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शनिवार, 30 मई 2009

गंध महकती है

गंध महकती है
कभी तेरे अहसासों की
कभी तेरे ख्यालातों की
कभी अनछुई देह की
कभी अनछुए जज्बातों की
कभी बहकती साँसों की
कभी शबनमी आंखों की
कभी कुंवारे रुखसारों की
कभी मचलते शरारों की
कभी शबनमी मुलाकातों की
कभी लरजते अधखुले लबों की
कभी लहराते गेसुओं की
कभी बलखाती तेरी चालों की
कभी लहराते आँचल की
कभी मदमाती चितवन की
गंध महकती है तेरी
बस गंध महकती है

गुरुवार, 28 मई 2009

अंतर्द्वन्द

उदासियों ने आकर घेरा है
शायद किसी द्वंद का फेरा है
अंतर्द्वन्द से जूझ रही हूँ
आत्मा से ये पूछ रही हूँ
ये किन गलियों का फेरा है
ये किसके घर का डेरा है
कौन है जो नज़रों में समाया रहता है
और मिलकर भी नही मिलता है
ये किसकी तड़प तडपाती है
हर पल किसकी याद दिलाती है
ये किसकी छवि दिखाती है
और फिर मटमैली हो जाती है
न जाने किस भ्रमजाल में उलझ रही हूँ
किसका पता मैं पूछ रही हूँ
यही नही समझ पाती हूँ
रो-रो आंसू बहाती हूँ
किसकी गलियों में घूम रही हूँ
दर-दर माथा टेक रही हूँ
कोई भी ना समझ पाता है
किसका ठिकाना ढूंढ रही हूँ
ये किस द्वंद में फंस गई हूँ
ये किस द्वंद में डूब गई हूँ
किसकी राह मैं देख रही हूँ
किसकी चाह में उलझ रही हूँ
कुछ भी समझ न आता है
ये किन गलियों का फेरा है

गुरुवार, 21 मई 2009

माँ ममता और बचपन

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं ।

जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है ।

एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का साया बचपन से ही उठ जाता है वो माँ की ममता के लिए ज़िन्दगी भर तरसते रहते हैं । या कभी कभी ऐसा होता है कि कुछ बच्चों के माँ बाप होते हुए भी वो उनसे अलग रहने को मजबूर हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं । ऐसे में उन बच्चों के वि़कास पर इसका बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है । कुछ बच्चे माँ की माता न मिलने पर बचपन से ही कुंठाग्रस्त हो जाते हैं तो कुछ आत्मकेंद्रित या फिर कुछ अपना आक्रोश किसी न किसी रूप में दूसरों पर उतारते रहते हैं । बचपन वो नींव होता है जिस पर ज़िन्दगी की ईमारत बनती है और यदि नींव डालने के समय ही प्यार की , सुरक्षा की , अपनत्व की कमी रह जाए तो वो ज़िन्दगी भर किसी भी तरह नही भर पाती ।

कोशिश करनी चाहिए की हर बच्चे को माँ का वो सुरक्षित , ममत्व भरा आँचल मिले जिसकी छाँव में उसका बचपन किलकारियां मारता हुआ ,किसी साज़ पर छिडी तरंग की मानिन्द संगीतमय रस बरसाता हुआ आगे बढ़ता जाए, जहाँ उसका सर्वांगीन विकास हो और देश को , समाज को और आने वाली पीढियों को एक सफल व सुदृढ़ व्यक्तित्व मिले ।



जिस मासूम को मिला न कभी
ममता का सागर
फिर कैसे भरेगी उसके
जीवन की गागर
सागर की इक बूँद से
जीवन बन जाता मधुबन
ममता की उस छाँव से
बचपन बन जाता जैसे उपवन
बचपन की बगिया का
हर फूल खिलाना होगा
ममता के आँचल में
उसे छुपाना होगा
ममत्व का अमृत रस
बरसाना होगा
हर बचपन को उसमें
नहलाना होगा

माँ के आँचल सी छाँव
गर मिल जाए हर किसी को
तो फिर कोई कंस न
कोशिश करे मारने की
किसी भी कृष्ण को
अब तो हर कंस को
मरना होगा और
यशोदा सा आँचल
हर कृष्ण का
पलना होगा
आओ एक ऐसी
कोशिश करें हम

मंगलवार, 12 मई 2009

और तुम आज आई हो ...............

