मौन का स्वर ही नहीं शोर भी होता है ………क्या कभी पहुँचा तुम तक?
स्वर तो अब दस्तक ही नहीं देते …………
मौन के शोर ने अपना अखाडा लगाया हुआ है
हर तरफ़ देखो
मौन का झंझावात कैसे चल रहा है
दसों दिशाओं की हवायें भी कुम्हला गयी हैं
सूरज अपने ताप से आकुल है
क्योंकि वो मौन के ताप को सहने को अभिशप्त है
और तुम हो अभी स्वर पर ही रुके हो
यहाँ तो वजूद का भी पता नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़ मौन के शोर में आकुल
मेरी देह के बीज मेरे मन के बीजों को मथ रहे हैं …………शायद किसी बुद्ध का फिर जन्म हो
स्वर तो अब दस्तक ही नहीं देते …………
मौन के शोर ने अपना अखाडा लगाया हुआ है
हर तरफ़ देखो
मौन का झंझावात कैसे चल रहा है
दसों दिशाओं की हवायें भी कुम्हला गयी हैं
सूरज अपने ताप से आकुल है
क्योंकि वो मौन के ताप को सहने को अभिशप्त है
और तुम हो अभी स्वर पर ही रुके हो
यहाँ तो वजूद का भी पता नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़ मौन के शोर में आकुल
मेरी देह के बीज मेरे मन के बीजों को मथ रहे हैं …………शायद किसी बुद्ध का फिर जन्म हो
मौन ही सौंदर्य है बुद्ध का....... Great poem !
जवाब देंहटाएंMam plz my blog....,
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_14.html
जवाब देंहटाएंसूरज अपने ताप से आकुल है ,,,,क्योंकि वो मौन के ताप को सहने को अभिशप्त है --- जैसे कि हम मौन के झंझावत से जूझते जीते जाते हैं...
जवाब देंहटाएंगंभीर रचना
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तन..
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