घुटन चुप्पी विवशता
और पथरायी आँखें
बिना किसी हल के शून्य में ताक रही हैं
कैसे शेर के कसे हुए जबड़ों में
दबी चीख
घायल हिरण सी
फड़फड़ा रही है
ताको सिर्फ ताको
घूँट भरने को नहीं बची संवेदना
जंगल और जंगली जानवरों का
भीषण हाहाकारी शोर
नहीं फोड़ेगा तुम्हारे कान के परदे
इस समय के असमय होने के साक्षी हो
विकल्प की तलाश में भटकते हुए
अब क्या नाम दोगे इसे तुम ?
सोचना जरा
ये समय की मौत नहीं तो क्या है ?
और पथरायी आँखें
बिना किसी हल के शून्य में ताक रही हैं
कैसे शेर के कसे हुए जबड़ों में
दबी चीख
घायल हिरण सी
फड़फड़ा रही है
ताको सिर्फ ताको
घूँट भरने को नहीं बची संवेदना
जंगल और जंगली जानवरों का
भीषण हाहाकारी शोर
नहीं फोड़ेगा तुम्हारे कान के परदे
इस समय के असमय होने के साक्षी हो
विकल्प की तलाश में भटकते हुए
अब क्या नाम दोगे इसे तुम ?
सोचना जरा
ये समय की मौत नहीं तो क्या है ?
Vandana jee U hit the right notes to bring the pain on....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत मर्मस्पर्शी अहसास...
जवाब देंहटाएंबेहद अंतर मन से व्यक्त किए उद्गार
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