अज्ञात की श्रेणी मे हूँ
क्या ढूँढ सकोगे मुझे?
मै कोई दरो-दीवार नही
कोई इश्तिहार नही
कोई कागज़ की नाव नहीं
ना अन्दर ना बाहर
कोई नही हूँ
कोई पता नहीं
कोई दफ़्तर नही
कोई सूचना नहीं
कोई रपट नहीं
ऐसा किरदार हूँ
क्या ढूँढ सकोगे मुझे?
पता , नि्शानी, ठिकाना
कुछ नही है
कोई चिन्ह नहीं
पह्चान पत्र नहीं
आदम और हव्वा का
मानचित्र नहीं
कोई परिंदा नही
कोई चरित्र नहीं
कोई दरवेश नही
कोई असाब नहीं
कुछ नही मिलेगी सूचना
कहीं नहीं मिलेगी
क्या तब भी ढूँढ सकोगे मुझे?
तू भी नही
मै भी नही
हम भी नही
कोई व्याकरण नही
कोई वर्ण नहीं
कोई उच्चारण नहीं
हाव भाव नही
शब्द प्रकार नहीं
कोई सम्पूर्ण या मिश्रित अंश नही
मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं
मगर फिर भी हूँ ……कहीं ना कहीं
तभी तो अज्ञात हूँ
क्या कर सकोगे ज्ञात मुझे
क्या ढूँढ सकोगे मुझे ?
कौन हूँ मै?
एक छाया चित्र
ना ना ………कोई शक्ति नही
कोई भक्ति नही
कोई तीर्थ नही
कोई स्थल नही
फिर भी हूँ ……कहीं ना कहीं
अज्ञात की श्रेणी मे हूँ
जिसका स्वरूप नही होता
जिसकी पहचान नही होती
जिसका अस्तित्व प्रमाणिक नही होता
मगर फिर भी होता है ……कहीं ना कहीं
लो बता दिया ………एक बोध हूँ ………शायद
क्या अब भी
क्योंकि
अज्ञात की श्रेणी मे हूँ………
क्या ढूँढ सकोगे मुझे?
मै कोई दरो-दीवार नही
कोई इश्तिहार नही
कोई कागज़ की नाव नहीं
ना अन्दर ना बाहर
कोई नही हूँ
कोई पता नहीं
कोई दफ़्तर नही
कोई सूचना नहीं
कोई रपट नहीं
ऐसा किरदार हूँ
क्या ढूँढ सकोगे मुझे?
पता , नि्शानी, ठिकाना
कुछ नही है
कोई चिन्ह नहीं
पह्चान पत्र नहीं
आदम और हव्वा का
मानचित्र नहीं
कोई परिंदा नही
कोई चरित्र नहीं
कोई दरवेश नही
कोई असाब नहीं
कुछ नही मिलेगी सूचना
कहीं नहीं मिलेगी
क्या तब भी ढूँढ सकोगे मुझे?
तू भी नही
मै भी नही
हम भी नही
कोई व्याकरण नही
कोई वर्ण नहीं
कोई उच्चारण नहीं
हाव भाव नही
शब्द प्रकार नहीं
कोई सम्पूर्ण या मिश्रित अंश नही
मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं
मगर फिर भी हूँ ……कहीं ना कहीं
तभी तो अज्ञात हूँ
क्या कर सकोगे ज्ञात मुझे
क्या ढूँढ सकोगे मुझे ?
कौन हूँ मै?
एक छाया चित्र
ना ना ………कोई शक्ति नही
कोई भक्ति नही
कोई तीर्थ नही
कोई स्थल नही
फिर भी हूँ ……कहीं ना कहीं
अज्ञात की श्रेणी मे हूँ
जिसका स्वरूप नही होता
जिसकी पहचान नही होती
जिसका अस्तित्व प्रमाणिक नही होता
मगर फिर भी होता है ……कहीं ना कहीं
लो बता दिया ………एक बोध हूँ ………शायद
क्या अब भी
क्योंकि
अज्ञात की श्रेणी मे हूँ………
एक बोध हूँ ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें !!
soonya me bhi khoj lete hai log fir aapne to pahchan chipayee nahee , behtareen bhav liye shabdankan badhai
जवाब देंहटाएंजो मिल जाए , जो ज्ञात हो जाए - वह मैं कहाँ !
जवाब देंहटाएंअज्ञात की श्रेणी में स्वयं बोध !
जवाब देंहटाएंबोध को ढूंढते ही रह गए .... प्रवाह मयी रचना
जवाब देंहटाएंकाश इस अज्ञात का बोध हो जाता...बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त भाव ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंउपाधियाँ उतारते उतारते मुक्त हो जाना है।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात !
जवाब देंहटाएंअज्ञात की श्रेणी मे हूँ
इसलिए तो तुम में समाहित हूँ !
bahut achhi line hai vandna ji.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर व भाव पूर्ण कविता है|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर व भाव पूर्ण कविता है|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर व भाव पूर्ण कविता है|
जवाब देंहटाएंकहीं इसे आत्मबोध तो नही कहते । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंजीवन ही अज्ञात सा है | एकदम दार्शनिक सी रचना |
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