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बुधवार, 20 मई 2020

ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ



ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ

इंसान होकर इंसान से ही लड़ रहा हूँ


ये किस तूफां से गुजर रहा हूँ

जब नब्ज़ छूटती जा रही है

ज़िन्दगी फिसलती जा रही है

अब भूख से भी इश्क कर रहा हूँ


ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...


काली रातों की भस्म मल रहा हूँ

उम्मीद के सर्द मौसम से डर रहा हूँ

चिलचिलाती धूप में भी नंगे पाँव चल रहा हूँ

हर गली कूचे शहर में सिर्फ मैं ही मर रहा हूँ

ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...



वो देखो भूख से लड़ रहा है

ज़िन्दगी से बहस कर रहा है

ज़िन्दगी और भूख आमने सामने हैं

मगर न कोई जीत हार रहा है


ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...


वक्त के अजीब पेचोखम हैं

किश्त-दर-किश्त ले रहा है

कल आज और कल के मनुज से

एक नया प्रश्न कर रहा है


ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...

12 टिप्‍पणियां:

  1. एक अज्ञात शत्रु ने मानवता को हतप्रभ कर दिया है, इस युद्ध में हर कोई अपनी-अपनी जगह एक युद्ध में रत है

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  2. ज़िन्दगी का युद्ध तो उसी दिन से शुरू हो जाता है जबकि ज़िन्दगी जन्म लेती है।

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  3. जीवन एक संघर्ष है और हर दिन एक युद्ध है l
    https://yourszindgi.blogspot.com/2020/04/blog-post_29.html?m=0

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  4. युद्ध न करे तो क्या करे ... जीने की जिजीविषा इंसान को मजबूर करती है इस लड़ाई के लिए ... सतत है ये संघर्ष ...

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  5. ज़िंदगी अपने आप में ही एक युद्ध है दोस्त जी। बढ़िया

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  6. जिंदगी हर कदम एक नई जंग है ,बहुत ही बढ़िया

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  8. बहुत सुंदर लिखें है आप

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  9. बहुत सुंदर रचना वंदन जी👌👌👌
    हर कोई युद्ध लड़ रहा है .

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