कभी कभी आप अचानक कुछ देखते हो तो सीधा मन को
छूता है और भावों का दरिया बहने लगता है बस ऐसा ही
आजअचानक कवि विजेंद्र जी #VijendraKritiOar की
इस पेंटिंग को देखकर हुआ और ख्याल ने यूँ आकार लिया
........नहीं जानती उस गहराई तक पहुँची भी या नहीं जिस
नज़र से उन्होंने बनाई होगी लेकिन वो कहते हैं सबका हर
चीज को देखने का अपना ही नजरिया होता है तो शायद
यहाँ वो ही बात हुई हो ........तो मित्रों झेलिये मेरा ख्याल :
ये कतरे हुए पंखों से अवशिष्ट
अक्सर मजबूर करते हैं
मनोरोगी बन विचारने को
किस दुविधा में थे तुम कलाकार
जो ज़िन्दगी का अग्र भाग उग्र कर
भर देते हो प्रश्न हजार
और उत्तर रंगों की भीड़ में हो जाता है नदारद
अब क्या कहूं
ज़िन्दगी है तिलिस्म सी या तुमने बनाया है अपना ही एक
तिलिस्म
जिसके हर छोर पर
सूनी इमारतों पर छप्पर सरीखी है वेदनाओं की छत
न कबीर गुनगुनाता है अब और न मीरा
बस अब तो
मुखौटे कर देते हैं अक्सर आतंकित
जहाँ आँखों और मुँह की जगह होते हैं खाली गोलक
नींद का समय है ये
क्या सो सकते हो?
पेंटिंग साभार :
#VijendraKritiOar
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