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रविवार, 11 सितंबर 2011

महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो

 महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है  हम से ही कतराने लगे हैं वो

आशियाना नया बनाने लगे हैं वो
सुना है दहलीज को सजाने लगे हैं वो

चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
शायद नयी रौशनी लाने लगे हैं वो

गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो

सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो

नए तरन्नुम में गाने लगे हैं वो
सुना है मौसम को बहलाने लगे हैं वो

36 टिप्‍पणियां:

  1. गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
    सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो

    वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !.

    महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
    सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो

    मतला तो बहुत ही खूबसूरत है!

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  2. :):) ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत है ..सब खबर रखी जाती है ..

    जासूसी को मेरी आजमाने लगें हैं वो
    हम पर ही कहर ढाने लगे हैं वो .

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  3. अपने ही कतराने लगते हैं...

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  4. vaah ....mahfile alag jamaane lage hain vo..bahut khoob.achchi ghazal.

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  5. सब समझकर मौन हैं वो।
    क्या कहे अब कौन हैं वो।।
    --
    सुन्दर रचना!

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  6. अब इसीलिए ये छलिये
    बाँध कर रखे जाने लगे हैं ||

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई वंदना जी ||

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  7. जो जाने की ठान ले न संबंधो का भान ले

    सो जाना ही उनका ठीक पराये न रहे नजदीक

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  8. नज़रे मुझ से चुराने लगे हैं वो
    सब्र मेरा आज़माने लगे हैं वो |
    (गुस्‍ताख़ी माफ़)
    बहुत अच्छे!
    शुभकामनायें !

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  9. गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
    सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
    ... badhiya , bahut hi badhiya

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  10. गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
    सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो


    बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई वंदना जी

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  11. वाह ! बहुत सुंदर रचना !
    इशारों में धमकाने लगे हैं वो...बिना बात खिलखिलाने लगे हैं वो..

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  12. सुभानाल्लाह ये अंदाज़ बहुत पसंद आया वंदना जी .......खुबसूरत ग़ज़ल|

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  13. किसने की है ऐसी जुर्रत :)
    बड़ा प्यारा सा गुस्सा और शिकायत ...

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  14. बड़ी खूबसूरती से शब्द दिए...सुन्दर भाव..बधाई.

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  15. really very Nice thoughts our Team Like this.

    Regards Team Bollywood-4u.com

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  16. वाह,नए अंदाज़ की रचना पसंद आई.


    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  17. एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
    संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.

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  18. चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
    शायद नई रौशनी लाने लगे हैं वो .....

    वंदना जी कौन है ये मुआ ....?
    गैरों पे करम अपनों पे सितम ....???

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  19. सब समझकर मौन हैं वो।
    क्या कहे अब कौन हैं वो।।
    --
    सुन्दर रचना!

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  20. महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
    सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो

    क्या कर लेंगें वे कतरा कर.

    आप तो आप ही हैं.

    आपके बिना कोई महफ़िल सज ही
    नहीं पायेगी उनकी.

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