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शुक्रवार, 26 जून 2015

एक नयी सुबह की ओर

नाकामियों के दुशाले 
ओढने और बिछाने के बाद 
दलदल में धंसने से तो बेहतर है 
नाकामियों का पाद पूजन 
क्योंकि 
नहीं हुआ है वो अभी पूरी तरह निराश 
फिर चाहे 
नाकामियों के वृत्त में नहीं है कोई निकास द्वार 
मगर बाकी है उसमे अभी 
एक अदद जिद 

नाकामियों के पैर पूज  
माथे पर तिलक लगा 
लो चल दिया है आज फिर वो 
एक नयी सुबह की ओर 

2 टिप्‍पणियां:

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