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गुरुवार, 3 नवंबर 2011

ये आपकी धरोहर है

गर्भनाल का ६० वाँ अंक खास है ..........ये प्रवासी भारतियों का हिंदी के प्रति योगदान को समर्पित अंक है और मेरे पास जिन जिन ब्लोगर्स और लेखकों की जानकारी थी उनके लिंक मैंने देने की कोशिश की है इस अंक में ............फिर भी कुछ लिंक्स रह गए होंगे मैं जानती हूँ और उन सबके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ क्योंकि इस वक्त जो मेरे पास थे वो सब लगा दिए मगर आगामी अंकों में बाकी के ब्लोगर्स के लिंक्स भी आते रहेंगे. 


ये है गर्भनाल का लिंक आप यहाँ जाकर पेज 40-41 पर अपने ब्लोग लिंक देख सकते हैं---------






https://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment?ui=2&ik=83ac09a125&view=att&th=13358aaf09594b16&attid=0.1&disp=inline&realattid=bbdfbf62e7b1362_0.1&safe=1&zw&saduie=AG9B_P-sqdOOtE1oq5h2pgM3cTYR&sadet=1320471128799&sads=MwkmelH3314zBWRIc6FiDAZlbgg


काफी शिकायतें आ रही हैं की ये लिंक खुल नहीं रहा इसलिए वो आलेख यहाँ लगा दिया है जिसे आप सब यहाँ पढ़ सकते हैं.लेकिन पत्रिका में एडिट करके लगाया गया है.



दोस्तों
 हम सब भारतीय हैं और अपनी भारतीयता को किसी भी देश काल  में बांध कर नहीं रख पाते और यही हमारी भारतीय होने की सबसे बड़ी निशानी है . चाहे वतन में रहें या वतन से दूर मगर कभी भी वतन की मिटटी से खुद को जुदा नहीं कर पाते . वतन की मिटटी की खुशबू हमारी धडकनों में हमारी साँसों में ऐसे महकती है कि उसकी खुशबू से हर जगह की मिटटी महकने लगती है और जहाँ भी हम भारतीय जाते हैं वहीँ अपना वतन बना लेते हैं .
आज हम भारतीय विदेशों में भी अपनी संस्कृति का परचम लहराते हैं और अपने देश की आन बान  और शान को ज़िन्दा रखते हैं . यहाँ तक कि विदेशों में भी हम भारतीयों ने अपनी भाषा को ना केवल ज़िन्दा रखा बल्कि उसकी एक पहचान भी बनाई जो हर भारतीय के लिए गौरव की बात है .

आज हर बात कहने के लिए एक माध्यम की जरूरत पड़ती है और जब ब्लॉग बनाने की सुविधा मिली तो हम भारतीय उसमें  भी पीछे नहीं रहे बल्कि हमारे भारतीय भाई - बहनों ने विदेशों में रहते हुए भी अपने ब्लोगों के माध्यम से अपने दिल के हाल हम तक पहुंचाए और ना केवल पहुंचाए बल्कि ब्लोगिंग को एक मुकाम दिया और यहाँ तक पहुँचाया कि आज पत्रिकाओं इत्यादि में उनका जिक्र किया जाता है और ये अपने आप में कोई कम उपलब्धि नहीं है.

आज इसी सन्दर्भ में हम कुछ हिंदी के खास प्रवासी चिट्ठाकारों का जिक्र करते हैं जिन्होंने विदेशों में रहते हुए भी हिंदी को उच्च स्थान दिलाया.

सबसे पहले जिक्र करते हैं हम राज भाटिया जी के ब्लॉग का ............राज भाटिया जी के यूँ तो पांच ब्लॉग हैं ..........ब्लॉग परिवार , नन्हे मुन्ने, छोटी छोटी बातें , मुझे शिकायत है और पराया देश .
इन सबमे मुझे शिकायत है http://sikayaat.blogspot.com/
पर वो देश के हालत से चिंतित दिखाई देते हैं और जो भी अनहोनी घटना घटती है उसमे उसी प्रकार दुखी होते हैं जैसे हम यहाँ रहकर दुखी होते हैं और उसी तरह आम जन की तरह शिकायत करते हैं समाज से ,व्यवस्था से , न्यायपालिका से और जनता से भी.

http://chotichotibaate.blogspot.com/ छोटी छोटी बातें ब्लॉग पर जीवन की उलझनों और आप पास की हकीकत से वाकिफ कराते हैं.
पराया देश ब्लॉग पर http://parayadesh.blogspot.com/2011/08/blog-post.हटमल ज़िन्दगी ने जो दिया उसे साझा करते है ...........कैसे पराये देश में जीने की जद्दोजहद के बीच एक मुकाम बनाया है और फिर एक नया आयाम बनाते हैं यही उनकी जीवटता का परिचायक है.

