कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष तक की यात्रा है ये
आकाशगंगाओं ने खोल लिए हैं केश और चढ़ा ली है प्रत्यंचा
खगोलविद अचम्भे में हैं
ब्रह्माण्ड ने गेंद सम बदल लिया है पाला
ये सृष्टि का पुनर्जन्म है
लिखी जा रही है नयी इबारत मनु स्मृति से परे
ये न इतिहास है न पुराण
चाणक्य की शिखा काट कर टांग दी गयी है नभ पर
प्रतीकों को नहीं बनाना हथियार इस बार
भेस बदलने के चलन को कर निष्कासित
खिल रहा है स्वरूप धरती का
खामोशी की कंटीली डगर एक दुस्वप्न सरीखी
चाहे जितना करे स्यापा
चहक, महल, लहक की उजास से द्विगुणित हो गया सौन्दर्य
मंडप में विराजमान है आदिम सत्ता की राख
नृत्यरत है रक्कासा
देवियाँ बजा रही हैं दुन्दुभी और यक्षिणी फूल
वहाँ रागों के बदल गए हैं सुर
पहले ख्वाब की पहली मोहब्बत सा
ये है उजास का पहला चुम्बन
स्त्रियों के शहर में आज जम के बारिश हुई है
आकाशगंगाओं ने खोल लिए हैं केश और चढ़ा ली है प्रत्यंचा
खगोलविद अचम्भे में हैं
ब्रह्माण्ड ने गेंद सम बदल लिया है पाला
ये सृष्टि का पुनर्जन्म है
लिखी जा रही है नयी इबारत मनु स्मृति से परे
ये न इतिहास है न पुराण
चाणक्य की शिखा काट कर टांग दी गयी है नभ पर
प्रतीकों को नहीं बनाना हथियार इस बार
भेस बदलने के चलन को कर निष्कासित
खिल रहा है स्वरूप धरती का
खामोशी की कंटीली डगर एक दुस्वप्न सरीखी
चाहे जितना करे स्यापा
चहक, महल, लहक की उजास से द्विगुणित हो गया सौन्दर्य
मंडप में विराजमान है आदिम सत्ता की राख
नृत्यरत है रक्कासा
देवियाँ बजा रही हैं दुन्दुभी और यक्षिणी फूल
वहाँ रागों के बदल गए हैं सुर
पहले ख्वाब की पहली मोहब्बत सा
ये है उजास का पहला चुम्बन
स्त्रियों के शहर में आज जम के बारिश हुई है
बदलते हुए समय की और नारी शक्ति के पुनर्जागरण की अद्भुत गाथा..अत्यंत प्रभावशाली रचना..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना व सुन्दर अभिव्यक्ति वंदना जी
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