शायर हैं अपने ब्लॉग विशाल चर्चितhttp://charchchit32. blogspot.com/2011/09/blog- post_30.html?showComment= 1317379166369# c5352871914809153876 पर अपने भावों का सागर उंडेलते हैं तथा हर तरह के विचारों को कभी तो शायरी में तो कभी व्यंग्यात्मक लहजे में प्रस्तुत करते हैं और पाठकों का मन मोह लेते हैं .
५)
www.jindagikeerahen.blogspot. com ज़िन्दगी की राहें ब्लॉग मुकेश कुमार सिन्हा का है जो कहते हैं .......जिंदगी की राहें! कभी लगती है, बहुत लम्बी! तो कभी दिखती है बहुत छोटी!! निर्भर करता है पथिक पर, वो कैसे इसको पार करना चाहता है.........
उनकी एक और कविता क्वालिटी ऑफ़ लाइफ के कुछ अंश देखिये .......
कर रहे थे मेहनत /जी रहे थे कुछ रोटियों के साथ../जो कभी कभी होती/थी बिना सब्जी के साथ.../पर रात की नींद /होती थी गहरी/होती थी/रंग बिरंगे सपने के साथ /पर इन्ही सुनहरे सपनो ने/फिर उकसाय/मेहनत की कमाई/महीने में एक बार मिलता वेतन/नहीं दे पायेगा../ऐश से भरी जिंदगी/
कैसे पाओग/"क्वालिटी ऑफ़ लाइफ"
ज़िन्दगी की छोटी छोटी खुशियाँ ढूंढना और उन्हें शब्दों में पिरोना तो कभी सामाजिक विद्रूपताओं से आहत हो अपने शब्दों में बांधना ही उनके सार्थक लेखन को दर्शाता है.
६)
http://shabdshikhar.blogspot. com/ शब्द शिखर पर
आकांक्षा यादव अपने बारे में बताती हैं .........कॉलेज में प्रवक्ता के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी प्रवृत्त। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। विकीपीडिया पर भी तमाम रचनाओं के लिंक्स उपलब्ध। दर्जनाधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों /संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी पोर्टब्लेयर से वार्ता, रचनाओं इत्यादि का प्रसारण। व्यक्तित्व-कृतित्व पर डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित ‘बाल साहित्य समीक्षा’ (कानपुर) का विशेषांक जारी। विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त। एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है.
अब इसके बाद कहने को क्या बचता है.........हर पोस्ट में कुछ ना कुछ देने का प्रयास करना और सच के रूपों से परिचित कराना ही आकांक्षा जी लेखनी को उत्कृष्ट और सबसे विशिष्ट बनाता है .
७)
परावाणी : The Eternal पोएट्री अरविन्द पाण्डेय जी का ब्लॉग जहाँ वो अपने बारे में कहते हैं .........
मेरा प्रयास है कि हिन्दी कविता-प्रेमी उस स्वर्ण-युग की स्मृतियों से आनंदित हों जब हिदी कविता, विश्व की समस्त भाषाओं और साहित्य की गंगोत्री - संस्कृत-कविता से अनुप्राणित और अनुसिंचित होती, अपने स्वर्ण-शिखर पर विराजमान होकर रस - धारा प्रवाहित कर रही थी
अब तक साहित्यकार , साहित्य के स्वरुप की व्याख्या करते आये हैं मगर समस्या यह है कि साहित्य के वर्त्तमान स्वरुप को बदला कैसे जाय ..
हिंदी-साहित्य के छायावादी दृश्य-परिवर्तन के बाद पश्चिम के अपरिपक्व सामाजिक और साहित्यिक दर्शन का नक़ल करने वालों ने हिन्दी-साहित्य को एक निरुद्देश्य शाब्दिक धंधा बना कर रख दिया ..
अब आगे की ओर सकारात्मक-गति आवश्यक है क्योंकि कविता ही आज के युग की सर्वाधिक शक्तिमती मुक्ति-दात्री है..
उनके लेखन की बानगी उनके ही शब्दों में देखिये इस कविता में
महारास : नौ वर्षों की आयु कृष्ण की,सजल-जलद सी काया.
मस्तक पर कुंचित अलकावलि पवन-केलि करती थी .
चारु-चन्द्र-कनकाभ-किरण चन्दन- चर्चा भरती थी.
चन्दन-चर्चित चरण ,सृष्टि को शरण-दान करता था.
करूणा-वरुणालय-नयनों से रस-निर्झर बहता था
कितनी सुन्दरता , सहजता और सरलता से प्रकृति के श्रृंगार के साथ प्रभु के हास- विलास का चित्रण किया है जो मन को मोह जाता है जहाँ ना सिर्फ शब्द सौंदर्य है बल्कि भाव प्रधानता भी दृष्टिगोचर होती है जो दर्शाती है कि अरविन्द जी की कथनी और करनी एक जैसी है जैसा वो चाहते हैं वैसा ही लिख रहे हैं और हिंदी और संस्कृत को एक नयी दिशा देने में प्रयासरत हैं .
८)
feminist poems http://feministpoems. blogspot.com/ आराधना चतुर्वेदी जी का ब्लॉग एक औरत के दिल से निकले कुछ शब्द जब दिल से निकल पाठक के अंतस को छूते हैं तो मन के कोने कोने को भिगो देते हैं.
