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शुक्रवार, 2 मार्च 2012

ये है होली की सौगात


होली आयी और अपनी धमक , गमक और नमक सब साथ लायी तो फिर हम कैसे पीछे रह जाते और संजो लिए होली में अपनी पसंद के कुछ रंग आप सबको रंगने के लिए ..........


ये है दोस्तों आप सबकी चर्चा इस बार के गर्भनाल पत्रिका के होली अंक में 
www.garbhnal.com 

हिंदी साहित्य के फहराते परचम 

ब्लोगिंग की दुनिया में परचम फहराते ब्लोगर्स और उनके ब्लॉग आज स्वयं को सिद्ध कर रहे हैं और सार्थक लेखन के द्वारा हिंदी साहित्य में अपना अमूल्य योगदान भी दे रहे हैं जो हम सभी के लिए गर्व का विषय है . हर ब्लोगर चाहे जिस विधा में जो भी लिख रहा है वो अंकित हो रहा है जिसे कभी नहीं मिटाया जा सकता साथ ही काफी लोगों को इस दिशा में प्रेरित भी कर रहा है ताकि अपने आप को व्यक्त कर अपना योगदान दिया जा सके क्योंकि ना जाने इन हीरों में कौन सा हीरा कोहिनूर बन जाए जो हिंदी साहित्य के आकाश पर अपना परचम लहराए  तो चलिए आज की चर्चा की तरफ .........

राजेंद्र स्वर्णकार जी का ब्लॉग है . काव्य की हर विधा में लेखन कर रहे हैं जो अपने बारे में कहते हैं .......

मोम हूं , यूं ही पिघलते एक दिन गल जाऊंगा फ़िर भी शायद मैं कहीं जलता हुआ रह जाऊंगा... मूलतः काव्य-सृजक हूं।अब तक 3000 से अधिक छंदबद्ध गीत ग़ज़ल कवित्त सवैये कुंडलियां दोहे सोरठे हिंदी राजस्थानी उर्दू ब्रज भोजपुरी भाषा में लिखे जा चुके हैं मेरी लेखनी द्वारा । 300 से भी ज़्यादा मेरी स्वनिर्मित मौलिक धुनें भी हैं । आकाशवाणी से भी रचनाओंका नियमित प्रसारण । 100 से ज़्यादा पत्र - पत्रिकाओं में 1000 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हैं । अब तक दो पुस्तकें प्रकाशित हैं- राजस्थानी में एक ग़ज़ल संग्रह रूई मायीं सूई वर्ष 2002 में आया था , हिंदी में आईनों में देखिए वर्ष 2004 में । चित्रकारी रंगकर्म संगीत गायन मीनाकारी के अलावा shortwave listening और DXing करते हुए अनेक देशों से निबंध लेखन सामान्यज्ञान संगीत और चित्र प्रतियोगिताओं में लगभग सौ बार पुरस्कृत हो चुका हूं । CRI द्वारा चीनी दूतावास में पुरस्कृत-सम्मानित … … और यह सिलसिला जारी है … !! 

अब इतने उच्च कोटि के रचनाकार के बारे में कुछ कहना मेरी लेखनी के वश की तो बात ही नहीं है सिवाय इसके कि हम उन्हें पढ़ते रहें और ज्ञानवर्धन करते रहें .



http://wwwbloggercom-vandana.blogspot.com/2011/10/blog-post_12.html#comment-form कागज मेरा मीत है, कलम मेरी सहेलीब्लॉग पर अमेरिका में रहने वाली वन्दना जी २००९ से ब्लॉगजगत में सक्रिय हैं . 

इनका  ब्लॉग हैं ..... कागज मेरा मीत है, कलम मेरी सहेली......जहाँ गजलों की महफ़िल सजी रहती है .ग़ज़लों के माध्यम से मन के भावों को इतनी खूबसूरती से उकेरती हैं कि पाठक उसमे खो सा जाता है . गज़लों पर उनकी पकड़ ही उनकी पहचान है .


http://kshama-bikharesitare.blogspot.com/ BIKHARE SITARE ब्लॉग की मल्लिका शमा जी तो जैसे अपने नाम को ही चरितार्थ करती हैं. शमा कैसे सुलगती है धीरे धीरे अपनी आखिरी सांस तक और सबका जहान रौशन करती रहती है बस इसी की बानगी मिलती हैं उनके ब्लॉग पर. एक से बढ़कर एक उम्दा कहानियों का ज़खीरा उनके ब्लॉग पर मिलेगा जो यूँ महसूस कराएगा कि  जैसे हकीकत में सब सामने घटित हो रहा हो और पाठक उससे इस तरह जुड़ जाता है कि  जब तक अंत ना जान ले उसे चैन नहीं पड़ता. अब चाहे संस्मरण लिखें या कहानियां अपने आप में उनकी पहचान बनकर ही उभरती हैं. 


कासे कहूँ? ब्लॉग की संचालिका कविता वर्मा जी जो अपने आस पास देखती हैं और उसे बदलना चाहती हैं मगर बदल नहीं पातीं उस बेचारगी को अपने शब्दों में ढ़ालकर प्रश्न करती हैं कि क्या वास्तव में हम आज़ाद हैं? अपने आलेखों, कहानियों और संस्मरण के माध्यम से विचारों का ज़खीरा बुन रही हैं और कोशिश कर रही हैं अपनी तरह जगाने की हर उस सोये हुए को जो जागा हुआ सो रहा है .


http://palkonkesapne.blogspot.com/2011/10/blog-post_12.html  पलकों के सपने ब्लॉग पर रामपती जी 2010 से लिख रही हैं और अपने बारे में कहती हैं ...........

अपने बारे में कहने को कुछ खास नहीं है. दिल्ली में जन्मी, पली बढ़ी, और भारत सरकार की सेवा कर रही हूँ... पढना अच्छा लगता था सो वही से लिखना भी अच्छा लगने लगा.. यदि मन के भावों को , जज्बातों को शब्द देना यदि कविता है, साहित्य है .. तो कविता लिख रही हूँ, साहित्य सृजन कर रही हूं.

और अब देखिये उनके शब्दों का जादू उनकी कविताओं में तो लगेगा वास्तव में यही तो है असली साहित्य सृजन........

पगडण्डी/जो तुम तक /नहीं पहुँचती/नहीं जाता मैं उस पर/हवाएं /जो नहीं लाती /तुम्हारी कुशल /नहीं सिहराती मुझे /संगीत /जिसमें तुम ना हो /मन के तारों को /नहीं करता झंकृत /नींद /तुम्हारे सपने ना हो /जिसमें आती नहीं /ना ही सुलाती मुझे /सुबह /नहीं होती खुशनुमा /तुमसे मिलने का यदि /ना हो कोई कारण/पूजा /भावों का नैवैध्य /तुम्हें चढ़ाये बिना /होती नहीं सम्पूर्ण .




http://kavikokas.blogspot.com/शरद कोकास ब्लॉग के संचालक शरद कोकस जी के तीन ब्लॉग हैं . ये स्वतंत्र लेखन करते हैं और २००९ से ब्लॉग लेखन में सक्रिय हैं . अपने बारे में बताते हैं ........

मुख्य रूप से कविता लिखता हूँ । कभी कभी कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी । एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर " और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित ।झोपड़पट्टियों में जाकर उनके दुखदर्द बाँटता हूँ जिनके पास दुख ही दुख हैं । अपनी तरह से ज़िन्दगी जीने का शौक है इसलिये स्टेट बैंक की नौकरी छोड़कर अपनी फाकामस्ती के रंग लाने के इंतज़ार में हूँ ।

  • कौन सी विधा है जो अछूती हो इनसे . और इनके लेखन की उत्कृष्टता यदि देखनी हो तो इनकी कविताओं पर एक नज़र डालेंगे तो पाएंगे सच में आम आदमी का दर्द जैसे इनके दिल में कूट- कूट कर भरा है जो आक्रोश बनकर कविताओं में फूट पड़ा है जिसका उदाहरण चाहे आज की कविता हो या आज से २५ साल पहले की कविता हो सब में देखने को मिलता है ..........उसकी एक बानगी देखिये .....
  • इतिहास के पन्नों पर जमा रक्त/हमारे सगे सम्बन्धियों की रगों का/रक्त न होने के फलस्वरूप/हमारे संकुचित दिमागों में/हलचल मचाने में असमर्थ है/हमारे सामान्य ज्ञान में शामिल है/पाठ्यपुस्तकों में/विवशता वश पढ़े/चन्द महान व्यक्तियों के नाम/रंगबिरंगी पत्रिकाओं के/मख्खनी चेहरों पर अटकी नज़र/देख नहीं पाती/क्रांतिकारियों के अखबार गदर में प्रकाशित/रोज़गार का विज्ञापन/जहाँ मेहनताना थी मृत्यु/पुरस्कार शहादत/पेंशन में आज़ादी/

    और कार्यक्षेत्र हिन्दुस्तान/पहचानो उन सियारों को/जो तुम्हारी रगों में बहने वाले खून से/अपने आप को रंगकर/तुम्हे तुम्हारे ही घर में/गुलाम बनाने के साजिश रच रहे हैं/तुम्हारे ही भाइयों के हाथों में/बन्दूकें थमाकर/लाशों का व्यापार कर रहे हैं/शायद यही वक़्त है सोचने का/वरना आनेवाली पीढ़ीयाँ/इतिहास के पन्नों पर/देखेंगी/हमारे रक्त के निशान/लेकिन उन पर/गर्व नहीं कर सकेंगी 

मनोज जी का ब्लॉग आँच नाम से सक्रिय है जो अपने नाम को सार्थक करता है. जब तक कोई भी वस्तु कसौटी पर ना कसी जाये कैसे खरी उतर सकती है और यही कार्य ये ब्लॉग कर रहा है . कोई भी कविता हो या कहानी जब तक आँच की तपिश नहीं सहती वो कुंदन नहीं बनती और हर ब्लोगर चाहता है कि कम से कम एक बार तो उसकी कहानी हो या कविता उसकी निष्पक्ष समीक्षा की जाये और उसके गुण और अवगुणों से सबको परिचित कराया जाये और ये कार्य मनोज जी के ब्लॉग पर शामिल हरीश जी हों या पुरुषोत्तम जी या करण जी सभी बेहद मनोयोग और लगन से कर रहे हैं और रचनाकार को ना केवल उत्साहित करते हैं वरन उसकी खामियों को भी इस तरह बताते हैं कि रचनाकार मंत्रमुग्ध हो जाता है और मानने पर मजबूर ........शायद यही इस ब्लॉग की सबसे बड़ी पहचान है कि किसी को गलत सिद्ध नहीं करना और उसे सुधार भी देना .

http://sumanmeet.blogspot.com/बावरा मन ब्लॉग की संचालिका सुमन जी अपनी पहचान कुछ इस तरह देती हैं ..........

पूछी है मुझसे मेरी पहचान; भावों से घिरी हूँ इक इंसान; चलोगे कुछ कदम तुम मेरे साथ; वादा है मेरा न छोडूगी हाथ; जुड़ते कुछ शब्द बनते कविता व गीत; इस शब्दपथ पर मैं हूँ तुम्हारी “मीत”!! 

अब जब ऐसा मीत साथ हो तो और क्या चाहिए ..........बस चलते चलिए सुमन जी के साथ उनकी भाव गंगा में गोते लगाते हुए ..........अपनी कविताओं में सुमन जी ने प्रेम के अनेक रूपों को इस तरह सहेजा है कि पढने वाला मंत्रमुग्ध सा पढता चला जाता  है .........:

"तुम संग  चलूंगी " कविता में कवयित्री ने अपने प्रियतम का हर हाल में साथ निभाने का वादा किया जो समर्पण और प्रेम का जीता जागता सबूत है तो दूसरी ओर "ख्वाब हकीकत और मेरा ख्याल" कविता में ख्वाब और हकीकत की कशमकश को उकेरा है जो ख्यालों की दुनिया की सैर पर ले चलती हैं.


रजनीश का ब्लॉगhttp://rajneesh-tiwari.blogspot.com/2011/10/blog-post_12.html के संचालक रजनीश तिवारी जी 
पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं जिन्हें गायन वादन और फोटोग्राफी का भी शौक है मगर अब ब्लोगिंग में ऐसे रम गए हैं कि  और कुछ करने का मन ही नहीं होता .........रजनीश जी की कवितायेँ स्वयं बोलती हैं हर कविता सोचने को विवश करती हैं थोड़े में ही बहुत कुछ कह जाते हैं
"बदलता हुआ वक्त " कविता में भावों का सुन्दर समन्वय किया है जो उनकी सोच को दर्शाता है .........
महीने दर महीने/ बदलते कैलेंडर के पन्ने /पर दिल के कैलेंडर में /तारीख़ नहीं बदलती  /




15 टिप्‍पणियां:

  1. होली की सौगात ..अच्छी लगी...
    आपको बधाई..
    kalamdaan.blogspot.in

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  2. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय......

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  3. हिन्दी के मूर्धन्य ब्लागर्स पर आपने खूबसूरती से प्रकाश डाला है.हम भी पड़े हैं राहों में.भूले- भटकों में नाम लिख कर कृतार्थ कीजियेगा.आत्म श्लाघा मेरा उद्देश्य नहीं है पर मेरी गंभीर कहानियों/रचनाओं पर उसी गंभीरता से समालोचना नहीं आती है.
    purushottampandey.blogspot.com

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  4. होली की बधाई ! सुंदर प्रस्तुति !

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  5. बढ़िया विश्लेषण ।।
    आभार ।।

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  6. blog jagat ke es mahasamudra me seepiyon ke antar se aise behtarin motiyon kee saugaat holi par ..kabile taarif hai vandana jee..holi par aapko bhee dher sari shubhkamnayein..sadar badhayee aur apne blog par amantran ke sath

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  7. aapka likha ye vivran bahut sunder hai aapki mehnat ko naman
    badhi
    rachana

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  8. बहुत बहुत शुक्रिया वंदना जी ...मेरे ब्लॉग की झलक देने के लिए ...आपको भी होली मुबारक ...

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  9. वंदना जी आपको मेरी कविताएं पसंद आईं, बहुत अच्छा लगा । इस पोस्ट में स्थान देने के लिए शुक्रिया । शुभकामनाएँ ।

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  10. बहुत अच्छे ब्लॉग ढूढ़कर प्रस्तुत किये हैं...आभार..

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  11. बहुत सुन्दर! धन्यवाद!
    प्रवीण जी और ज्ञान्दुत्त जी की कमी खटक सी गई
    होली की सुखद सुभकामनाओं के साथ

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया