भगतसिंह
काश तुम विचारों में ही ज़िंदा होते
तो एक और इंकलाब कर गए होते
मगर आज के परिदृश्य में
न तुम रहनुमा हो
न पथिक
न साथी
सिर्फ सन्दर्भ भर हो
जिसे २३ मार्च आने पर ही
चिताओं की राख से
उठना है
उड़ना है
और फिर
हवाओं में खो जाना है
क्योंकि
आज प्रासंगिक नहीं हो तुम
न तुम्हारे विचार
न तुम्हारा आंदोलन
किसे परवाह है तुम्हारी शहादत की
कुर्सी पर बैठे
इन कठमुल्लाओं से तुम
क्या उम्मीद करते हो
कि होते होंगे सच में कभी नतमस्तक
तुम्हारी शहादत के प्रति
दो फूल चढ़ाकर तुम्हारी फ़ोटो पर
हो जाती है जिनकी इतिश्री
और फिर उतर जाते हैं
अपनी हवस की नदियों में
हाँ , कुर्सी की हवस की नदियों में
तब याद नहीं आती तुम्हारी कुर्बानी
बंध जाती है विवेक पर
तुच्छ स्वार्थों की पट्टी
और फिर की जाती हैं
तुम्हारे नाम पर गोष्ठियाँ
तुम्हारी शहादत को मिसाल बना
सेंकी जाती हैं अपनी ही रोटियाँ
बताओ भगतसिंह
क्या इसी दिन के लिए हुए थे तुम कुर्बान
क्या इसी दिन के लिए करवाया था देश आज़ाद
इसीलिए कह रही हूँ
अब सिर्फ सन्दर्भ भर रह गए हो तुम
और जानते हो
आज के इस स्वार्थपरक माहौल को देख कर कह सकती हूँ
आने वाले काल में
शायद न रहो प्रासंगिक सन्दर्भों में भी
क्योंकि
आज कोई माँ अपने बच्चे को नहीं सुनाती
गुलामी की दहशत की कहानियां
नहीं बंधाती ढांढस
इकलौते सपूत की कुर्बानी पर
जनता को ये कहकर
एक भगत कुर्बान हुआ तो क्या है
ये करोड़ों भगत तो ज़िंदा है तुम्हारे रूप में
क्योंकि
गुलामी किस चिड़िया का नाम है …… यहाँ कोई नहीं जानता
ये आज की पीढ़ी है
२१ वीं सदी की पीढ़ी
और तुम हो
२० वीं सदी का सिर्फ एक शिलालेख भर
फिर कैसे हो सकता है तारतम्य सदियों के फासलों में
बताओ तो ज़रा
और जानते हो
'सन्दर्भ' जरूरत पड़ने पर सिर्फ प्रयोगों के लिए होते हैं
जीवन में उतारने के लिए नहीं
ये है आज के युग की वास्तविकता
फिर कैसे कहूँ
स्मृतियों में ज़िंदा हो तुम विचार रूप में
सिर्फ इतना ही कह सकती हूँ
शर्मिंदा हूँ अपनी बेचारगी पर
फिर कैसे सिर्फ नतमस्तक हो
कर दूं इतिश्री तुम्हारी शहादत पर
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग-बुलेटिन का बसंती चोला - 800 वीं पोस्ट मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
विचार उद्धत हों, सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ विचारने पर विवश करती पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंक्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं