लेखक
संघ के प्रवक्ता जोर से माइक पर चिल्लाये :
अरे
जागो जागो सोने वालों चलिए आ गया एक बार फिर हो - हल्ला
मचाने का दिन . कुम्भकर्णी नींद में सोये हुओं को जगाने का दिन . बाद
में न कहना अरे बता दिए होते जगा दिए होते . आखिर एक ही दिन की तो बात होती है फिर
तो लम्बी रात होती है 364 दिन लम्बी रात . भई , ये
लेखकों की बिरादरी है जो खास ख़ास दिनों पर जरूर जागती है और उस ख़ास दिन को अपने
लेखन से ख़ास बना उस दिन के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराती है तो कैसे संभव है हम
इस दिन को चूक जाए और जो हाथ में संवेदनशील होने का मौका आया है उसे भुनाने से खुद
को रोक पाएं . इसलिए आज तुम सबको चेताने को हमने सोचा और इस सभा का आयोजन
किया है ताकि तुम सब दल बल के साथ तैयार हो जाओ .
देखो
मजदूर दिवस आ रहा है . अब आ रहा है तो आ रहा है इसमें नया क्या तुम कहोगे लेकिन
उसी बारे में तुम्हें बताना है . यूं तो हर साल आता है लेकिन फिर भी बहुत से
लेखकों को पता ही नहीं चलता तो वो इलज़ाम लगाते हैं हमें बता दिए होते तो हम भी दो
चार रचनाएँ ठेल दिए होते इसलिए इस शिकायत को दूर करने के लिए हमने ये आयोजन रखा है
. अब हमें तुम्हें मई दिवस के बारे में विस्तार से बताते हैं ताकि अगली बार ये न
कहो कि ये तो बताया ही नहीं गया कि आखिर लिखना क्या था .
अरे
भाई ,जब मजदूर दिवस है तो करना ही क्या होता है सिर्फ इतना ही न कि थोडा
उनका दर्द लिखो , उनके फाकों पर अपने प्रतीकों और बिम्बों का मरहम रखो , उनकी
भूख , उनकी पीड़ा , उनकी तकलीफों पर ऐसे दर्द
का गान लिखो कि जो पढ़े वो तुम्हें ही उनका सबसे बड़ा खैर ख्वाह जाने , तुम से
ऊपर न तुम से आगे कोई भी ऐसा किरदार दिखे , बस
होने को मशहूर और क्या चाहिए भला क्योंकि क्या पता कौन सी कविता , कौन सा
व्यंग्य , कौन सी कहानी या कौन सा आलेख तुम्हें कालजयी बना दे और यही तो
होता है अंतिम उद्देश्य कुछ भी रचने का .
देखो
मजदूर दिवस का औचित्य क्या है भले तुम न जानो तो गूगल खंगाल डालो. सारी
जानकारी एक क्लिक की दूरी पर ही तो है . कितना
आसान हो जायेगा फिर लिखना कहना और खुद को हमदर्द सिद्ध करना . वैसे
भी यदि तुम चूक गए तो एक साल के लिए बात चली जाती है इसलिए जरूरी है उस दिन
आन्दोलनकारी कविता कहानी आदि लिखना और संवेदनशीलों की श्रेणी में शामिल होना .
वैसे
भी जरूरी है आज ये स्लोगन : चलो मई दिवस मनाएं , मजदूरों
के हक़ में आवाज़ उठाएं . आखिर हमारा भी फर्ज बनता है , लेखक
कवि की श्रेणी में आते हैं संवेदनशील कहाते हैं , मजदूर
के दर्द , उत्पीडन , तंगहाली , बदहाली
पर एक कविता लिखनी ही होगी . फिर देखना कैसे तुम मजदूरों
के हमदर्दों में शामिल हो जाओगे और उनके लिए हुए आयोजनों में बुलाये जाओगे वहां
अपनी कविता पढ़ आना तुम्हारा भी काम हो जाएगा और आयोजकों का भी . बाकी
मजदूर का क्या है वो कल भी वहीँ था , आज भी
वहीँ है और कल भी वहीँ रहेगा .........ये अकाट्य सत्य है . तो क्यों
न एक दिन के लिए जाग कर अपने सारे लाव लश्कर के साथ कूच किया जाए और लेखनी
को प्रमाणित सिद्ध किया जाए . वैसे भी करना क्या है
उनके दर्द तकलीफों में नमक मिर्च लगाकर परोसना भर ही तो है वो भी ऐसे कि हर आँख नम
हो उठे और हर कोई पूछ बैठे : आपने कैसे इतना सब कुछ लिख
दिया ? क्या आपने ऐसा जीवन देखा है या जीया है ? तब
तुम्हें मौका मिलेगा ऊंची - ऊंची हांक देना . चाहो
तो अपने माँ बाप और अपने बचपन को ऐसे माहौल में जीया बता देना चाहो तो कहना , मैं
तुम्हारा दुःख दर्द जानने और समझने के लिए कुछ वक्त तुम्हारे जैसे लोगों के बीच
रहा तब जाना और तभी मेरी कलम में तुम्हारी पीड़ा जीवंत हो उठी लेकिन मुझे तो लगता
है मैंने तो तुम्हारी पीड़ा का क्षणांश भी नहीं लिखा , मैं तो
तुम्हारे दर्द के बस करीब भर से गुजरा हूँ लेकिन तुम्हारी पीड़ा को व्यक्त कर सकूं
ऐसी सामर्थ्य मेरी लेखनी में नहीं कहते कहते दो आंसू टपका देना बस समझो सारी बाजी
तुम्हारे हाथ आ गयी . समझे या नहीं अब भी ? अरे
भैये कौन से तुम्हारी अंटी से लक्ष्मी देवी खिसक जायेंगी बल्कि ऐसे आयोजनों में
तुम्हारी अंटी में ही आएँगी .
वैसे
अंत में एक सत्य आप सभी को बता दूं गर एक कविता लिखने से मजदूर की ज़िन्दगी बदली
होती तो संसार में कोई क्रांति न हुई होती , उनकी जिंदगियों में परिवर्तन नहीं आया
करता , जब सब ढकोसलों के वस्त्र ओढ़कर बड़े बड़े आयोजन कर लेते हैं तो बहती गंगा में
यदि हम भी हाथ धो लेते हैं तो कौन सा गंगा का जल कम हो जाएगा बल्कि हम सबका नाम भी
उनके हमदर्दों की फेहरिस्त में जुड़ जाएगा , बाकि उसे तो दो रोटी के लिए कल भी
जद्दोजहद करनी पड़ती थी और आज भी करता है ऐसे आयोजनों या ऐसे दिन मनाने से उनकी
ज़िन्दगी में कुछ नहीं बदलता है , तो उन्हें उनके हाल पर छोडो और अपने लेखन से नाता
जोड़ो ........इसलिए एक सत्य ये भी जानो , तुम भी
मजदूर की श्रेणी में आते हो , अरे भाई तुम कलम के मजदूर
हो न ? तो फिर तुम्हारे ही तो भाई बंधू हैं क्या उनके लिए एक दिन
नहीं जाग सकते ? क्या उनके लिए कुछ प्रभावशाली नहीं लिख सकते कम से कम उन्हें
ऐसा तो लगे कि कोई हो न हो लेकिन लेखक संघ उनकी समस्या को सबसे ज्यादा समझता है
तभी तो अपनी कलम में उनका दर्द लिखता है .
बाकी
सारे सत्य तुम्हारे सामने हमने तो रख दिए अब तुम्हारी मर्ज़ी इसे मजदूर दिवस की
मजबूरी समझो या हाथ में आया मौका . भई , हम तो
चले जुगाड़ भिडाने की कोशिश में अब तुम सोचो तुम्हें कैसे इस मौके को भुनाना है और
अपना नाम रौशन करवाना है .
तो
बोलो सब मिलकर : मजदूर दिवस की जय
ाच्छा लगा व्यंग 1मजदूर के बहाने नेताओं के3 जय्1
जवाब देंहटाएंbadhiya vyangya
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