एक और दिन गुज़र गया
क्या कहूँ इसे
कम हो गया ज़िन्दगी से
या मौत से इश्क फ़रमाने
की दिशा में बढ गया
अरे रे रे ………
इसे निराशा मत कहना
हताशा मत कहना
ज्ञानोदय मत कहना
जीवन दर्शन है ये तो
आशा निराशा से परे
मझधार में चलती कश्ती का
किनारे की तरफ़ प्रवाह
कभी नैराश्य की ओर नहीं धकेलता
यही है सत्य ………यही है सत्य
आवागमन का
फिर चाहे दिवस हो या ज़िन्दगी
अवसान तो होना ही है …………
क्या कहूँ इसे
कम हो गया ज़िन्दगी से
या मौत से इश्क फ़रमाने
की दिशा में बढ गया
अरे रे रे ………
इसे निराशा मत कहना
हताशा मत कहना
ज्ञानोदय मत कहना
जीवन दर्शन है ये तो
आशा निराशा से परे
मझधार में चलती कश्ती का
किनारे की तरफ़ प्रवाह
कभी नैराश्य की ओर नहीं धकेलता
यही है सत्य ………यही है सत्य
आवागमन का
फिर चाहे दिवस हो या ज़िन्दगी
अवसान तो होना ही है …………
फिर चाहे दिवस हो या ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंअवसान तो होना ही है ……
सार्थक बात कही आपने सहज भावों वाली सुंदर कविता....वन्दना जी
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं@ संजय भास्कर
बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने . भावनात्मक अभिव्यक्ति बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
जवाब देंहटाएंगूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना .....
जवाब देंहटाएंहर प्रकृतिजनित जीवन ढलता,
जवाब देंहटाएंतब रात ढली, अब दिन ढलता।
वाह! बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंजब आये हैं तो जाना है,
जवाब देंहटाएंकब अपना यहाँ ठिकाना है.
उदय और अवसान तो कुदरत का नियम है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
युगों का अवसान हुआ
जवाब देंहटाएंपर ............ अवसान के आगे हमेशा उदय है
वाह ! सरल सहज शब्दों में जीवन का सत्य..
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति को शब्द दे दिए गए हैं ....
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