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बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

बचपन के वो कोमल कोमल मासूम हाथ
जिनमें खिलोने और गुडिया होनी चाहिए थी
पढने को किताबें होनी चाहिए थी
दो वक्त की रोटी के लिए
घर में चूल्हा जलाने के लिए
छोटे छोटे हाथों से
लकड़ी का बुरादा
बोरियों में ऐसे भर रहे थे
जैसे कोई सेठ
तिजोरी में
सोना समेट रहा हो
उनके लिए तो शायद
वो बुरादा ही
सोने से बढ़कर था
आंखों में शाम की
रोटी के पलते सपने
ऐसे दिख रहे थे
जैसे किसी प्रेमी को
उसका प्यारा मिल गया हो
बचपन में ही
बड़े होते ये बच्चे
पेट के लिए जुगाड़
करना सीख जाते हैं
और इंसान बड़ा होकर भी
कभी इन्हें न जान पाता है
इन पर अपने सपनो का
महल बना लेता है
अपनी आशाओं को
पंख लगा देता है
अपने दामन को
खुशियों के तोहफों से
तो भर लेता है
मगर इतना नही सोचता कि
जितनी शिद्दत से
हमने ऑस्कर को चाहा है
गर इतनी शिद्दत से
इन मासूमों को चाहा होता
तो ..................................
इनका भविष्य बदल गया होता
मेरे देश को तो तभी
ऑस्कर मिल गया होता

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

कुछ नही बचा अब

अब समटने को कुछ नही है
सब कुछ टूट रहा है
बिखर रहा है
दोनों हाथों से
संभाले रखा था जिसे
वो रिश्ता अब
रेत की मानिन्द बिखर रहा है
कतरा कतरा खुशियों का
समेटा था जिस आँचल में
वो आँचल अब गलने लगा है
कब तक आँचल में पनाह पायेगा
इस आँचल से अब तो खून
रिसने लगा है
कब तक कोई ख़ुद की
आहुति दिए जाए
अपने अरमानों की लकडियों से
हवन किए जाए
अब तो लकडियाँ भी
सीलने लगी हैं
किसी के आंसुओं में
भीगने लगी हैं
फिर कैसे इन लकडियों को जलाएं
अरमानों की अर्थी को
कौन से फूलों से सजाएं
अब समेटने को कुछ नही है
मैं तो हाड़ मांस का वो लोथडा हूँ
जिसके पास दिल ही नही
मगर फिर भी
सबके दर्द में तड़पता हूँ
मुझे तो आह भरने का भी अधिकार नही
मगर फिर भी
सबके लिए मैं रोता हूँ
मुझे तो ख्वाब देखने का भी अधिकार नही
मगर फिर भी
सबके ख्वाब मैं पूरे करता हूँ

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

पिंजरे का पंछी

पिंजरे का पंछी
उडान चाहे जितनी भर ले
मगर लौट कर वापस
जरूर आता है
ये पंछी न जाने
कहाँ कहाँ भटकता है
हर ओर सहारा
ढूंढता है
मगर हर तरफ़
निराशा ही निराशा है
हर ओर
तबाही ही तबाही है
कहीं कोई नीड़ नही ऐसा
जहाँ एक और
घोंसला बनाया जाए
थक कर , हार कर
टूट कर गिरने से पहले
फिर उसी
पिंजरे की ओर भागता है
उसे पिंजरे का मोल
अब समझ आता है
जहाँ उसे वो सब मिला
जिसकी चाह में उसने
उड़ान भरी
पिंजरे को तोड़कर
भागना चाहा
मगर इस पिंजरे में
उसे जो सुकून मिला
वो तो सारी कायनात
में न मिला
जानते हो.................
ये पिंजरा कौन सा है ............
ये है प्रेम का पिंजरा
ये है समर्पण का पिंजरा
भावनाओं का पिंजरा
अपने अस्तित्व का पिंजरा
त्याग का पिंजरा
अहसासों का पिंजरा
जहाँ ये सब मिलकर
इस पिंजरे को
नया रूप देते हैं
इसे रहने के
काबिल बनाते हैं
क्यूंकि
ये पिंजरा अनमोल है

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

जब दोस्त की जरूरत थी ............................

वो जो
दोस्त
हमसाया
बनने आया था
ख्वाबों को
पंख देने आया था
दोस्ती को
नया नाम
देने आया था
अपने अहसासों को
अपने दर्द को
अपने ख्वाबों को
अपनी खुशी औ गम को
अपने आंसुओं को
अपने ख्यालों को
बरसा कर
चला गया
और जो
हम पर बीती
उस जाने बिना
मेरे दर्द को
पहचाने बिना
मुझसे मेरा
हाल जाने बिना
मेरे ग़मों को
सुने बिना
मेरी खामोशी को
जिए बिना
मुझसे मेरे
आंसुओं का
सबब पूछे बिना
मेरे जज्बातों
से खेलकर
अपनी आपबीती
सुनाकर
हमको दर्द के
दरिया में
डुबाकर
न भूलने वाला
ज़ख्म देकर
एक आजाद
पंछी की मानिन्द
आकाश में
ऊँचाइयों को
नापने के लिए
अपने पंखों को
नई परवाज़
देने के लिए
उड़ गया
और हम यहाँ
खामोशी से
दोस्ती का
फ़र्ज़ निभाते रहे
उसके लिए
खुदा से
दुआ मांगते रहे

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

आह

आज आँख से आंसू नही खून निकला है
शायद दर्द अब कुछ और बढ़ गया है ।


अब मोहब्बत की किताब को बंद कर दिया है
शायद मोहब्बत शब्द का अब अर्थ बदल गया है ।


कौन सूखे हुए फूलों से दोस्ती करता है
शायद दोस्ती का अब रंग बदल गया है ।


अब तो आह भी आह नही करती
शायद आह का भी अब ढंग बदल गया है ।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

वो पहली छुअन

वो पहली छुअन
चाहे तन की हो
या मन की
ज़िन्दगी भर
यादों के झरोखों में ,
अहसासों के दामन में
जिंदा रहती है
हर याद
हर अहसास
इंसान भूल जाता है
वक्त के साथ
मगर
पहली छुअन
दिल के किसी
खास कोने में
सिमटी होती है
ज़रा सा
दिल को टटोलो
ओर वो अहसास
जो ताजगी से
सराबोर होते हैं
फिर उसी खास पल में
ले जाते हैं
जब दिल में
उस छुअन ने
दस्तक दी थी
तन की छुअन से ज्यादा
मन की छुअन
यादों में
बहुत गहरे
कहीं महफूज़ होती है
उसका अहसास
कुछ खास होता है
कोई हर पल
अपने आस पास
होता है
बस यही तो प्रेम का पहला आभास होता है 

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

क्या तुम्हें आज भी याद है

क्या तुम आज भी
मुझे याद करते हो
क्या तुम्हें मेरा वो अल्हड़पन
आज भी याद है
क्या तुम्हें मेरे उस
इंतज़ार का अहसास है
जो मैं किया करती थी
तुम्हारे लिए
पल पल ख्वाब बुनती थी
तुम्हारे लिए
क्या तुम्हें आज भी याद है
वो छत पर
मदमस्त होकर
बारिश में भीगना मेरा
क्या तुम्हें आज भी याद है
मेरा रूठ जाना
बिना बात पर
और फिर तुम
मुझे मनाते थे
कभी हंसकर तो
कभी ख़ुद रोकर
क्या तुम्हें आज भी याद है
घंटों छत पर
पड़े पड़े तारों को निहारना
उनमें अपने ख्वाबों को देखना
कुछ नए ख्वाब सजाना मेरा
और उन ख्वाबों को
पूरा करने का
वादा करना तेरा
क्या तुम्हें आज भी याद है
मेरे अन्दर की उस
बच्ची के अहसास
जो अल्हड सी
सारे जहाँ को
अपने में समेटे
ख्वाबों में जीती थी
और आज भी उन्ही
लम्हों को जीना चाहती है
क्यूंकि आज भी वो अल्हड बच्ची
मुझमें कहीं जिंदा है
वो अब भी बड़ी नही हुयी है
क्या तुम्हें आज भी याद है
उस बच्ची को फिर से
कैसे उसी अल्हड़ता में
जीना सिखाना है
उसे फिर से उसी
दुनिया से मिलाना है
जहाँ वो तुम्हारे साथ
उन लम्हों को
फिर से जी सके
ज़िन्दगी के उस रस
को पी सके
क्या तुम्हें आज भी याद है ??????

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

वैलेंटाइन डे --------------प्यार का दिन

रातों को नींद नही आती
होठों पर उसका नाम होता है
आंखों में उसके ख्वाब होते हैं
दिल में उसका ख्याल होता है
प्यार करने वालों का
शायद यही हाल होता है
इसीलिए ----------
प्यार के लिए कोई मौसम नही होता
क्यूंकि
प्यार सिर्फ़ एक दिन में सिमटा नही होता
प्यार प्यार होता है
किसी खास दिन के लिए बंधा नही होता
प्यार करने वालों के लिए
दिन खास नही होता
प्यार करने वालों के लिए
हर दिन प्यार का दिन होता है
प्यार करने वाले दिनों के
बंधनों में नही जकडे जाते
वो तो सिर्फ़ प्यार करते हैं
प्यार में जीते और प्यार में मरते हैं
प्यार करने वाले कब
दिनों के फेर में पड़ते हैं
उनके दिन रात तो सिर्फ़
प्यार में कटते हैं
ऐसे में कौन दिनों को गिनता है
प्यार करने वाला तो सिर्फ़
प्यार के लम्हों में जीता है

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

मोहब्बत ऐसे भी होती है शायद

न तुमने मुझे देखा
न कभी हम मिले
फिर भी न जाने कैसे
दिल मिल गए
सिर्फ़ जज़्बात हमने
गढे थे पन्नो पर
और वो ही हमारी
दिल की आवाज़ बन गए
बिना देखे भी
बिना इज़हार किए भी
शायद प्यार होता है
प्यार का शायद
ये भी इक मुकाम होता है
मोहब्बत ऐसे भी की जाती है
या शायद ये ही
मोहब्बत होती है
कभी मीरा सी
कभी राधा सी
मोहब्बत हर
तरह से होती है

सुलगते पत्थर

मैंने पत्थरों को सुलगते देखा है
उनके दर्द को महसूस किया है
पत्थरों के गम में शरीक
पत्थरों के सिवा नही कोई
उनके अहसासों को
समझने का अहसास कौन करे
पत्थर किसे सुनाते हाल-ऐ-दिल
दिलों के दरवाज़े तो
पहले ही बंद थे
पत्थरों की खामोशी
में छुपा दर्द
पल पल उन्हें सुलगाता है
इन पल पल सुलगते
पत्थरों के लिए
कौन रोता है
आंसू गिरता है
मैंने पत्थरों को सुलगते देखा है

क़र्ज़ अहसासों का

हर क़र्ज़ अहसासों का भी चुकाना होगा
अहसास क्यूंकि अभी जिंदा हैं
अहसासों से परे जाने से पहले
अहसासों को भी सुलाना होगा
किसी मिटटी में दबाना होगा
जहाँ से फिर कोई अहसास जन्म न ले
हर अहसास इक ज़ख्म बन जाता है
अब इन अहसासों की दवा न करनी होगी
अहसासों को अब दवा बिन सूखना होगा
दवा के पानी से न इन्हें सींचना होगा
सूखे हुए अहसासों को फिर
भुरभुराकर रेत में दबाना होगा
हर अहसास का अहसास मिटाना होगा
कुछ इस तरह इन जिंदा अहसासों का
क़र्ज़ चुकाना होगा

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

सुकून

ज़िन्दगी दो पल चैन से
हमें जीने नही देती
और तेरा ख्याल
हमें मरने नही देता
मुश्किल से मिले पलों को
संजोने नही देती
मेरी बातें अधूरी रह जाती हैं
ख्वाब अधूरे रह जाते हैं
अरमान अधूरे रह जाते हैं
हमारा साथ अधूरा रह जाता है
पल पल मिलने को
तरसते बेचैन दिलों को
क्यूँ करार आने नही देती
क्यूँ ज़िन्दगी दो पल चैन से
हमें जीने नही देती
कुछ तेरी आंखों की नमी को
होठों की कशिश को
चेहरे के तबस्सुम को
गालों की लाली को
तेरे बहकते हुए जज्बातों को
बरसने नही देती
क्यूँ ज़िन्दगी दो पल हमें
चैन से जीने नही देती
कभी तू करे इंतज़ार
कभी मैं करूँ इंतज़ार
इस इंतज़ार करने में
ज़िन्दगी हुयी तमाम
अब रूहों को
खामोशी से
जन्नत में मिलने
का है इंतज़ार
तब तो शायद ज़िन्दगी
खामोश हो जायेगी
रूहों के मिलन मैं
न आडे आएगी
कुछ पलों के लिए ही सही
रूहों को सुकून तो मिलेगा
जो ज़िन्दगी ने न दिया
वो मौत दे जायेगी

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

अपने अपने किनारे

नदी के दो किनारों को देखा है कभी
साथ साथ चलते हुए भी
कभी मिलते हैं क्या
ज़िन्दगी भर का साथ होता है
मगर फिर भी मिलने को तरसते हैं
फिर क्यूँ तुम नही समझते हो
हमारा साथ नदी के किनारों सा है
जो साथ रहकर भी कभी नही मिलते
भावनाओं की लहरों के सेतु पर
सिर्फ़ भावनाएं ही हमें मिलाती हैं
न मिलने की पीड़ा से क्यूँ तड़पते हो
शुक्र है साथ साथ तो चलते हो
अपने अपने तटबंधों से बंधे हम
तुम क्यूँ उन्हें तोड़ने की नाकाम कोशिश करते हो
क्या तब तुम मुझे पा सकोगे
नहीं, कभी नही
तब तो तुम्हारा आकाश
और बिखर जाएगा
जिन भावों को,दर्द को
पीड़ा को , आंसुओं को
तुमने अपने किनारों में
समेटा हुआ था
वो चारों तरफ़ फ़ैल जायेंगे
और तुम एक बार फिर उन्हें समेटना चाहोगे
फिर एक बार किसी
तटबंध में बंधना चाहोगे
मगर हर बार
तटबंध उतने मजबूत नही बनते
गर बनते भी हैं तो
अहसास मर चुके होते हैं
जज़्बात ख़त्म हो जाते हैं
वहां सिर्फ़ और सिर्फ़
कंक्रीट की दीवार होती है
जहाँ सब खामोश हो जाते हैं
मीलों तक फैली खामोशी
सिर्फ़ चुपचाप चलते जाना
बिना रुके, बिना सोचे
बिना किसी अहसास के
सिर्फ़ चलते जाना है
तुम क्यूँ ऐसा चाहते हो
क्यूँ नही अपने आकाश में
खुश रह पाते हो
हर बार मिलन हो
ये जरूरी तो नही
बिना मिले भी हम
एक दूसरे को देख पाते हैं
भावनाओं को एक दूसरे
तक पहुँचा पाते हैं
इतना क्या कम है
कम से कम साथ
होने का अहसास तो है
ज़िन्दगी भर की खामोशी
से तो अच्छा है
दूर से ही सही
दीदार तो मिला
कुछ पल का ही सही
तेरा साथ तो मिला
आओ एक बार फिर हम
अपने अपने किनारों में सिमटे
दूर रहकर भी
साथ होने के
अहसास में भीग जाएँ

कुछ करूँ तेरे लिए

आ आंखों ही आंखों में
तेरी आत्मा को चूम लूँ
बिना तेरा स्पर्श किए
तेरे हर अहसास को छू लूँ
बिना तेरा नाम लिए
तेरी ज़िन्दगी को रोशन कर दूँ
तेरे हर ख्वाब को
बिना तेरे देखे पूरा कर दूँ
तेरे हर ज़ख्म को
बिना तुझ तक पहुंचे
अपने सीने में छुपा लूँ
तेरी हर साँस पर
अपनी सांसों का पहरा लगा दूँ
तेरे हर मचलते अरमान को
बिना तेरे जाने
अपने आगोश में ले लूँ
तेरी हर उदासी को
बिना तुझ तक पहुंचे
ख़ुद में समेट लूँ
तेरी आत्मा के हर बोझ को
बिना तेरे झेले
मैं ख़ुद उठा लूँ
आ तेरी रूह की थकन को
कुछ सुकून पहुँचा दूँ

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

आओ मेरे ...............

आओ मेरे ...................
तुम्हें क्या नाम दूँ
तुम मेरे क्या हो
ये कैसे बता दूँ
आओ तुम्हें
दिल की धड़कनें सुना दूँ
तुम्हें दिल के साज़ की
आवाज़ बना दूँ
आओ मेरे साहिल
तुम्हें मौजों से मिला दूँ
तेरे प्यार की कश्ती को
कहो कैसे मैं डूबा दूँ
तुम मेरे क्या हो
ये कैसे मैं बता दूँ
आओ मेरे .................
तुम्हें रूह में बसा लूँ
रूह की प्यास को
कुछ ऐसे बुझा दूँ
तुम तुम न रहो
कुछ ऐसे समा लूँ
तुम मेरे क्या हो
ये कैसे मैं बता दूँ
आओ मेरे ...................
तुम्हें नैनों में बसा लूँ
पलकों को बंद करके
तुम्हें नैनो में छुपा लूँ
आओ मेरे प्रियतम
तुम्हें तुमसे मिला दूँ
अपनी अंखियों में
तेरा अक्स दिखा दूँ
आओ मेरे ..............
तुम्हें क्या नाम दूँ
तुम मेरे क्या हो
ये कैसे मैं बता दूँ

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

ये इश्क है

इश्क इन्सान की जरूरत
कब बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क करते करते इश्क
कब खुदा बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क की खातिर
कब जान चली जाती है
पता ही नही चलता
इश्क की गली में
दुनिया को कब भूल जाते हैं
पता ही नही चलता
इश्क ही खाना
इश्क ही पीना
इश्क ही सोना
इश्क ही रोना
इश्क ही हँसना
इश्क ही ख्वाब
इश्क ही हकीकत
कब बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क के दरिया में
डूबकर भी
दिल की प्यास
कायम रहती है
इश्क के पागलों को
कब खुदा मिल जाता है
पता ही नही चलता

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

किश्तें

उधार की ज़िन्दगी
किश्तों में चुकती है
हर पल उधार की तलवार
सिर पर लटकती है
ज़िन्दगी हर किश्त में
तिनके सी
पल पल बिखरती है
इस पल पल बिखरती
ज़िन्दगी से
उधारी तब भी न
चुकती है
ये कैसा उधार है
ये कैसी किश्तें हैं
देते देते ज़िन्दगी
कम पड़ जाती है
मगर
किश्तें कम नही होतीं
हर किश्त पर गुमान होता है
अब इस उधार से
मुक्त हो जायेंगे
पर हर किश्त के बाद
उधारी तब भी
क्यूँ खड़ी रह जाती है
ये पल पल कम पड़ती ज़िन्दगी
उधारी बढाती जाती है
और किश्तें देते देते हम
फिर उसी क़र्ज़ में
डूबे हुए
मौत के आगोश में
सो जाते हैं
फिर एक बार
उधार चुकाने के लिए
किश्तों में
ज़िन्दगी बुलाती है
और हम
बंधुआ मजदूर की मानिन्द
चुकाने को मजबूर हो जाते हैं