गुलाम सोच की बेड़ियों को काट
कहो , कि 'आज़ाद हूँ मैं' अब तो
'हे भारतवर्ष की सन्नारियों'
और फिर मनाओ धूम से
देश के स्वतंत्रता दिवस के साथ
खुद की भी आज़ादी का जश्न
शायद मिल जाए दोनों को ही सम्पूर्णता
और गर्व से कह सको तुम भी
ये आधी नहीं पूरी आबादी का है नारा
जय हिन्द जय भारत
जहाँ हर नारी में है बसती
माँ बहन और बेटी
स्वतंत्रता के मायने सिद्ध हो जायेंगे
फिर गर्व से सब कह पाएंगे
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
कहो , कि 'आज़ाद हूँ मैं' अब तो
'हे भारतवर्ष की सन्नारियों'
और फिर मनाओ धूम से
देश के स्वतंत्रता दिवस के साथ
खुद की भी आज़ादी का जश्न
शायद मिल जाए दोनों को ही सम्पूर्णता
और गर्व से कह सको तुम भी
ये आधी नहीं पूरी आबादी का है नारा
जय हिन्द जय भारत
जहाँ हर नारी में है बसती
माँ बहन और बेटी
स्वतंत्रता के मायने सिद्ध हो जायेंगे
फिर गर्व से सब कह पाएंगे
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
बहुत सटीक चिंतन...स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16-08-2015) को "मेरा प्यार है मेरा वतन" (चर्चा अंक-2069) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रतादिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.