अब बात करते हैं ब्लोगिंग के पुरोधा समीर लाल जी की जिनसे कोई भी ब्लोगर अपरिचित नहीं . जिन्होंने अपने स्नेहिल व्यवहार से हर ब्लोगर के दिल में एक खास जगह बनाई है . उनके ब्लॉग का नाम है उड़नतश्तरी http://udantashtari.blogspot.कॉम
समीर जी का नजरिया देश दुनिया को देखने का ज़रा हटकर है . ज़िन्दगी के रोजमर्रा के व्यवहार को वो अपने आलेखों , कविताओं में इस तरह पिरोते हैं कि पढने वाला एक सांस में पढता चला जाता है अपने साथ -साथ उसे एक ऐसे जहाँ की सैर करा देते हैं जिससे बाहर आने में व्यक्ति को काफी वक्त लगता है. सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखते बल्कि कभी उसमे दर्द होता है तो कभी आम इन्सान की तकलीफों का जिक्र तो कभी किसी पशु पक्षी की वेदना और कभी राजनितिक उठा पटक पर कोई व्यंग्य जो एक सन्देश भी साथ देता है यही लेखक का असली दायित्व होता है कि वो जो भी लिखे उससे एक बेहतर सन्देश भी जाये समाज में और वो इसमें खरे उतर  रहे हैं. विदेश में रहते हुए भी आज भी अपनी मिटटी से ऐसे जुड़े हैं कि किसी को लगता ही नहीं कि वो यहाँ अपने देश में नहीं रहते . शायद यही सच्चाई है जिसने उन्हें आम से खास बनाया है . अपने देश और हिंदी के प्रति उनका योगदान अतुलनीय है.

अब हम बात करेंगे एक ऐसी शख्सियत की जिन्होंने  मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में गोल्ड मेडल प्राप्त किया और कुछ वक्त टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोडूसर काम  किया मगर घर गृहस्थी में फँसकर कुछ समय के लिए स्वयं को इन सबसे दूर किया वो हैं हमारी सबकी प्रिय ब्लोगर  शिखा जी जो अपने ब्लॉग स्पंदन 

http://shikhakriti.blogspot.कॉ
के माध्यम से अपनी ज़िन्दगी के पन्नो से तो रु-ब-रु तो करवाती ही हैं साथ ही  वहाँ की ज़िन्दगी , वहाँ के लोगों के रहन सहन , संस्कृति और सभ्यता से भी परिचित करती  हैं .
जब से ब्लोगिंग शुरू की है तब से स्वयं को इसके प्रति समर्पित किया है और इस सन्दर्भ में वहाँ ना जाने कितनी गोष्ठियों और कार्यक्रमों में भाग लेकर अपने देश और हिंदी का नाम रौशन किया है . यू के क्षेत्रीय हिंदी सम्मलेन में भाग लेकर विदेश में देश का ना केवल नाम रौशन किया बल्कि विदेशी जमीन पर हिंदी का परचम भी लहराया . ये हिंदी के प्रति उनका मोह ही है जो रुसी , अंग्रेजी भाषाएँ जानते हुए भी वो हिंदी में अपने काम को अंजाम देती हैं और हिंदी के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं.

अब बात करते हैं लन्दन में रहने वाले युवा भारतीय दीपक मशाल की जो रहते बेशक लन्दन में हैं लेकिन हिंदुस्तान को दिल में लिए घूमते हैं. यहाँ का दर्द , यहाँ की तक
 लीफें उन्हें उसी तरह कचोटती हैं जैसे वो वहाँ नहीं यहीं हिंदुस्तान में रह रहे हों और उन मुसीबतों को झेल रहे हों ..........हर विषय पर उनका लेखन उनके ब्लॉग मसि कागद http://swarnimpal.blogspot.com/ पर 
देखने को मिलेगा . लघुकथाएं, आलेख , कवितायेँ , ग़ज़ल हर विधा में महारत हासिल है और हर बार कुछ ना कुछ अपने लेखन में दे जाते हैं जिसे सोचने को इन्सान मजबूर हो जाता है ...........यही उनकी लेखन के प्रति कटिबद्धता है . अपनी एक आम इन्सान की पहचान की दौड़ में खुद को उस मृग की तरह मानते हैं जो कस्तूरी के पीछे भाग रहा है मगर अपने अन्दर ही नहीं ढूँढ पा रहा शायद उनका यही नजरिया उन्हें भीड़ में सबसे अलग बनाता है और विदेश धरती पर रहकर भी हिंदुस्तान और हिंदी से खुद को जोड़े रखना आज के युवा के देशप्रेम को भी दर्शाता है.

अब बात करते हैं एक ऐसी महान शख्सियत की जिन्होंने देश विदेश में अपने लेखन का डंका बजाया  है . 
वेब-प्रोद्यौगिकी (हिन्दी)
"हिन्दी भारत"
वागर्थ
"बालसभा"
पीढियाँ
स्वर-चित्रदीर्घा
चिट्ठा चर्चा
Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श)
इन सारे ब्लोग्स की स्वामिनी कविता वाचकनवी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं . अपने ब्लॉग
http://vaagartha.blogspot.com/ पर देशी बनाम विदेशी मुद्दे  तो कभी सामाजिक ढांचों की वकालत करती कविता जी की सोच बहुत ही परिपक्व है साथ ही लेखन के माध्यम से जन -जाग्रति करती उनकी शख्सियत उन्हें सबसे अलग मुकाम दिलाती है फिर चाहे बात स्त्री विमर्श की हो या नयी टैक्नोलोजी की , बच्चों से सम्बंधित हो या हिंदी की ..........हर जगह कविता जी जिस  प्रतिबद्धता से लिखती हैं और अपने भावों को व्यक्ति करती हैं उसका हर कोई कायल हो जाता है. विदेश में रहकर भी भारतीय संस्कृति और अपनी भाषा के प्रति गहरा लगाव ही उन्हें यू के रहते हुए भी अपने देश से जोड़े रखता है. उनके लिए कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है.

ऑस्ट्रेलिया सिडनी में रहने वाली डॉक्टर भावना कुंवर जी अपने ब्लॉग दिल के दरमियाँ
http://dilkedarmiyan.blogspot.com/2011/08/blog-post_6955.html
पर अपने भावो को इतनी शालीनता से व्यक्त करती हैं कि अहसास ही नहीं होता कि किसी और के भाव हैं यूँ लगता है जैसे खुद को ही पढ़ रहे हों . भावना जी को हाइकू  लिखने में महारत हासिल है . गवाक्ष ,उदंती पत्रिका , वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार की पत्रिका में प्रकाशित हाइकू  ने उन्हें एक अलग ही पहचान दी और दिसम्बर २०१० में इंदौर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका वीना  मासिक में उनके २८ हाइकुओं को स्थान मिला जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. विदेश में रहते हुए भी अपने देश में पहचान बनाना साथ ही विदेशी धरती पर अपनी भारतीय भाषा और संस्कृति को बनाये रखना किसी उपलब्धि से कम नहीं. इसके अलावा सिडनी में आयोजित होने वाले हिंदी के कार्यक्रमों में भाग लेकर हिंदी को बल प्रदान करती हैं जिसका सबसे बेहतर उदाहरण हिंदी की प्रथम पत्रिका हिंदी गौरव के संपादन में महत्तवपूर्ण योगदान दिया साथ ही अपनी कविताओं और आलेखों के माध्यम से भी हिंदी को बढ़ावा दिया .विभिन्न कवि सम्मेलाओं में कविता पाठ करके हिंदी का परचम लहरा रही है जिस पर किसी भी भारतीय को गर्व होगा . विदेशी धरती पर अपने देश का , अपनी संस्कृति और भाषा का परचम लहराना कोई कम उपलब्धि नहीं होती.

