जाने किस मोड़ पर छोड़ आयी
आँसू, आहें और दर्द
अब जिद की नोक पर कर रही है नृत्य
प्रज्ञा उसकी
तुम्हारी भौंहों के टेढ़ेपन को बनाकर जमीन
आँसू, आहें और दर्द
अब जिद की नोक पर कर रही है नृत्य
प्रज्ञा उसकी
तुम्हारी भौंहों के टेढ़ेपन को बनाकर जमीन
यूँ ही चलते फिरते खींच रही है वो अपनी लकीर
न तुमसे छोटी और न ही तुमसे बड़ी
न तुमसे छोटी और न ही तुमसे बड़ी
जाने क्यों गुनगुनाहट के घुंघरुओं से दहल उठा है आसमां...
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