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बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

असुरक्षा की भावना

हम खुद कुछ कर नहीं सकते
करना आता जो नहीं
मगर यकीन जानिये
जोड़ तोड़ में माहिर हैं
इसकी टोपी उसके सिर
करना हमारी पुरानी फितरत है

सत्ता परिवर्तन हो या निष्कासन
बाएं हाथ का खेल है हमारे लिए
माहिर हैं हम शतरंजी चालों में
जब भी कोई पैदल चलने की कोशिश करे
अपनी ढाई चालों से कर धराशायी
जीत ही लेते हैं बाजी

हम आत्ममुग्ध वर्णसंकर प्रजाति हैं
जो अपने रूप सौन्दर्य से कभी
बाहर ही नहीं आ पाते
तो भला कैसे जाने दुनिया का सौदर्य

हमें चाहिए सुरक्षित ठिकाने
इसीलिए
असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हम
कभी नहीं लांघ पाए सफलता के पहाड़

चलिए कीजिये हमारी जय जयकार
यूँ कि
आज के वक्त की आवाज़ है ये 
 
तीलियों को मिटटी के तेल में डुबाकर ही आग लगाने का चलन है आजकल




5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-02-2016 को चर्चा मंच पर विचार करना ही होगा { चर्चा - 2263 } में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 25 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें. और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
    मदन मोहन सक्सेना

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सही लिखा है आप ने वंदना जी..

    आशु

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया