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बुधवार, 1 अप्रैल 2009

दिल चाहता है

दिल चाहता है
शबनम का इक कतरा बन
तेरे अधरों पर सज जाऊं
तू मुझको ऐसे पी जाए
जन्मों की प्यास फिर बुझ जाए
दिल चाहता है
बादलों का काजल बन
तेरे नैनों में बस जाऊँ
तू मुझको ऐसे छुपा ले
दुनिया को भी न नज़र आऊं
दिल चाहता है
सीप का मोती बन
तेरे दिल में बस जाऊँ
मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
फिर तुझको भी न नज़र आऊं

9 टिप्‍पणियां:

  1. bhut acchi kavita
    मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
    फिर तुझको भी न नज़र आऊं

    gargi

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  2. प्रेम में आकंठ डूब जाने की इच्छा बहुत अच्छी अभिव्यक्ति सुन्दर रचना

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  3. क्या बात है वन्दना जी!
    कम शब्दों में बहुत कुछ कह गयी आपकी शायरी।
    दिल चाहता है
    सीप का मोती बन
    तेरे दिल में बस जाऊँ
    मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
    फिर तुझको भी न नज़र आऊं
    बेहतरीन भाव छिपे हैं, उपरोक्त पंक्तियों में।

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  4. दिल चाहता है
    शबनम का इक कतरा बन
    तेरे अधरों पर सज जाऊं
    तू मुझको ऐसे पी जाए
    जन्मों की प्यास फिर बुझ जाए
    rachna padte padte doob gaya behtar rachna ke liye dhanybaad evam badhaai ho.

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  5. प्रिय वन्दना जी!
    दिल तो न जाने क्या-क्या चाहता है।
    परन्तु उसकी हर बात मानी तो नही जा सकती।
    अपने दिल पर काबू रखें।
    यही नेक सलाह है।
    अब आप बहुत मंजा हुआ लिख रही हैं।
    अच्छा लिखने के लिए बधायी।
    स्वीकार करें।

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