विदेशी धरती पर हिंदी का परचम फ़ैलाने वालों में एक नाम राकेश खंडेलवाल जी का भी है जो अमेरिका में रहते हैं मगर दिल में सिर्फ हिंदुस्तान ही बसता है. अपने ब्लॉग गीत कलश 
http://geetkalash.blogspot.com/ और गीतकार कि कलम  
http://geetkarkeekalam.blogspot.com/ पर अपने ह्रदय के भावों को इस तरह उंडेला है जैसे कोई शिल्पकार मूर्ति गढ़ रहा हो. राकेश जी अपना परिचय चाँद लफ़्ज़ों में देते हैं कुछ इस तरह ------"कौन हूँ मैं ये मैं भी नहीं जानता आईने का कोई अक्स बतलायेगा असलियत क्या मेरी, मैं नहीं मानता"
शायद इसीलिए यदि उन्हें जानना है तो उनके ब्लोग्स को पढना पड़ेगा और उनकी सोच , विचारधारा से प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रहेगा.एक उत्कृष्ट लेखन का नमूना है राकेश जी के ब्लॉग और उनकी पोस्ट .शायद यही हम भारतीयों के लिए सम्मान की बात है कि हम कहीं भी रहें मगर अपनी जड़ों से कभी अलग नहीं हो पाते.


दुबई में रहने वाले दिगंबर नसवा जी किसी परिचय के मोहताज नहीं . ब्लॉगजगत में तो उनकी एक खास पहचान है .दिगंबर जी अपने ब्लॉग स्वप्न मेरे 
http://swapnmere.blogspot.com/ पर वो सब ही लिखते हैं जो वो अपनी जगती आँखों से देखते हैं क्यूँकि जगती आँखों से स्वप्न देखना ही उनकी फितरत है.
उनकी कवितायेँ स्वयं बोलती हैं . अपनी कविता आह्वान में उन्होंने जिस तरह शब्दों के माध्यम से आह्वान किया है वो अद्वितीय है .........इसकी एक बानगी देखिये .......
इससे पहले की /दीमक शब्दों को चाट जाए /शब्दों से गिर के अर्थ /आत्महत्या कर लें /इन्हें बाहर लाओ /चमकती धूप दिखाओ /युग परिवर्तन की हवा चलाओ /शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो /क्रान्ति का इंधन बना दो  .
भारतीय कहीं भी रहें अपनी आवाज़ बुलंद करना जानते हैं और कैसे जन- जन तक सन्देश पहुँचाना है उसमे कुशल हस्त हैं .
उनके लेखन में एक तरफ तो  आज के  जीवन के दंश दृष्टिगोचर होते हैं तो दूसरी तरफ एक छटपटाहट उन्हें झकझोरती है खुद को पाने की, कुछ कर गुजरने की, किसी को पाने की.............राजनीति से लेकर आम इन्सान की चिंताओं से लबरेज़ उनका ब्लॉग हर कसौटी पर खरा उतरता है . जीवन की जीवन्तता और विध्वंस सभी का दर्शन होता है.
ब्लॉगजगत के अलावा भी बहुत ही हस्तियाँ हैं जो अपने अपने तरीके से हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए योगदान दे रही हैं . उनमे से हैं रेखा मैत्र जी जो बनारस में जन्मी . हिंदी साहित्य में एम् ए किया और कई कोर्स करने के बाद विधिवत कविता लेखन शुरू किया . फ़िलहाल अमेरिका में हिंदी भाषा के प्रचार के लिए साहित्यिक संस्था उन्मेष के साथ जुडी  हैं और अपने कई कविता संग्रह निकाल  चुकी हैं .

उमेश तम्बी जी का जन्म हुआ तो नागपुर में था मगर इस वक्त वो सोफ्टवेयर के क्षेत्र  में अमेरिका में कार्यरत हैं और बचपन से ही हिंदी के प्रति प्रेम होने की वजह से हास्य और व्यंग्य को अपने लेखन का आधार बनाया साथ ही कुछ समय से अपने अनुभव और विचारों को भी साहित्य और काव्य का रूप देना शुरू किया है.

