हम खुद कुछ कर नहीं सकते
करना आता जो नहीं
मगर यकीन जानिये
जोड़ तोड़ में माहिर हैं
जोड़ तोड़ में माहिर हैं
इसकी टोपी उसके सिर
करना हमारी पुरानी फितरत है
सत्ता परिवर्तन हो या निष्कासन
बाएं हाथ का खेल है हमारे लिए
माहिर हैं हम शतरंजी चालों में
जब भी कोई पैदल चलने की कोशिश करे
अपनी ढाई चालों से कर धराशायी
जीत ही लेते हैं बाजी
सत्ता परिवर्तन हो या निष्कासन
बाएं हाथ का खेल है हमारे लिए
माहिर हैं हम शतरंजी चालों में
जब भी कोई पैदल चलने की कोशिश करे
अपनी ढाई चालों से कर धराशायी
जीत ही लेते हैं बाजी
हम आत्ममुग्ध वर्णसंकर प्रजाति हैं
जो अपने रूप सौन्दर्य से कभी
बाहर ही नहीं आ पाते
तो भला कैसे जाने दुनिया का सौदर्य
हमें चाहिए सुरक्षित ठिकाने
इसीलिए
असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हम
कभी नहीं लांघ पाए सफलता के पहाड़
चलिए कीजिये हमारी जय जयकार
यूँ कि
आज के वक्त की आवाज़ है ये
असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हम
कभी नहीं लांघ पाए सफलता के पहाड़
चलिए कीजिये हमारी जय जयकार
यूँ कि
आज के वक्त की आवाज़ है ये
तीलियों को मिटटी के तेल में डुबाकर ही आग लगाने का चलन है आजकल
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-02-2016 को चर्चा मंच पर विचार करना ही होगा { चर्चा - 2263 } में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 25 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें. और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंमदन मोहन सक्सेना
बहुत बढ़िया लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है आप ने वंदना जी..
जवाब देंहटाएंआशु