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सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

मगर अब धारायें मोडने लगी हूँ


कोई भावुक होता है
तो कोई हँसी की आड मे
दर्द छुपा लेता है
होता है सबके साथ ऐसा भी
और मेरे साथ भी होता है
जब दर्द बहता नही
या सब बांध तोड देता है
 मगर उसे भी ज़िन्दगी का
 एक खूबसूरत हिस्सा मान लेती हूँ
 तो सुकून से जी लेती हूं
अरे अरे ……ये क्या सोचने लगे 

नही……… विदुषी नही हूँ
 साधारण हूँ……आम स्त्री
तुम्हारी तरह्………
मगर अब धारायें मोडने लगी हूँ
अब नही डूबती भंवर मे………
अब बहती हूँ प्रवाह के साथ
अब भावुकता पर मैने नारियल का कठोर आवरण ओढ लिया है
जीना आसान हो जाता है………है ना।


35 टिप्‍पणियां:

  1. मगर अब धारायें मोडने लगी हूँ अब नही डूबती भंवर मे……haan kuch chhinte pad hi jate hain

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  2. आपको बहुत बहुत बधाई 'धाराएँ मोड़ने के लिए'

    आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी,वंदना जी.

    आभार.

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  3. aap dhaaraayein modtee hein
    main dhaaraaon ke saath bahtaa hoon

    bahut sundar

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  4. भी तो यह गीत/ग़ज़ल मुझे बहुत प्यारा है --
    तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो
    क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो।

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  5. jindgi ko jis tarah sukoon mile usi aur modna theek hai.bahut umdaa likha hai.

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  6. धाराएँ मोडने से थोड़ा सुकूं तो मिल ही जाता है ..

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  7. सुंदर प्रस्‍तुति।
    गहरे अहसास।

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  8. नारियल जैसा होना अच्छा है... जब तक कठोरता के नीचे भावुकता बची रहे!
    सुन्दर भाव व्यक्त करने के लिए सुन्दर विम्ब चुना है!

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  9. bhavukta par nariyal ka jo kathor aavaran hai wo kis gun ka hai, ye nahi bataya tumne:)....
    kya sahanshakti ka ya vakpatuta ka:)
    ya ignore karne ka:)

    dil ki baat kahi ..
    achchha laga..
    par kuchh jama nahi|!

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  10. नए को इतना प्यार और साथ देने के लिए..... !
    पहले मेरा नमन फिर "धन्यवाद".... !!
    जब दर्द बहता नहीं , तो सब बांध तोड़ देता.... !
    अब भावुकता पर मैंने ,
    नारियल का कठोर आवरण ओढ़ लिया.... !
    जीना आसान हो जाता.....
    बिल्ल्कुल सही धारणाये आपकी.... !!

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  11. बहुत सकारात्मक व भावपूर्ण रचना !

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  12. बहुत गहरी बात कही है आपने...........पर सच तो ये है की मानवीय स्वाभाव कभी नहीं बदलता.........हाँ हम कोशिश या दिखावा ही कर पाते हैं कठोर होने या दिखने का..........पर अन्दर तो वही मासूम दिल रहता है..........क्यूँ सही कहा न मैंने :-))

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  13. pravaah mei bahna aasaan hai. logon ko to yahi kahte suna hai... par mujhe wo hi kathin lagt ahai... jab bhi pravaah mei bahne ki koshish ki ya us naariyal ka kavach odhne ki koshish ki... andar se kahi kisi kone se ek cheekh uthi jisne na mujhe us pravaah mei bahane diya aur wo kavach us cheekh ke gunjan se toot gaya...
    aapki rachna ne bahut kuch kah diya...

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  14. मुझे भी मनोज जी वाला गीत याद आ रहा है.
    आँखों में नमी हंसी लबों पर, क्या हाल है क्या दिखा रहे हो.
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण कविता.

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  15. आवरण में जो है वह सुरक्षित है

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  16. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!
    --
    आजकल आपका यह ब्लॉग खुलने में बहुत देर लगने लगी है! यदि चाहें तो अनावश्यक विजेट हटा दें!

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  17. दर्द को भी जिन्दगी का खुबसूरत हिस्सा मानना ही सुकून की चाबी है...
    खुबसूरत रचना....
    सादर बधाई...

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  18. भावनाओं के उपर कठोर आवरण..अच्छी प्रस्तुति!

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  19. धराये मोड़ना भी कहाँ आसान होता है वंदना जी, निःसंदेह आपका प्रयास प्रसंसनीय है सब में ये शक्ति कहाँ. बरहाल उत्कृष्ट कविता बधाई

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  20. धाराएँ मोड़ने वाले ही इस जग में रेगिस्तानों में भी फूल खिला देते है...बधाई!

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  21. गहरे अहसासो से सजा सशक्त अभिव्यक्ति..

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  22. सच है जिसने दर्द को जीना सीख लिया है .. उसने जीना सीख लिया ... लाजवाब रचना है ..

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  23. ज़िंदगी जीने के तरीक़े इसी प्रकार सोच के साथ बदलते रहते हैं.

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  24. सकारत्मक सोच लिये सुंदर रचना. नारियल का कठोर आवरण ओढ़ने की नूतन कल्पना, बेहतरीन.

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  25. धाराएं मोड़ने नहीं तोड़ने की जरूरत है।

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  26. अच्छी लगी कविता ,वंदना जी |

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया