शादी का माहौल हो
तो मस्ती छा ही जाती है
कितना छुपाओ चेहरे से
ख़ुशी झलक ही जाती है
इक दिन ऐसे ही शादी में जाना हुआ
मानो कोई गीत गुनगुनाना हुआ
रोजमर्रा के अख़बार सा चलन लगता है
जब शादी का सीजन चलता है
पडोसी के लड़के की शादी थी
हमें तो सिर्फ इतना भर करना था
बस जाकर शगन पकड़ना था
और दावत पर हाथ साफ़ करना था
अब जायेंगे तो निगाहें
घर पर तो नहीं छोड़ जायेंगे
कुछ न कुछ तो देखेंगे
कुछ किस्से नागवार भी गुजरेंगे
तो कुछ दिल को सुकून भी देंगे
सो हम भी अवलोकन करते घूम रहे थे
कौन क्या कर रहा है देख रहे थे
शादी का आकर्षण
या तो दूल्हा दुल्हन होते हैं
या फिर शादी में घूमती
इठलाती , मचलती कन्याएं होती हैं
जिन की सज धज पर सबकी निगाह होती है
आकर्षण का मुख्य केंद्र होती हैं
तो निगाहें भी बार बार
वहीँ का रुख करती हैं
अब ऐसे में यदि फैशन परेड सी हो जाए
कुछ कैट वॉक करती हसीनाएं दिख जाएँ
तो शादी में पहुँचे कुछ शोहदों की तो निकल पड़ती है
निगाहों में तोला जाता है
जाने क्या क्या टटोला जाता है
जब हसीनाएं बेख़ौफ़ बैक लैस चोली पहनती हैं
जो सिर्फ एक डोरी से बंधी होती है
बेहद खूबसूरत 'हाथ लगाओ तो मैली हो जाए '
ऐसी कोई बाला हो
और ऐसे में यदि
उसके पिता का हाथ ही कुछ कहते हुए
बैक पर पड़ता है
जाने कैसे न पिता को न पुत्री को असर होता है
ये कैसी खोखली आधुनिकता है
ये कैसी अंधानुकरण की प्रवृत्ति है
जहाँ
मर्यादाओं की पगड़ी यूं उछलती हैं
मानो कोई सीता चिता में जलती है
ये देख देश की संस्कृति रोती है
मगर आज आधुनिकीकरण के युग में
न इस तरफ ध्यान कोई देता है
फिर यदि कहीं कोई अनहोनी होती है
तो दोष समाज को मिलता है
बेशक मनचाहा पहनने पर
सबका अपना हक़ होता है
मगर जिस्म की नुमाइश कर
कौन सी आधुनकिता होती है
ये तो समझ से परे होती है
क्या रिश्तों की मर्यादा भी मायने न रखती है
जब पिता का हाथ यदि पुत्री के
अर्धनग्न हिस्से पर पड़ता है
देखने वालों पर क्या असर होता है
न इस तरफ कोई ध्यान देता है
क्योंकि
हर हाल में
स्त्री तो स्त्री ही होती है
अपने स्त्रीत्व के गुणों से भरपूर होती है
ज़रा इस तरफ ध्यान दे
आधुनिकता को अपनाएंगे
तो क्या पिछड़ों की जमात में गिने जायेंगे
ऐसा न कभी होता है
बस एक मर्यादा ही पोषित होती है
और आधुनिकता नग्नता से न उपजती है
जिस दिन ये समझ जायेंगे
शायद कुछ समाज को दे जायेंगे
मगर हमें क्या फर्क पड़ता है
किसी से कह नहीं सकते
कुछ कहने पर
हम पर ही कुछ नागवार कैक्टस
पलटवार करते नज़र आयेंगे
सो हम ने भी आँखों देखा हाल जज़्ब किया
और चुप का ताला मुँह पर जड़ लिया
बस स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया
और घर को प्रस्थान किया
मगर
जाने क्यों
उस लड़की की पीठ पीछा करती रही
रोज सोच पर दस्तक देती रही
न आधुनिकता के खिलाफ हूँ
न स्त्री की स्वतंत्रता के खिलाफ हूँ
स्त्री अधिकारों के लिए लड़ सकती हूँ
मगर स्त्री होकर यही सोच रही हूँ
आखिर जब उसकी वस्त्रहीन पीठ ने
मुझे व्यथित किया
तो यदि ऐसे में किसी पुरुष की कुत्सित निगाह पड़ जाये
तो ……… ?
मेरे अंदर की स्त्री उस लड़की के लिए डरती रही
क्या आज के इस अराजक माहौल में
मेरा डरना जायज नहीं ?
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 15/03/2014 को "हिम-दीप":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1552 पर.
बहुत सटीक और समसामयिक प्रस्तुति...आधुनिकता की दौड़ में हम कहाँ जा रहे हैं?
जवाब देंहटाएंचिन्ता जायज है।
जवाब देंहटाएंHa jayaj hai
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, अभी एक विवाह समारोह में एक दृश्य देखा। एक फोटोग्राफर था, उसने जैसे ही फोटो खींचने के लिए अपना हाथ ऊपर किया वैसे ही उसकी शर्ट ऊपर हुई और पेंट नीचे आ गयी। लो-वेस्ट पेन्ट थी तो वह इतनी नीचे आ गयी थी कि उसके अन्त:वस्त्र से भी नीचे का द्श्य उपस्थित कर रही थी। इसलिए कभी पुरुषों के वस्त्रों पर भी हमें लिखना चाहिए कि वे समाज में कितनी गन्दगी परोस रहे हैं।
जवाब देंहटाएं@smt.ajit gupta ji फ़िलहाल तो जो देखकर महसूसा वो लिख दिया लेकिन आपने जो कहा वो भी गौर करने लायक है उसे भी नकारा नही जा सकता उसे भी स्वीकारा नहीं जा सकता । जो ह्मारी संस्कृति पर आधुनिकता की आड में प्रहार हो रहा है उसे स्वीकारना मतलब गलत को बढावा देना है ।
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