साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका अपनी माटी के जनवरी अंक में प्रकाशित मेरी कवितायें
पीठ पर सदियों को लादे
आखिर कितना चल सकते हो
झुकना लाज़िमी है एक दिन
तो बोझ थोड़ा कम क्यों नहीं कर लेते
या हमेशा के लिए उतार क्यों नहीं देते
और रख लो एक सलीब
आने वाले कल की
पीठ की दु:खती रगों को
कुछ तो सुकून मिलेगा
आगे ऊपर दिये गये लिंक पर पढिये ।
कभी केवल अपने में ही क्यों न खो जायें?
जवाब देंहटाएंवाह॥ सुंदर !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएं