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मंगलवार, 10 अगस्त 2010

माँ हूँ ना मैं.......

कभी बेच दिया
कभी नीलाम किया 
कभी अपनों के 
हाथों ही अपनों ने 
शर्मसार किया
कुछ ऐसे मेरे 
बच्चों ने मुझे 
दागदार किया
माँ हूँ ना मैं ........

इनकी धरती माँ
सिर्फ दो दिन ही
इन्हें याद आती हूँ
उसके बाद 
स्वार्थपरता की
कोठरी में कैद 
कर दी जाती हूँ
दिन रात सीने 
पर पाँव रख 
उसूलों, आदर्शों की
बलि चढ़ाकर 
आगे बढ़ते जाते हैं 
मेरे बच्चे ही मेरी 
जिंदा ही चिता 
जलाते हैं
और रोज ही मेरी
आहुति दिए जाते हैं
माँ हूँ ना मैं..........

माँ होती ही 
जलने के लिए है 
माँ होती ही
बलिदान के लिए है
माँ होने का 
क़र्ज़ तो मुझे ही
चुकाना होगा
अपने ही बच्चों के
हाथों एक बार फिर
बिक जाना होगा
अपने आँसू पीकर 
छलनी ह्रदय 
को सींकर 
बच्चों की ख़ुशी 
की खातिर
अपनी आहुति 
देनी होगी 
चाहे बच्चे 
भूल गए हों 
मगर मुझे तो
माँ के फ़र्ज़ को 
निभाना होगा
माँ हूँ ना मैं
आखिर 
माँ हूँ ना मैं.......

21 टिप्‍पणियां:

  1. माँ तेरा
    हर शब्द गूँजता है
    कानो मे सन्गीत बनकर
    जब हुई जरा सी भी दुविधा
    दिया साथ तुमने मीत बनकर।
    माँ तो माँ होती है।
    ऎसी माँ को मेरा शत-शत नमन!!

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  2. माँ के आँचल में जब
    मेरे अस्तित्व ने हाथ
    पैरों को जब फैलाया
    तब अंगड़ाई लेकर
    एक प्रश्न ने सर उठाया?
    मैंने माँ से पूंछा.......
    “माँ! ये दुनिया कितनी बड़ी है ?”
    माँ ने मेरा माथा चूमा,
    सिर को गोद में रखकर बोली
    बस! मेरे आँचल से थोड़ी-सी छोटी है……..
    माँ तो बस! माँ होती है।

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  3. बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना!

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  4. सुभानाल्लाह........बस इतना ही कह पाउँगा ...आज शायद लफ्ज़ कम पड़ गयें हैं |

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  5. मां शिकायत नहीं करती,इसीलिए मां होती है।

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  6. धरती के दर्द को बखूबी लिखा है ...सच ही धरती माँ का दर्द कोई नहीं समझ पाता ...मार्मिक प्रस्तुति

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  7. वंदना जी...

    दर्द छलक आया आँखों से...
    कविता तेरी पढ़कर के...
    माँ के दर्द को कोई माँ ही...
    सबसे ज्यादा खुद समझे...

    माँ के बिन दुनिया में कोई...
    क्या कोई भी आया है.??..
    माँ का ह्रदय दुखा कर कोई..,.
    सुखी कभी हो पाया है..??.

    बहुत सुन्दर कविता...

    दीपक....

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  8. धरती मां के दर्द की बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति !!

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  9. आपकी यह कविता पढ़ कर मन भर गया... कहीं अंदर तक छू गई.... बहुत अच्छी कविता...

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  11. aapki rachnasheelta prashansneeya hai...
    sundar abhivyakti:)
    subhkamnayen...

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  12. बहुत खूब ... धात्री माता की याद आज बस दो दिन ही आती है वो भी इसलिए की छुट्टी मिल जाती है इस दिन .... सब भूल गये हैं आज ... स्वार्थी हो गये हैं ...

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