नाकामियों के दुशाले
ओढने और बिछाने के बाद
दलदल में धंसने से तो बेहतर है
नाकामियों का पाद पूजन
क्योंकि
नहीं हुआ है वो अभी पूरी तरह निराश
फिर चाहे
नाकामियों के वृत्त में नहीं है कोई निकास द्वार
मगर बाकी है उसमे अभी
एक अदद जिद
नाकामियों के पैर पूज
माथे पर तिलक लगा
लो चल दिया है आज फिर वो
एक नयी सुबह की ओर
ओढने और बिछाने के बाद
दलदल में धंसने से तो बेहतर है
नाकामियों का पाद पूजन
क्योंकि
नहीं हुआ है वो अभी पूरी तरह निराश
फिर चाहे
नाकामियों के वृत्त में नहीं है कोई निकास द्वार
मगर बाकी है उसमे अभी
एक अदद जिद
नाकामियों के पैर पूज
माथे पर तिलक लगा
लो चल दिया है आज फिर वो
एक नयी सुबह की ओर
sundar vichar
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई आपको
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
www.manojbijnori12.blogspot.com