मरे हुए लोग हाय हाय नहीं करते
मरे हुए लोगों की कोई आवाज़ नहीं होती
मरे हुए लोगों की कोई कम्युनिटी नहीं होती
जो कोशिशों के परचम लहराए
और हरी भरी हो जाए धरा मनोनुकूल
आइये हम अपने लिए शांति पाठ करें
यूँ कहकर
हम शर्मिंदा हैं कि हम मर चुके हैं
बच्चों हम से कोई उम्मीद मत रखना
हम बस तुम्हारे लिए नहीं
स्वयं के लिए
स्वयं को साबित करने के लिए
दो शब्द लिखने को जिंदा होते हैं
और फिर मर जाते हैं
यूँ कहकर
हम शर्मिंदा हैं कि हम मर चुके हैं
बच्चों हम से कोई उम्मीद मत रखना
हम बस तुम्हारे लिए नहीं
स्वयं के लिए
स्वयं को साबित करने के लिए
दो शब्द लिखने को जिंदा होते हैं
और फिर मर जाते हैं
हम भूल चुके हैं
जब एक बच्चा मरता है
तब लाखों उम्मीदें मरती हैं
और करोड़ों संभावनाएं
मरे हुए लोगों को नहीं होता सरोकार किसी जीवित से
फिर एक मरे या सौ
जब एक बच्चा मरता है
तब लाखों उम्मीदें मरती हैं
और करोड़ों संभावनाएं
मरे हुए लोगों को नहीं होता सरोकार किसी जीवित से
फिर एक मरे या सौ
मरना हमारे समय का सबसे सुभीता शब्द है
आइये मरने को राष्ट्रीय शब्द घोषित करें
आइये मरने को राष्ट्रीय शब्द घोषित करें
बेहद दुखद और अफसोसजनक,चिकित्सा विज्ञान कहाँ से कहाँ पहुँच गया है पर अब भी आम आदमी इससे वंचित है
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