मिट रही है इंसानियत
बढ़ रही है हैवानियत
इंसानियत के नीलाम
होने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
बिक चुका है जो जमीर
लालच हुआ अधीर
जमीर को बिकने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
ये रगों मे लहू बन
रेंगते बेशर्मी के कीड़े
दरिंदगी की लाज शर्म भी
न जिन्हें रास आती
उन हैवानों की हैवानियत के
चंगुल में फंसने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
चाहे मलाला हो
चाहे सोनाली हो
कट्टरपंथियों की नाक ना नीची हो
इस चरमपंथियों की गिरह से
बेबस मासूमों की
बलि चढ़ने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
जो आधुनिकता की
भेंट चढ़ गयी हैं
संस्कारों की दौलत
उसे वस्त्रहीन होने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
संस्कृति, संस्कार और सभ्यता
एक सिक्के के दो पहलू
आज टके भाव भी न बिकते हैं
फिर भी आने वाली पीढ़ी के लिए
ईमान के इस खजाने को
नेस्तनाबूद होने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
बस अपने हाथों में
इक ईमान की
इक सच्चाई की
इक इंसानियत की
इक इबादत की
कोई लकीर बना सको तो बना लो
खाली हाथ आए
खाली ही जाना है
इस उक्ति को सार्थक
करने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
यारा ............
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो ..............
सहज़ सरल शब्दों में हकीकत बयां करती पोस्ट ... अनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमिट रही है इंसानियत बढ़ रही है हैवानियत इंसानियत के नीलाम होने से पहले गर बच सके तो "कुछ" बचा लो .....
जवाब देंहटाएं"कुछ" तो बचा लो ....
बहुत अच्छी रचना .... संकेत देती हुई कि चाहो तो कुछ बचा लो ।
जवाब देंहटाएंहां सच ही तो ...थोड़ा सा जो कुछ बचा है वो ही बचा लों अब तो ...:)))
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंअब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। मगर होश तो आये पहले!
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंदमदार अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसहज और सरल भाषा में बहुत कुछ बोल गयी ये कविता ...मैं तो इसे एक तंज़ के रूप में देख रहा हूँ जो की एक शूल की तरह चुभता हैं।
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
संस्कृति, संस्कार और सभ्यता
जवाब देंहटाएंएक सिक्के के दो पहलू
आज टके भाव भी न बिकते हैं
फिर भी आने वाली पीढ़ी के लिए
ईमान के इस खजाने को
नेस्तनाबूद होने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
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"कुछ" को बचाने के संदेश का क्रियांवयन हो तो "बहुत कुछ" बच जाएगा. विचारों को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना.
prabhavshali......
जवाब देंहटाएंprabhavshali......
जवाब देंहटाएंprabhavshali......
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति उम्दा ख़यालखूबसूरत अंदाज़ ...
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना .बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में वास्तविकता पर लिखी सुन्दर रचना ,सुन्दर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट में आपका स्वगत है
वाकई ...कितना कुछ दांव पे लगा है ...अगर हम कुछ भी बचा लें ..तो जीने को अर्थ मिल जाये ..!
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