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सोमवार, 26 नवंबर 2012

"कुछ" बचा लो ………

यूँ  तो सब मिट चुका है
हर पन्ने से
स्याही से लिखे हर्फ़ों को
कब तक सहेजे कोई
एक बूँद और सब स्वाहा
मगर जानते हो
उस बूँद में लिखे हर्फ़ों को
पढने की कूवत सबमे नही होती
सुना है …………
तुमने सीखा है
अदृश्य तरंगों को पढना
फिर बूँद में छिपी लिखावट
का अपना कायदा होता है
क्या पढा है कभी उस कायदे को
किया है रियाज़ कभी तुमने
रात के अंधेरों में
तन्हाई के आलम में
सर्द हवा के झोंकों मे सिहरते हुये
या अलाव में जलते हुये
गर किया हो तो करना कोशिश पढने की
शायद तब बाँच सको
अलिखित खत की अबूझ भाषा को
और
"कुछ" बचा लो ………उम्र के दरकने से पहले



6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 27/11/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका चर्चा मंच पर स्वागत है!

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  2. बिल्‍कुल सच कहा आपने ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  3. अबूझ भाषा आ जाए तो सब कुछ ही बच सकता है .... सुंदर प्रस्तुति

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  4. सब छोड़ देने की इच्छा है, खुद छूटने के पहले..

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया