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बुधवार, 29 अप्रैल 2009

वो तुम ही तो हो

प्रेम सुधा बरसाने वाली
मन को मेरे हरषाने वाली
ख्वाबों में झलक दिखाने वाली
प्राणप्रिया बन जाने वाली
जीवनाधार बन जाने वाली
रूह में बस जाने वाली
बदली सी छा जाने वाली
मेघों सी बरस जाने वाली
खुशबू से जीवन महकाने वाली
मुझे मुझसे चुराने वाली
जीवन की प्यास बुझाने वाली
होठों पर गीत बन ढल जाने वाली
जीवन को महकाने वाली
प्रिये ,
वो तुम ही तो हो
चित्त को मेरे चुराने वाली
मेरी जीवनसंगिनी बन जाने वाली
वो तुम ही तो हो

रविवार, 26 अप्रैल 2009

दास्ताँ

इक दास्ताँ तू कह
इक दास्ताँ मैं कहूँ
फ़साना ख़ुद बन जाएगा
गर ना बना तो
ज़माना बना देगा
तेरी मेरी चाहत को
एक नया नाम दे देगा

इक कहानी तू बन जा
इक कहानी मैं बन जाऊँ
तारीख गवाही दे देगी
तेरी मेरी कहानी को
इक नया आयाम दे देगी

इक सवाल तू बन जा
इक सवाल मैं बन जाऊँ
हल तो मिल ही जाएगा
गर ना मिला तो
तेरे मेरे सवालों को
दुनिया मुकाम दे देगी

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

हर इंसान में है साहित्यकार छुपा

ये आसमान में उड़ने वाले
उन्मुक्त पंछी हैं
मत रोको इनकी उडान को
मत बांधो इनके पंखों को
बढ़ने दो इनकी परवाज़ को
फिर देखो इनकी उड़ान को
क्यूँ बांधते हो इन्हें
साहित्य के दायरों में
साहित्य तो ख़ुद बन जाएगा
एक बार उडान तो भरने दो
मत ललकारो प्रतिभावानों को
प्रतिभा स्वयं छलकती है
किसी भी साहित्य के दायरे में
प्रतिभा भला कब बंधती है
साहित्य भी कब बंधा है किसी दायरे में
हर इंसान में है साहित्य छुपा
जिसने भी रचना को रचा
वो ही है साहित्यकार बना
साहित्य ने कब बांधा किसी को
वो तो स्वयं शब्दों में बंधता है
शब्दों के गठजोड़ से ही तो
साहित्यकार जनमता है
हर लिखने वाला इंसान भी
बाँध रहा संसार को
वो भी तो साहित्यकार है
एक घर है परिवार है
इसलिए
मत रोको इनकी उडान को

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

अमिट छाप

मन के कोरे कागज़ पर तुम
एक कविता लिख दो
अपने प्यार का
एक दिया जला दो
मन को इक
दर्पण सा बना दो
जब भी झांको
अपनी ही छवि निहारो
ओ मेरे प्रियतम
मेरे मन को तुम
अपना मन बना लो
सोचूँ मैं, और
तुम उसे बता दो
मैं , मैं न रहूँ
तेरा ही प्रतिबिम्ब
बन जाऊँ
मन के कोरे कागज़ पर तुम
अपनी अमिट छाप लगा दो

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

दुनियादारी हर काम के बीच क्यूँ आ जाती है

दुनियादारी हर काम के बीच क्यूँ आ जाती है
कभी समाज के साथ
तो कभी हकीकत के साथ
कभी प्यार के साथ
तो कभी रुसवाई के साथ
दुनियादारी अपना रंग
दिखा ही जाती है
और हम दुनियादारी के
भंवर में फंसे
कभी ख़ुद को भुलाते हैं
कभी अपने प्यार को
कभी वादों को भुलाते हैं
तो कभी इरादों को
इस दुनियादारी के
अजीबो-गरीब रंगों में
कभी ख्वाबों को बुनते हैं
तो कभी उन्हें टूटते देखते हैं
कभी परम्पराओं के नाम पर
तो कभी रुढियों के नाम पर
कभी रिवाजों के नाम पर
तो कभी खोखले उसूलों के नाम पर
दुनियादारी हर बार
हर काम के बीच
इक दीवार बन ही जाती है
और हम न चाहते हुए भी
दुनियादारी निभाने को
मजबूर हो जाते हैं

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

क्षणिकाएं

मेरे इश्क की इम्तिहान तो देख
कितना टूटकर चाहा तुझे
कि तिनका तिनका बिखर गई


न कोई गिला है न कोई शिकवा है
बस तेरे आँगन की तुलसी बनने का इरादा है

तेरे आँगन में बसती है रूह हमारी
बस तेरे दिल में जगह पाने का इरादा है

तू जगह दिल में दे न दे शिकायत नही
बस हर शाम तेरे दीदार का इरादा है

तेरे आँगन में ही कब्र खुदी है हमारी
बस उसी में दफ़न होने का इरादा है







तेरी मोहब्बत को आवाज़ दूँ
आज तुझे तुझसे चुरा लूँ
तू मोहब्बत का बादल बन
मेरी कोरी चूनर को भिगो दे
मैं तेरी चकोरी बन
तुझे नैनों में छुपा लूँ

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

बस तू एक बार फिर से मुस्कुरा दे

सुनो
आज पहली बार मैंने
तुम्हें ज़िन्दगी से इतना
मायूस देखा
तुम्हारे दर्द के दर्द को
कहीं बहुत गहरे
महसूस किया
कितना टूट गए हो
कितना खामोश हो गए हो
तुम तो ऐसे न थे
ज़िन्दगी से भरपूर
हर वक्त चहकते
और चहकाते
कितने अच्छे लगते थे
तुम्हारा यूँ टूटना
उदासी के गहरे सागर में डूबना
कल की चिंता में
आज को बरबाद करना
दिल को बहुत
गहरे चुभ गया है
ज़िन्दगी से इतने गिले न करो
प्यार के दो पलों को
जीवन में संजो लो
ज़िन्दगी सिर्फ़ खामोशी नही
जिंदगी सिर्फ़ ख्वाब नही
ज़िन्दगी इक खुमार भी है
जिन्दी इक प्यार भी है
ज़िन्दगी ठंडी फुहार भी है
ज़िन्दगी खुशियों की सौगात भी है
कुछ गम अपने
बाँट लो मुझसे
कुछ दर्द अपना दे दो मुझे
देखना ज़िन्दगी का
हर लम्हा बदल जाएगा
तेरे दिल को भी
कुछ तो सुकून
मिल जाएगा
इतना तो अपनी
दोस्ती का हक़
दे दो मुझे
कुछ अपने दर्द को
जी लेने दो मुझे
बस तू एक बार मुस्कुरा दे
फिर से यूँ ही
चहकने लगे
और गुलिस्तां तेरा
महकने लगे
बस तू एक बार फिर से
मुस्कुरा दे

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

उसी का नाम दुनिया है

जो एक कली को फूल बना दे
और उसे ज़िन्दगी भर काँटों पर सुला दे
और चोट लगने पर आह भी करने न दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरे दुःख पर खुशियाँ मनाये
और सुख में बाधाएं डाले
उसी का नाम दुनिया है

जो तुझे बेईमानी,धोखेबाजी
चालबाजी,भ्रष्टाचार सिखा दे
तेरी मासूमियत को
इनके नीचे दबा दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरे होठों की हँसी को छीन ले
और आंखों में आंसू भर दे
उसी का नाम दुनिया है

जो जीतने का हर गुर सिखा दे
तुझे तेरे अपनों से जुदा करा दे
और गैरों को अपना बना दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरे अस्तित्व को मिटा दे
तेरे हर सच को झूठ बना दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरी खुशी को देख जल जाए
और गम में तेरे आंसू न बहाए
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरी मासूमियत को मिटा दे
तुझे इंसान से पत्थर बना दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरी हर चाहत को मिटटी में मिला दे
तेरे हर अरमान को कफ़न उढा दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तेरी हर साँस पर पहरे लगा दे
तेरी हर आह पर खुशी के दीप जलाये
उसी का नाम दुनिया है

जो अपने सुख के लिए
इंसान को भगवान बना दे
और अपने मतलब के लिए
भगवान को भी पत्थर बता दे
उसी का नाम दुनिया है

जो तुझे अपना बनाकर
ठोकरों पर इतनी ठोकरें मारे
कि तुझे भगवान से मिला दे
उसी का नाम दुनिया है

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

कैसे ?

