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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

जाने कितनी बार तलाक लिया



जाने कितनी बार तलाक लिया 
और फिर 
जाने कितनी बार समझौते की बैसाखी पकड़ी 
अपने अहम को खाद पानी न देकर 
बस निर्झर नीर सी बही 
युद्ध के सिपाही सी 
मुस्तैद हो बस 
खुद से ही एक युद्ध करती रही 
ये जानते हुए 
हारे हुए युद्ध की धराशायी योद्धा है वो 
आखिर किसलिए ?
किसलिए हर बार 
हर दांव को 
आखिरी दांव कह खुद को ठगती रही 
कौन जानना चाहता है 
किसे फुर्सत है 
बस एक बंधी बंधाई दिनचर्या 
और बिस्तर एक नित्यकर्म की सलीब 
इससे इतर कौन करे आकलन ?
आखिर क्या अलग करती हो तुम 

वो भी तो जाने 
कितनी परेशानियों से लड़ता झगड़ता है 
आखिर किसलिए 
कभी सोचना इस पर भी 
वो भी तो एक सपना संजोता है 
अपने सुखमय घर का 
आखिर किसलिए 
सबके लिए 
फिर एकतरफा युद्ध क्यों ?
क्या वो किसी योद्धा से कम होता है 
जो सारी गोलियां दाग दी जाती हैं उसके सीने में 

आम ज़िन्दगी का आम आदमी तो कभी 
जान ही नहीं पाता 
रोटी पानी की चिंता से इतर भी होती है कोई ज़िन्दगी 
जैसे तुम एक दिन में लेती हो ३६ बार तलाक 
और डाल देती हो सारे हथियार समर्पण के 
सिर्फ परिवार  के लिए 
तो बताओ भला 
दोनों में से कौन है जो 
ज़िंदगी की जदोजहद से हो परे 
मन के तलाक रेत के महल से जाने कब धराशायी हो जाते हैं 
जब भी दोनों अपने अहम के कोटरों से बाहर निकलते हैं 

आम आदमी हैं , आम ज़िन्दगी है , आम ही रिश्तों की धनक है 
यहाँ टूटता कुछ नहीं है ज़िन्दगी के टूटने तक 
बस बाहरी आवरण कुछ पलों को 
ढांप लेते हैं हकीकतों के लिबास 
तलाक लेने की परम्परा नहीं होती अपने यहाँ 
ये तो वक्ती फितूर कहो या उबलता लावा या निकलती भड़ास 
तारी कर देती है मदिरा का नशा 
दिल दिमाग और आँखों से बहते अश्कों पर 
वरना 
न तुम न वो कभी छाँट पाओगे एक - दूजे में से खुद को 
अहसासों के चश्मों में बहुत पानी बचा होता है 
फिर चाहे कितना ही सूरज का ताप बढ़ता रहे 
शुष्क करने की कूवत उसमे भी कहाँ होती है रिसते नेह के पानी को   



9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25.07.2014) को "भाई-भाई का भाईचारा " (चर्चा अंक-1685)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. सचमुच निःशब्द कर दिया आपने। अद्भुत रचना

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  3. दोनों में से कौन है जो
    ज़िंदगी की जदोजहद से हो परे
    मन के तलाक रेत के महल से जाने कब धराशायी हो जाते हैं
    जब भी दोनों अपने अहम के कोटरों से बाहर निकलते हैं

    जीवन के सत्य को शब्द दे दिये।

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  4. जिंदगी की सच्चाइयों को बहुत सुन्दर मनकों की तरह पिरोया है.

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