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रविवार, 29 मार्च 2009

काश !

काश ! दिल न होता
तो यहाँ दर्द न होता

काश ! आँखें न होती
तो इनमें आंसू न होते

काश ! ज़िन्दगी न होती
तो यहाँ कोई मौत न होती

काश ! दिन न होता
तो यहाँ कभी रात न होती

काश ! बसंत न होता
तो यहाँ कभी पतझड़ न होता

काश ! प्यार न होता
तो यहाँ कभी जुदाई न होती

काश ! हम न होते
तो यहाँ कुछ भी न होता

8 टिप्‍पणियां:

  1. काश ये कलम न होती , जज्बात न होते , लोग न होते , न ये कविता होती । कल्पनाशीलता में नकारात्मक प्रभाव क्यों? जबकि अभिव्यक्ति अतिसुन्दर है ।

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  2. ‘काश’ का प्रयोग,

    मन को भा गया है।

    दर्द का रिश्ता,

    हृदय पर छा गया है।।

    प्यार गर सच्चा,

    जुदाई हो नही सकती।

    दिल मिले हो तो,

    विदाई हो नही सकती।।

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  3. अच्छा हुआ जो ऐसा ना हुआ.......फिर ये नज़्म कैसे लिखी जाती !
    बहुत ही बढिया.......

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  4. काश , ये टिप्‍पणी बाक्‍स न होता ... तो हम टिप्‍पणी नहीं कर पाते ... बहुत अच्‍छा लिखा।

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  5. काश ! दिल न होता
    तो यहाँ दर्द न होता

    काश ! आँखें न होती
    तो इनमें आंसू न होते

    aapki israchna ne bhav vibhor kar diya.kaash!main bhi is tarah kii rachna kar paata.dilse badhaai.

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  6. vandana ji ,

    bahut sundar kavita .. specially the effect of kaash ..

    aap yun hi likhte rahe..

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  7. बहुत बढ़िया रचना है और लगता है इसमें कई भेद छुपे हैं


    ---
    तख़लीक़-ए-नज़र

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  8. ये " काश" शब्द दिल को बहुत बार तोड़ता है। पर आपने तो इसका इतना सुन्दर प्रयोग कर एक बेहतरीन रचना ही रच दी।

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