कैसे आऊं
ख्यालों में तुम्हारे
ज़माना देख न ले
कैसे रहूँ
दिल में तुम्हारे
दिल सबसे कह न दे
कैसे जियूं
संग तुम्हारे
ज़िन्दगी धोखा न दे दे
कैसे चलूँ
साथ तुम्हारे
राहें बदल न जायें
कैसे कहूँ
दिल की बातें
जहान सुन न ले

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

मुसाफिर और स्टेशन

जिंदगियों की पटरियों पर
चलते चलते
न जाने कितने
स्टेशन आए
मगर ये न रुकी कहीं
हर स्टेशन पर
मुसाफिर बदले मगर
ये न बदली कभी
मुसाफिरों का साथ
बनता रहा,छूटता रहा
मगर न पता था
किसी एक स्टेशन पर
कहीं कोई मुसाफिर
किसी के इंतज़ार में
उम्र गुजार रहा था
जब मिले उस स्टेशन पर
यूँ लगा , वक्त थम गया
रूह का रूह से
अनोखा मिलन था
खामोश निगाहों से
बिना कुछ कहे
बातें हो गयीं
एक कसक दिल में लिए
मुसाफिर मिला
न जाने कितने जन्मों का प्यासा था
न जाने किस रूह को खोज रहा था
अपने हर जज़्बात को
वक्त की तराजू में
तोल रहा था
मगर वक्त कब ठहरा है
और ज़िन्दगी कब रुकी है
एक बार फिर
ज़िन्दगी दौड़ने लगी
पटरियों पर
मुसाफिर को
वहीँ छोड़कर
किसी खास याद के सहारे
फिर किसी और
स्टेशन पर
फिर किसी जनम में
मुलाक़ात का वादा करके
ज़िन्दगी ने मुसाफिर से
रुखसती ली
और ज़िन्दगी फिर से
अपनी अनजान
दिशा की ओर
स्टेशन पर स्टेशन
दौड़ते हुए
मुसाफिरों को
छोड़ते हुए
पटरियों पर दौड़ती रही

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

खुली किताब के अक्षर

खुली किताब के भी,अक्षर तो काले होते हैं
अक्षरों का कालापन ही ,ज़िन्दगी की गवाही देता है
हर काले अक्षर में
इक ख्वाब अधूरा दीखता है
कभी किसी अक्षर में
दिल से दिल मिलता है
किसी काले अक्षर में तो
तूफ़ान गुजरता दीखता है
हर अक्षर में किताब की
इक नई कहानी मिलती है
कभी अनकही,
कभी अधूरी,
कभी खामोश,
कभी मदहोश
इक रवानी छुपी दिखती है
कभी किसी अक्षर से
बेवफाई झलकती है
और किसी अक्षर से तो
तन्हाई ही टपकती है
इन अक्षरों में
दिल के कई राज़ छुपे मिलते हैं
ज़िन्दगी के हर पन्ने का
इक सच दिखाते फिरते हैं
अक्षर चाहे काले हों
आइना बन झलकते हैं
खुली किताब के भी
अक्षर तो काले होते हैं

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

दिल चाहता है

दिल चाहता है
शबनम का इक कतरा बन
तेरे अधरों पर सज जाऊं
तू मुझको ऐसे पी जाए
जन्मों की प्यास फिर बुझ जाए
दिल चाहता है
बादलों का काजल बन
तेरे नैनों में बस जाऊँ
तू मुझको ऐसे छुपा ले
दुनिया को भी न नज़र आऊं
दिल चाहता है
सीप का मोती बन
तेरे दिल में बस जाऊँ
मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
फिर तुझको भी न नज़र आऊं