उनके मन के भाव जिस तरह कविता में उतरते हैं वो काबिल -ए- तारीफ है जिसकी एक बानगी उनकी कविता दोस्त में कुछ इस तरह परिलक्षित होती है .........
मैं खुद को आज़ाद तब समझूँगी/जब सबके सामने यूँ ही/लगा सकूँगी तुम्हें गले से/इस बात से बेपरवाह कि तुम एक लड़के हो,/फ़िक्र नहीं होगी/कि क्या कहेगी दुनिया?/या कि बिगड़ जायेगी मेरी 'भली लड़की' की छवि,/चूम सकूँगी तुम्हारा माथा/या कि होंठ/बिना इस बात से डरे/कि जोड़ दिया जाएगा तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ/और उन्हें लेते समय/लोगों के चेहरों पर तैर उठेगी कुटिल मुस्कान/वादा करो मेरे दोस्त!/
साथ दोगे मेरा,/भले ही ऐसा समय आते-आते/हम बूढ़े हो जाएँ,/या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए/उस दुनिया में/जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,/दोस्ती और प्यार को/परिभाषाओं से आज़ादी मिले.
एक सामाजिक चेतना को जागृत करती उनकी सोच कुछ पल रुक कर सोचने को विवश करती है कि कब हम अपनी रूढ़िवादी सोच से बाहर आकर स्वीकार कर पायेंगे बदलाव को और रिश्तों को उनकी सच्चाई के साथ सहजता से स्वीकार कर पाएंगे.
९)
कडुवा सच http://kaduvasach. blogspot.com/2011/10/blog- post_9682.html?utm_source= feedburner&utm_medium=feed& utm_campaign=Feed%3A+blogspot% 2FlKxo+%28%E0%A4%95%E0%A4%A1% E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE+% E0%A4%B8%E0%A4%9A%२९ श्याम कोरी उदय जी का ब्लॉग यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करता है. हर सच को इस तरह से कह जाते हैं की कडवा होते हुए भी स्वीकारा जाता है . इसका उदाहरण उनकी कविता मूकबधिर में देखा जा सकता है कितनी स्पष्टता और सपाट लहजे में सच को कहते हैं ....
मूकबधिर ...
तुम/कल भी मूकबधिर थे/आज भी हो/और कल भी रहोगे !/कल की तरह ही -/कल भी/मैं तुम्हें खरीद लूंगा/धन से -/या किसी हथकंडे से !/और मैं/फिर से जीत जाऊंगा/चुनाव/राजनीति/सत्ता, और लोकतंत्र !!
सत्य आसानी से ना स्वीकार्य होता है और ना ही कोई सुनना पसंद करता है पर ये कर्मरथी अपने कार्य में लगा है पूरी निष्ठा और समर्पण से .......कभी तो कोई जगेगा ही , कभी तो सत्य को उसकी पहचान मिलेगी.
तो दोस्तों फरवरी का सफ़र यहीं तक .......अगले महीने फिर मिलेंगे नए रंगों के साथ
ब्लॉग जगत में बिखरे कुछ अनमोल मोतियों से अपने परिचय करवाया जिनसे मिलना बहुत अच्छा लगा, आभार !
जवाब देंहटाएंब्लांग जगत के कुछ अनमोल मोतियो से मिलना अच्छा लगा..जागरूक प्रयास...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी वंदना...धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लागिंग को लोगों तक पहुंचाने में आपका ये प्रयास वाकई सराहनीय है। मैने पहले भी देखा है कि आप चुनिंदा ब्लागों की चर्चा अपने अंदाज में करती रही है, इस बार भी कुछ ऐसा है। अब इस बार मैं भी शामिल हूं तो जाहिर है कि मुझे तो बहुत ज्यादा अच्छा लगेगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र पिरोये हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मोती चुने हैं...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा....सुन्दर प्रयास है...
जवाब देंहटाएंइन मोतियों से मिलवाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंआपके माध्यम से ब्लाग जगत के अनमोल मोतियों से परिचय हुआ, आभार आपका।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय कार्य।
एक सफल प्रयास.....
जवाब देंहटाएंगर्भनाल में चल रही ब्लॉग पर लिखी ये श्रृंखला अनमोल है...
जवाब देंहटाएंनीरज
उम्दा लिंक्स की उत्तम प्रस्तुति.... !! बहुतों से परिचित हुई.... :) आभार.... :)
जवाब देंहटाएंहम तो डर ही गए
जवाब देंहटाएंचलिए हम मोती तो नहीं हैं
डायमंड या हीरे से कम होना
वैसे भी हमें पसंद नहीं है।
हा हा हा ………आप क्या हैं ये तो आपको भी पता नही अविनाश जी…………:)))………आपको तो पहले भी जोड चुकी हूं और आगे भीजुडते रहेंगे …………आपके बिना तो ब्लोगिंग अधूरी है …………पहला नाम तो सबसे ऊपर आप दो योद्धाओं का आता है ………………अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात ……………अब आप दोनो को तो स्पेशल ट्रीटमेंट देना पडेगा ना………:))))))
हटाएंnice
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