शब्द्सुधा ब्लॉग http://shabdsudha.blogspot.com/  की रचयिता डॉक्टर सुधा ॐ धींगरा किसी परिचय की मोहताज नहीं .यू के में रहने वाली सुधा जी का व्यक्तित्व आज के प्रवासी भारतीयों ही नहीं इस देश में रहने वाले भारतीयों के लिए भी गौरव की बात है. कौन सा ऐसा क्षेत्र है जिसमे उन्होंने हाथ ना आजमाया हो और अपनी पहचान ना बनाई हो . सुधा जी दूरदर्शन , आकाशवाणी और रंगमंच की एक जानी मानी हस्ती रही हैं साथ ही एक विख्यात पत्रकार भी जो उन्हें सबसे अलग बनाता है. उन्होंने अपने काव्य संग्रह, कहानी संग्रह ना केवल हिंदी बल्कि पंजाबी में भी निकाले और साथ ही अनुवाद भी किया . अब उत्तरी अमेरिका की त्रैमासिक पत्रिका हिंदी चेतना की संपादक हैं और हिंदी विकास मंडल की सचिव . अमेरिका में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों की संयोजक का उत्तरदायित्व भी बखूबी निभाती हैं."प्रथम" शिक्षण संस्थान  की कार्यकारिणी सदस्य एवं उत्पीडित नारियों की सहायक संस्था "विभूति" की सलाहकार भी हैं . ऐसी महान विभूति के लिए तो शब्द भी कम पड़ जाते हैं .
अब एक ऐसे शख्स से मिलवाती हूँ जो कहानी, ग़ज़ल और कविताओं में महारत रखते हैं . पंजाब में जन्मे और यू के में रहने वाले हमारे सबके दिल अजीज श्री प्राण शर्मा जी ने यूँ तो कोई ब्लॉग नहीं बनाया है मगर अपने लेखन से हिंदी के उत्थान  और विकास में लगे हैं. यू. के. से निकलने वाली पत्रिका पुरवाई में ग़ज़ल कैसे लिखी जाये उसके गुर लिखे हैं साथ ही नए शायरों को सिखाई हैं ग़ज़ल की बारीकियां. उनकी रचनायें ना केवल देश और विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं और अख़बारों में छपती हैं बल्कि वो स्वयं सम्मेलनों , मुशायरों , आकाशवाणी के कार्यक्रमों और साहित्यिक गोष्ठियों में जाते हैं बल्कि कई पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं .

लुधियाना में जन्मे वेद मित्र जी ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा हिंदी के प्रचार- प्रसार में ही लगाया है. १९८० से लन्दन में हिंदी पढ़ा रहे हैं और इनके पढाये छात्र उच्च शिखा प्राप्त कर रहे हैं. विदेशियों और भारतीयों को हिंदी सिखाने का पूरा पाठ्यक्रम इन्होने लिखा है जिसके तीन संस्करण छप चुके हैं और इनकी लिखी पुस्तक ४० से अधिक शिक्षण संस्थानों में प्रयुक्त की जा रही है . ब्रिटेन की महारानी ने २००७ में शिक्षा के लिए दिए जा रहे इनके योगदान के लिए इन्हें सम्मानित भी किया है साथ ही जॉन गिलक्रिस्ट हिंदी सम्मान भी इन्हें प्राप्त हुआ है जो किसी उपलब्धि से कम नहीं. अपना जीवन ही जिसने विदेश में हिंदी के लिए समर्पित कर दिया हो उनके आगे तो सभी नतमस्तक हैं.

17 टिप्‍पणियां:

  1. वंदना जी, यह लिंक अभी खुल नही रहा है अभी.
    शायद कुछ प्रोब्लम है.

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  2. वंदना जी बहुत ही अच्छा लेख है आपका ... मैंने इसे गर्भनाल में पढ़ा है ... मैं अपने को इस लायक नहीं समझता जितना आपने लिखा है ... आपका आभारी हूँ बहुत मुझे स्थान देने के लिए ...

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  3. हम्म देख लिया .बढ़िया है .आभार.

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  4. आपकी प्रस्‍तुति है नि:सन्‍देह बेहतरीन होगी ... लिंक्‍स अभी भी नहीं खुल पा रहें हैं ..आपका यह प्रयास अच्‍छा लगा ...बधाई ।

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  5. ये लिंक तो खुलता ही नहीं है वंदना जी|

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  6. @ Rakesh Kumar ,@ रश्मि प्रभा,@ संगीता पुरी @Atul Shrivastava @ सुरेन्द्र "मुल्हिद" @सदा @इमरान अंसारी जी अब ये लिंक खुल जायेगा आप चाहें तो दोबारा देख सकते हैं आप सबको तकलीफ़ हुई उसके लिये माफ़ी चाहती हूँ इसे आप पेज 40-41 पर देख सकते हैं।

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  7. लिंक नहीं खुला ,लेकिन आपके रचनात्मक प्रयास की सराहना करता हूं ।

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  8. आपका पोस्ट मन को भा गया । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  9. धन्यवाद ,पूरा पढ़ने को मिला ,सार्थक प्रस्तुति ।

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  10. बहुत सुंदरता से आपने हमारी धरोहर
    से परिचय करवाया है.

    अच्छे लिंक्स के लिए आभार.

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया