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शनिवार, 14 जनवरी 2012

हँसता गाता मेरा बचपन






निश्छल मधुर सरस बचपन
अब कहाँ से तुझे पाऊँ मैं बचपन
ढूँढ रहा था कब से तुझको
भटक रहा था पाने को कबसे
बेफिक्री के तार कोई फिर से जोड़े
खाएं खेलें हम और सब कुछ भूलें
चिंताओं का अम्बार ना जहाँ हो
भूली बिसरी याद ना जहाँ हो
मस्ती का सारा आलम हो
गर्मी सर्दी की परवाह नहीं हो
बीमारी में भी जोश ना कम हो
बचपन की वो हुल्लड़ बाजी मचाऊँ 
कभी कुछ तोडूं कभी छुप जाऊँ
पर किसी के हाथ ना आऊँ 
कैसे वो ही बचपन लौटा लाऊँ
उम्र भर जुगत भिड़ाता रहा
आज वो बचपन मुझे 
वापस मिल गया 
पचपन में इक आस जगी है
मेरे मन की प्यास  बुझी है 
हँसता गाता बचपन लौट आया है
नाती पोतों की हँसी में खिलखिलाया है 
शैतानियाँ सारी लौट आई हैं
नाती पोतों संग टोली बनाई है
हर फिक्र चिंता फूंक से उड़ाई है 
हर पल पर फिर से जैसे 
निश्छल मुस्कान उभर आई है 
तोतली बातें मन को भायी हैं
अपने पराये की मिटी सीमाएं हैं 
भाव भंगिमाएं भा रही हैं
खेल चाहे बदल गए हैं
कंचे ,गुल्ली डंडे की जगह
कंप्यूटर, क्रिकेट ने ले लिए हैं
पर इनमे भी आनंद समाया है
जो मेरे मन को भाया है 
लडाई झगडे वैसे ही हम करते हैं
जैसे बचपन में करते थे
कभी कट्टी तो कभी अब्बा करते हैं
बचपन के वो ही मधुर रंग सब मिलते हैं 
जो मेरी सोच में पलते हैं 
तभी तो बचपन को दोबारा जीता हूँ
देख देख उसे हर्षित होता हूँ
जब मैं खुद बच्चा बन जाता हूँ
तब बचपन को फिर से पा जाता हूँ 
हाँ मैंने तुझको पा लिया है
बचपन को फिर से जी लिया है
लौट आया वो मेरा बचपन
प्यारा प्यारा मनमोहक बचपन 
निश्छल मधुर सरस बचपन
हँसता गाता मेरा बचपन 

28 टिप्‍पणियां:

  1. Bachpan ki baat hi kuchh aur thi, Shayad pachpan ki baat bhi kuchh aur hi hogi...

    Behtreen rachna..

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  2. बच्चों के मन की बात बड़ों की जुवानी अच्छी लगी बधाई

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  3. बुढ़ापे को बचपन से ही अपनी यादें वापस मिलती हैं ...जवानी को फुर्सत कहाँ ...?
    आभार यादें याद दिलाने का ...!

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  4. हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे ... वैसे जेहन से कभी नहीं जाते !

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  5. हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे ... वैसे जेहन से कभी नहीं जाते !

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  6. बहुत सुंदर रचना और वैसे भी बचपन सबसे प्यारा होता है !
    और जब भी बचपन पर कोई रचना पढता हूँ सहज ही एक नगमा गूंज उठता है !

    ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
    भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
    मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
    वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी !

    बहुत आभार !

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  7. Haaye bachpan..Kahan chala gaya tu.... Kahan bhulta hai wo be'fikri wala pal..Mera bachpan..mera bachpan..

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  8. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  9. भला था कितना अपना बचपन....
    वाह...बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
    नीरज

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  10. वंदना जी,आपकी प्रस्तुति लाजबाब है.
    आपके नाती पोतों का भी इंतजार है.
    आप क्या अभी बच्चों से कम हैं.
    बचपना अंदर हो तो कौन छीन सकता है जी.

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  11. बचपन के बिते हर एक पल का बहूत अच्छा वर्णन किया है
    बहूत सुंदर कविता है...

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  12. बहुत सुन्दर.बचपन यद दिला दी..आभार...

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  13. मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!...

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  14. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  15. bachpan kee yaadon se
    bach nahee paayaa koi kabhee
    kahaan kho gayaa bachpan
    dhoondhte rahte hein sabhee
    bachpan ko khoob yaad kiyaa aapne

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  16. वो खेल वो साथी वो झूले
    वो दौड़ के कहना आ छू ले
    हम आज तलक भी ना भूले
    वो खेल सुहाना,बचपन का
    आया है मुझे फिर याद वो जालिम
    गुजरा जमाना बचपन क......

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  17. बचपन सच में सबसे निराला होता है......

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  18. :):) आज कल मैं भी बचपन जी रही हूँ :) बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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