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सोमवार, 19 जनवरी 2009

प्रेम

प्रेम रस की जब अनुभूति होती है
रोम रोम वाद्य यन्त्र सा झंकृत होता है
प्रेम रस में आप्लावित तन मन
प्रेम के दरिया में आकंठ डूबे होते हैं
जब प्रेमी ह्रदय उडान भरता है
तब प्रेम रस छलक छलक जाता है
प्रेमानंद में डूबे प्रेमी की आंखों में
सिर्फ़ प्यारे की छवि नज़र आती है
जब प्रेम की परिभाषा को बदलते प्रेमी
प्रेम की पराकाष्ठा को चूम लेते हैं
तब अनंत प्रेम के प्रबल प्रवाह में
द्वि का परदा हट जाता है
अब तो प्रेम के सागर में हिलोरें लेते प्रेमी
प्रेम पथ पर,प्रेम की लहरों
की ताल पर नृत्य करते हुए
अपने अनंत में समां जाते हैं

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम ऐसा ही होता है अच्छा लिखा आपने

    जवाब देंहटाएं
  2. vandana ji ,

    prem ki shaandar abhivyakti

    अब तो प्रेम के सागर में हिलोरें लेते प्रेमी
    प्रेम पथ पर,प्रेम की लहरों
    की ताल पर नृत्य करते हुए
    अपने अनंत में समां जाते हैं

    ye pankhitiyan hamen prem ke dusare pahlu ... prabhu se prem ke liye ishaara karten hai ..

    badhai sweekar karen...

    vijay

    जवाब देंहटाएं

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