दोस्तों ,

आज मैं अपनी १५० वी पोस्ट डाल रही हूँ .आशा करती हूँ हमेशा की तरह इसे भी आपका प्यार मिलेगा।



सिर्फ़ एक चाह थी
जी भर कर तुम्हें देख पाता
दिल की बातें तुमसे कह पाता
कुछ तुम्हारी सुन पाता
कुछ अपनी कह पाता
उम्र गुजार दी हैं मैंने
तुम्हारे इसी इंतज़ार में
सिर्फ़ एक बार मिलन की आस में
तुमसे पहली बार मिलने की चाह में
तुम्हें निगाहों में भर लेने की आस में
अपने वजूद को तुममें ढूंढ पाता
हर पल के इंतज़ार का हिसाब
तुम्हें दिखा पाता
लहू की हर बूँद में लिखा
तुम्हारा नाम , तुम्हें दिखा पाता
सोचो ज़रा , कितना इंतज़ार किया होगा
इक उम्र गुजार दी मैंने
तेरे पिछले जनम के वादे पर
कि , अगले जनम मिलेंगे हम
और तुम आज आई हो .......
और मैं तुम्हें देख भी नही सकता
जब आंखों की रौशनी बुझ चुकी है
हाल - ऐ - दिल बयां भी नही कर सकता
शब्द हलक में अटक गए हैं
अर्थी भी सज चुकी है
बस , आखिरी साँस का इंतज़ार है
और तुम आज आई हो .........
मेरी रूह को सुकून पहुँचाने के लिए
या फिर से तडफाने के लिए
एक और जनम के इंतज़ार में
फिर दर-दर भटकाने के लिए
और तुम आज आई हो ..............

शुक्रवार, 8 मई 2009

अनकहे ख्याल

कुछ ख्याल
आते आते
भटक जाते हैं
अपने ही दायरों में
सिमट जाते हैं
भावों को न
पकड़ पाते हैं
शून्य में ही कहीं
खो जाते हैं
कुछ कहते- कहते
ना जाने
क्या कह जाते हैं
ख्याल पर ख्याल
पलट जाते हैं
भावों के मंथन
की कौन कहे
यहाँ तो लब तक
आते- आते
अल्फाज़ बदल जाते हैं
एक भाव में
दूसरा भाव
उलझ जाता है
शब्दों में ना
बंध पाता है
भावों में बहते-बहते
शब्द भी खो जाते हैं
और फिर
कुछ ख्याल
अनकहे ही
रह जाते हैं

मंगलवार, 5 मई 2009

पैसा ये सिर्फ़ पैसा है

कैसे कैसे रंग दिखाता है
क्या क्या नाच नाचता है
पैसा ये सिर्फ़ पैसा है
किसी का नही होता है
फिर भी
जिसके पीछे पड़ जाता है
उसका सुख चैन उडाता है
पल पल रंग बदलता है
रिश्तों को भी परखता है
किसी के साथ न जाता है
फिर भी हाथ न आता है
जिसके पास भी आता है
उसे आसमान में उडाता है
मगर ख़ुद न कभी बंध पाता है
बस अपना दास बनाता है
अपने रंग में रंग लेता है जब
तब अपने रंग दिखाता है
साँस साँस का मालिक बनकर
बुद्धि को भरमाता है
बुद्धि को जब फेर देता है
होशो-हवास भी छीन लेता है
दुनिया की तो बात ही क्या
दीन धर्म भी छीन लेता है
ज्ञानी जन भी नतमस्तक हो
इसको शीश झुकाते हैं
इसके अद्भुत रंगों से
कोई न बच पाता है
कहीं कम तो कहीं ज्यादा
अपने रंग दिखाता है
धरती का भगवान बनकर
अपनी पूजा करवाता है
पैसा ये सिर्फ़ पैसा है
धर्म, जाति , भाषा से उपर
इसका वैभव दीखता है
बिन पैसे तो भइया
जीवन सूना लगता है
अपने मोहजाल में फंसाकर
अपनों से दूर करता है
इसकी पराकाष्ठा तो देखो
इसके मद में चूर प्राणी
मर्यादा का भी हनन करता है
पैसा ये सिर्फ़ पैसा है
किसी का जो न कभी होता है

शनिवार, 2 मई 2009

तू मानव तो बनना सीख ले

सीता मुझमें ढूँढने वाले
पहले राम तो बनना सीख ले
राम भी बनने से पहले
तू मानव बनना सीख ले
हर सीता को राम मिले
ऐसा यहाँ कब होता है
राम के वेश में ना जाने
कितने रावण हैं विचर रहे
इस दुनिया रुपी वन में
आजाद ना कोई सीता है
कदम कदम पर यहाँ
भयभीत हर इक सीता है
रात के बढ़ते सायों में
महफूज नही कोई सीता है
सीता को ढूँढने वाले मानव
तू नर तो बनना सीख ले
सीता के भक्षक रावणों से
पहले सीता को बचाना सीख ले
पग-पग पर अग्निपरीक्षा लेने वाले
पहले तू मानव तो बनना सीख ले
तू मानव बनना सीख ले ................