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रविवार, 26 अप्रैल 2009

दास्ताँ

इक दास्ताँ तू कह
इक दास्ताँ मैं कहूँ
फ़साना ख़ुद बन जाएगा
गर ना बना तो
ज़माना बना देगा
तेरी मेरी चाहत को
एक नया नाम दे देगा

इक कहानी तू बन जा
इक कहानी मैं बन जाऊँ
तारीख गवाही दे देगी
तेरी मेरी कहानी को
इक नया आयाम दे देगी

इक सवाल तू बन जा
इक सवाल मैं बन जाऊँ
हल तो मिल ही जाएगा
गर ना मिला तो
तेरे मेरे सवालों को
दुनिया मुकाम दे देगी

11 टिप्‍पणियां:

  1. दास्ताँ, कहानी ओर सवाल तीनों का मेल बड़ा अच्छा लगा .
    -विजय

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  2. फसाना खुद बन जायेगा
    नहीं तो ज़माना बना देगा.........सही है,
    बहुत अच्छी रचना

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  3. एक कहानी मैं बन जाऊँ।
    एक कहानी तुम बन जाओ।।
    मैं रच डालूँ गीत प्यार का।
    तुम इसको निज स्वर में गाओ।।

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  4. इक दास्ताँ तू कह
    इक दास्ताँ मैं कहूँ
    फ़साना ख़ुद बन जाएगा
    गर ना बना तो
    ज़माना बना देगा
    तेरी मेरी चाहत को
    एक नया नाम दे देगा

    सुन्दर रचना है.बधाई .

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  5. बेहतरीन। बीच वाली पंक्तियाँ अच्छी लगी। ये दुनिया हर चीज को एक नाम दे देती है।

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  6. अच्छी सोच।
    वैसे इससे अच्छा होता कि दोनों एक दूसरे के सवालों का जवाब बन जाते।

    ----------
    S.B.A.
    TSALIIM.

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  7. पूरी कविता में कोशिशों की बात , अच्छे
    अंजाम पर मुत्मइन बेफिक्र अंदाज़
    .....अच्छे लगे !

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  8. नमस्कार वंदना जी बहुत खूब लिखती है ,कविता की भाषा बहुत ही साधारण है पर बहुत जान दार शुभ कामनाये ऐसे ही लिकते रहे और कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारे

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  9. बहुत सही फ़रमाया है आपने दास्ताँ कहने की देर जमाना अंजाम खुद दे देगा
    बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखी है
    निरा

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  10. इंतज़ार भी अपने आप में कमाल का होता है,
    वो जब आये सामने तो जुबान पे ताला होता है
    कभी सोम-रस पे भी आयें और पढ़े


    http://somadri.blogspot.com/2009/05/taj-or-tejo.html


    http://som-ras.blogspot.com/2009/05/blog-post.html

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया