ना ही यह मौन गतिहीन हैं ओर ना ही चेतना शून्य ।भीतरी उबाल समय चाहता हैं संवेदनहीनता का प्रतिकार चाहता हैं ।प्रक्रिया भीतरी हैं केवल अनुभूति का विषय हैं ।कविता ने सामयिक पल बारिकी से पकड़े हैं ।बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।बधाई ।
ना ही यह मौन गतिहीन हैं ओर ना ही चेतना शून्य ।भीतरी उबाल समय चाहता हैं संवेदनहीनता का प्रतिकार चाहता हैं ।प्रक्रिया भीतरी हैं केवल अनुभूति का विषय हैं ।कविता ने सामयिक पल बारिकी से पकड़े हैं ।बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।बधाई ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
मौन संवाद का पहला चरण है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
ना ही यह मौन गतिहीन हैं ओर ना ही चेतना शून्य ।भीतरी उबाल समय चाहता हैं संवेदनहीनता का प्रतिकार चाहता हैं ।प्रक्रिया भीतरी हैं केवल अनुभूति का विषय हैं ।कविता ने सामयिक पल बारिकी से पकड़े हैं ।बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंना ही यह मौन गतिहीन हैं ओर ना ही चेतना शून्य ।भीतरी उबाल समय चाहता हैं संवेदनहीनता का प्रतिकार चाहता हैं ।प्रक्रिया भीतरी हैं केवल अनुभूति का विषय हैं ।कविता ने सामयिक पल बारिकी से पकड़े हैं ।बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंachhi kavita
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