पेज

सोमवार, 9 जनवरी 2012

शायद इसीलिये किसी भी क्षितिज़ पर समानान्तर रेखायें नही मिलतीं



ये कौन सी वक्त ने साज़िश की
देखो साजन
तुम्हारी सजनी
ना तुम्हारी रही
कभी नख से शिख तक
श्रृंगार मे
तुम्हारा ही अक्स
प्रतिबिम्बित होता था
तुम्हारे लिये ही
सजती संवरती थी
हर सांस
हर आहट
हर धडकन
सब तुम्हारे लिये ही
महकते थे
हर पल के
चाहे कितने ही
टुकडे करो
उनमे भी
तुम ही समाये थे
ये प्रीत के
सोपान गढे थे
मगर ना जाने
कैसी साज़िश हुई
वक्त की
सारे राज़ खुलते गये
जिसे समझा था
सीने की धडकन
वो ही धड्कने छीन ले गया
तुम तो कभी
साजन बने ही नही
एक फ़ासले से
साथ चलते रहे
शायद तभी
देहांगन और ह्रदयांगन
एक हुये ही नही
और देखो आज भी
साजन तुम्हारी सजनी ने
मन से , तन से
तुम्हारा त्याग कर दिया
और शायद
तुमने भी उसका
सिर्फ़ ज़रूरतों की जरुरतों ने ही
दोनो को बांधा हुआ है
क्योंकि चाहतें
पूर्ण समर्पण चाहती हैं
और वो भी दोतरफ़ा
एक तरफ़ा प्रेम और समर्पण तो
सिर्फ़ दिव्य होता है
इंसानी चाहतो मे
दोतरफ़ा प्रेम की चाहत
ही ज़िन्दगी को
अर्थ देती है
शायद इसीलिये
किसी भी क्षितिज़ पर
समानान्तर रेखायें नही मिलतीं

25 टिप्‍पणियां:

  1. एक तरफ़ा प्रेम और समर्पण तो सिर्फ़ दिव्य होता है इंसानी चाहतो मे दोतरफ़ा प्रेम की चाहत ही ज़िन्दगी को अर्थ देती है....बहुर सुंदर अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर अभिव्यक्तिकरण
    साभार
    http://vicharbodh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. एकदम व्यावहारिक बात कही है.एकतरफा तो भक्ति हो सकती है, प्रेम नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  4. एक तरफ़ा और दो तरफ़ा प्रेम के रहस्य को कहती अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. jeevan traasdi hai ,rishton ke kshitiz par rekhaayein miltee hee nahee

    जवाब देंहटाएं
  6. दिल में दबे दर्द को शब्द दिए

    जवाब देंहटाएं
  7. मिलने के लिये थोड़ा टेढ़ा होना पड़ता हैं रेखाओं को।

    जवाब देंहटाएं
  8. एक तरफा प्रेम दिव्य हो सकता है पर इंसान की दोतरफ़ा प्रेम और समर्पण ही सार्थक उपलब्धि है..बहुत भावपूर्ण और सशक्त प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  9. इंसानी चाहतो मे दोतरफ़ा प्रेम की चाहत ही ज़िन्दगी को अर्थ देती है ... iktarfe ka kya vajood !

    जवाब देंहटाएं
  10. अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  12. गहरी भावाभिव्‍यक्ति।
    सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  13. एक तरफा और दो तरफा प्रेम को समानांतर रेखाओं के मध्य कुशलता से परिभाषित किया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. अक्सर एकतरफा प्रेम कुर्बान को जाता है अपनी पहचान बनाने से पहले उसे तो दो तरफ़ा होना ही चाहिए बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  15. वन्दना जी, प्रेम तो बस प्रेम होता है...जो प्रेम में पड़ गया वह इसकी फ़िक्र नहीं करता कि उसे प्रतिदान मिल रहा है, जिसमें लेन-देन हो वह प्रेम नहीं कुछ और ही होता है...

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत सुन्दर ..........सच है कुछ रेखाएं कभी नहीं मिलती|

    जवाब देंहटाएं
  18. सुन्दर व्यवहारिक अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  19. सच कहा आपने- चाहते पूर्ण समर्पण चाहती हैं।
    समान्तर रेखायें कभी नहीं मिलती।
    ऐसा सच जो मेरी हृदय की अतल गहराईयों में
    लुप्त हो गया था,आपने प्रकट कर दिया।
    आभार......

    जवाब देंहटाएं
  20. दो तरफ़ा प्रेम ही मंजिल को पाता है ... दो से एक बनाता है ... अन्यथा समानांतर रेखाओं की तरह चलता रहता है ...

    जवाब देंहटाएं
  21. सही कहा है कि एकतरफा तो सिर्फ उस बेनाम शक्ति के लिए ही प्रेम हो सकता है..
    इंसानों में दोतरफा प्रेम होना एक होनी है जिसे टाला नहीं जा सकता..

    प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...

    जवाब देंहटाएं
  22. प्रेम का अपना क्षितिज होता है ....!!

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया