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गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

खुली किताब के अक्षर

खुली किताब के भी,अक्षर तो काले होते हैं
अक्षरों का कालापन ही ,ज़िन्दगी की गवाही देता है
हर काले अक्षर में
इक ख्वाब अधूरा दीखता है
कभी किसी अक्षर में
दिल से दिल मिलता है
किसी काले अक्षर में तो
तूफ़ान गुजरता दीखता है
हर अक्षर में किताब की
इक नई कहानी मिलती है
कभी अनकही,
कभी अधूरी,
कभी खामोश,
कभी मदहोश
इक रवानी छुपी दिखती है
कभी किसी अक्षर से
बेवफाई झलकती है
और किसी अक्षर से तो
तन्हाई ही टपकती है
इन अक्षरों में
दिल के कई राज़ छुपे मिलते हैं
ज़िन्दगी के हर पन्ने का
इक सच दिखाते फिरते हैं
अक्षर चाहे काले हों
आइना बन झलकते हैं
खुली किताब के भी
अक्षर तो काले होते हैं

9 टिप्‍पणियां:

  1. काले अक्षर कभी-कभी, तो बहुत सताते है।
    कभी-कभी सुख का, सन्देशा भी दे जाते हैं।

    इनका गहरा दर्द मुझे, अपना सा ही लगता है।
    कभी बेरुखी कभी प्यार से मुझसे बातें करता है।

    अक्षर में ही राज भरे हैं, छिपे बहुत से रूप।
    जख्म जिन्दगी में दे जाता, अक्षर बड़ा अनूप।।

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  2. बहुत सुन्दर रचना है।सुन्दर भाव हैं।बधाई।

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  3. वन्दना जी!
    मैंने आपकी पुरानी रचनाओं का भी अध्ययन-मनन किया है।
    पहले से अब रचनाओं में बहुत निखार आ गया है। परन्तु चिट्ठा जगत पर जिन्दगी का सक्रियता क्रम 800 के ऊपर और जख्म का क्रम 500 से अधिक है।
    आपको अभी लिखने के लिए परिश्रम करना ही होगा। तभी रंजू भाटिया के क्रम के आस-पास आ पाओगी।
    मेरे सुझाव से यदि आपके मन को ठेस लगी हो तो उसके लिए बस एक ही शब्द है-
    SORRY.........

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  4. बहुत अपनापन मिला इस नज़्म में!

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  5. jakhm par aate hain to jakhm milte hain
    jindgi par jate hain to jindgi milti hai
    chaahe kahin bhi jaaoon khushi milti hai
    dono jagah ek khoobsurat rachna milti hai

    sundar rachna ke liye.dhanyvaad.aur badhaai bhi.

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  6. सच आपके पास लिखने के विषयों की कमी नही है। हम सोचते रह जाते है कि किस पर लिखे। सच बेहतरीन लिखा है। खुली किताब के काले अक्षरों के बारें में।

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया