इस दौड़ती भागती दुनिया में
समय की धुरी पर ठहरा मन मेरा
कहता है
आ अब लौट चलें
एक बार फिर उसी दौर में
जहाँ पंछियों से रोज मुलाकात हो
मेरे आँगन में रोज उनकी आमद हो
मैं सितार सी बजती फिरूँ
उमंगों का संगीत रूह में बजता रहे
मन की अलंगनी पर
इक ख्वाब रोज नया सजता रहे
वो गली चौराहों पर
अपनेपन के ठहाके गूंजते मिलें
शहर शहर से गले मिल
किलकारियों से सजते मिलें
धर्म जाति से परे
भाईचारे के घुंघरू बजते मिलें
आमीन कहने की न दरकार रहे
यूँ आईनों के चेहरे शफ्फाक रहें
युद्ध के कान खींचकर
शांति बस यही कहे
आ अब लौट चलें
समय की धुरी पर इक नयी रौशन सभ्यता नर्तन करे
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.. ...बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 03 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन गाहे-बगाहे मुश्किल घडी में दिल की घंटी बजाने से बाज नहीं आते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
बहुत ही खूबसूरत मनभावनी रचना.....
जवाब देंहटाएंमन तो सबका यही कहता है पर इसे सुनने की फुरसत किसे है....
वाह!!!!
बहुत सुंदर सृजन है भाव विकल है फिर पीछे लौटने को जहां सुकून था ।
जवाब देंहटाएंवाह।
बहुत बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.
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