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बुधवार, 29 अप्रैल 2015

मेरी प्यास ... मेरा वजूद


मेरी प्यास 
जब भी बनी 
रेगिस्तान की दुल्हन ही बनी 

हांड़ी जिस भी चूल्हे पर चढ़ी 
तली टूटी ही निकली 

उम्मीद के गरल से तर रहा गला 
अब जरूरी तो नहीं नीलकंठ कहलवा 
खुद को महिमामंडित करना 

मेरा वजूद ही क्या है 
जो प्यास के पैमाने बने और नपें


अस्थि कलश में छंटाक भर ही तो है मेरा वजूद 

5 टिप्‍पणियां:

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया