मैं - किसके लिए क्या हूँ ?
मेरा क्या अस्तित्व है ?
आज प्रश्न मुखर हो उठे हैं ।
ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर हर रूप में कभी सिर्फ़ मेरा ही अस्तित्व था । बिना मेरी सहमति के , बिना मेरी इच्छा के कोई कार्य नही होता था । जैसे सबके जीवन की धुरी थी मैं । एक सुकून सा था दिल में । कभी पति की सहचरी बनी,कभी उसकी दोस्त , कभी उसके जूनून का शिकार हुयी तो कभी उसके अहम् का । मगर हर रूप में उसका साथ देती ही गई और हर ज्यादती भी बर्दाश्त करती गई । कभी बच्चों के लिए सिर्फ़ माँ बनी तो कभी उनकी दोस्त। हर हाल में जीना सिखाया , ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया , गिरने पर अपने आँचल का साया दिया । हर पल बच्चों और पति की खुशियों में बंटती रही । उन्ही की खुशियों के लिए जीती रही , मरती रही । हर गम हर आंसू पीती गई , सहती गई और उफ़ भी नही की ।
और आज उम्र के इस पड़ाव पर सब ओर से दुत्कारी गई । कभी जिस पति का अस्तित्व थी उसी के लिए बेनाम हो गई । कभी जिन बच्चों के लिए ज़िन्दगी की हर खुशी हँसते हँसते न्योछावर करती गई आज उनके जीवन में एक अवांछित वस्तु के सिवा कुछ भी नही ।
क्या ज़िन्दगी भर की तपस्या का यही फल मिलता है ? एक कांच के टूटे हुए टुकडों सा दिल बंटता है । आज लगा किसके लिए जीती रही ?क्यूँ अपना जीवन कुर्बान करती रही ? क्या उनके जीवन में आज मेरा कोई अस्तित्व ही नही ? फिर ज़िन्दगी से मैंने क्या पाया ? ज़िन्दगी भर सिर्फ़ देती ही रही-कभी प्यार , दुलार , ममता तो कभी आर्शीवाद। मगर उसका सिला आज ये मिला ।
क्या आज मैं घर के कोने में पड़ी एक अवांछित वस्तु से ज्यादा नही ?
क्या अब मुझे इस सत्य को स्वीकारना होगा ?
क्या मुझे अब ज़िन्दगी को गुजारने के लिए एक नए सिरे से सोचना होगा ?
क्या कभी मेरा भी कोई अस्तित्व होगा ?
न जाने कितने अनुत्तरित प्रश्न मुखर हो उठे हैं ।
शायद अब उम्र के इस पड़ाव पर इन प्रश्नों का उत्तर खोजना होगा ।
12 टिप्पणियां:
अपने जब गैर बन जाते हैं
तो पहले होता है गम
फिर मिलता है एक आधार जीवन को समझने का
जाने कितनी गुथ्थियाँ सुलझ जाती हैं
एक नज़रिया मिलता है जानने का
अपनों की पहचान क्या है !
फिर मिलता है एक विस्तार
अनगिनत अनजाने चेहरे अपने
बहुत अपने बन जाते हैं........
और यही होता है सत्य!
ज़िन्दगी हर पड़ाव पर एक अलग पहचान देती है,स्व को जानने के नए आधार,
ऐसा प्रश्न कितनों के आगे है,कोई कह देता है,कोई छुपा लेता है,
अपने अस्तित्व का जो अर्थ ढूंढ ले,उसीकी जीत है
वन्दना जी ।
आपने तो जीवन का वो पृष्ठ खोल कर सामने रख दिया। जिसे हर व्यक्ति छिपाता रहता है। आपका साहस काबिले-तारीफ है।
समय की प्रतीक्षा करो, सब ठीक हो जायेगा।
bahuton ka sach aapne shabdon mein dhaal kar saamne rakh diya.....ye prashn kabhi na kabhi sabhee ke jeevan mein aa hee jaate hain....
सब शुभ हो ऐसी कामना के साथ
जीवन के हर पल को आपने व्यक्त किया जिन शब्दों में वह बहुत ही मुश्किल होता है, लेकिन ऐसे पलों का सामना जिन्दगी में अक्सर हो ही जाता है ।
वन्दनाजी अपने तो आँखें नम कर दी क्या कहूँ
जीवन के सगर मंथन मे नारी के हिस्से तो विश ही आया है
सब को सुख दे कर उसने खुद तो दुख ही पाया है
फिर उम्र के इस पडाव पर तो हर कोई पुरुश हो य नारी यही झेल रहे हैं बहुत मार्मिक पोस्ट है शुभकामनायें भगवान जरूर सुनेगा
कुछ सवाल आज भी यूँ ही खडे है। उन्हीं सवालों को शब्द दिये आपने। पर इन सवालों के जवाब कब मिलेंगे ये नही पता। वैसे इन्हीं सवालों मैने भी शब्द दिये थे एक तुकबंदी में।
jiwant prashn, bhavnaon ko moort roop de diya, vandana ji ,sadhuwaad.
एक सचको लिख दिया आपने ..पर अपनी पहचान खुद ही बनानी होगी
dhanyawaad aap sabka
magar kuch log ise mera dard samajh rahe hain jabki maine ismien ek aam aurat ke dard ko vyakat kiya hai .
bhagwan ki dua se meri zindagi khushhal hai........abhi wo mod meri zindagi mein nhi aaya hai.......use aane mein waqt hai abhi...............bas ek soonapan jo maine logon ki zindagi mein mehsoos kiya sirf unhein shabd diye hain aur mehsoos karne ki koshish ki hai.
आपने बेशक इसे दूसरे की जिन्दगी से पढ़ कर लिखा हो , एक हद तक सच भी है घर को जोड़े रखने वाली ही सबसे ज्यादा बर्दाश्त करती है , वो प्यार और जिम्मेदारी का अहसास भी तो उस के ही अस्तित्व की पहचान है | जो तब सिर्फ देना ही जानती थी आज पाने की गुहार क्यों लगाए ? सब्र का प्याला अगर खाली हो गया तो भटकाव के सिवा कुछ हासिल न होगा , हाँ पहचान बनाने के लिए पहले खुद को भी पहचानना होगा |
क्या आप मुझे ब्लॉग के साइड में ताजा टिप्पणियाँ जोड़ना सिखायेंगी , ले आउट में जाकर नेक्स्ट क्या करना होगा ?
thankyou
vandan , great writing .....shaandar ..
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