इक दास्ताँ तू कह
इक दास्ताँ मैं कहूँ
फ़साना ख़ुद बन जाएगा
गर ना बना तो
ज़माना बना देगा
तेरी मेरी चाहत को
एक नया नाम दे देगा
इक कहानी तू बन जा
इक कहानी मैं बन जाऊँ
तारीख गवाही दे देगी
तेरी मेरी कहानी को
इक नया आयाम दे देगी
इक सवाल तू बन जा
इक सवाल मैं बन जाऊँ
हल तो मिल ही जाएगा
गर ना मिला तो
तेरे मेरे सवालों को
दुनिया मुकाम दे देगी
11 टिप्पणियां:
दास्ताँ, कहानी ओर सवाल तीनों का मेल बड़ा अच्छा लगा .
-विजय
फसाना खुद बन जायेगा
नहीं तो ज़माना बना देगा.........सही है,
बहुत अच्छी रचना
एक कहानी मैं बन जाऊँ।
एक कहानी तुम बन जाओ।।
मैं रच डालूँ गीत प्यार का।
तुम इसको निज स्वर में गाओ।।
bahut achchhi rachna ki hai aapne
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
इक दास्ताँ तू कह
इक दास्ताँ मैं कहूँ
फ़साना ख़ुद बन जाएगा
गर ना बना तो
ज़माना बना देगा
तेरी मेरी चाहत को
एक नया नाम दे देगा
सुन्दर रचना है.बधाई .
बेहतरीन। बीच वाली पंक्तियाँ अच्छी लगी। ये दुनिया हर चीज को एक नाम दे देती है।
अच्छी सोच।
वैसे इससे अच्छा होता कि दोनों एक दूसरे के सवालों का जवाब बन जाते।
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S.B.A.
TSALIIM.
पूरी कविता में कोशिशों की बात , अच्छे
अंजाम पर मुत्मइन बेफिक्र अंदाज़
.....अच्छे लगे !
नमस्कार वंदना जी बहुत खूब लिखती है ,कविता की भाषा बहुत ही साधारण है पर बहुत जान दार शुभ कामनाये ऐसे ही लिकते रहे और कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
बहुत सही फ़रमाया है आपने दास्ताँ कहने की देर जमाना अंजाम खुद दे देगा
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखी है
निरा
इंतज़ार भी अपने आप में कमाल का होता है,
वो जब आये सामने तो जुबान पे ताला होता है
कभी सोम-रस पे भी आयें और पढ़े
http://somadri.blogspot.com/2009/05/taj-or-tejo.html
http://som-ras.blogspot.com/2009/05/blog-post.html
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