मन की
विहंगम गलियाँ
और उसके
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए
वहाँ हम
तुझसे बतियाते हैं
और चले जाते हैं
फिर उन्ही गलियों के
किसी मोड़ पर
और खोजते हैं
उसमें खुद को
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
विहंगम गलियाँ
और उसके
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए
वहाँ हम
तुझसे बतियाते हैं
और चले जाते हैं
फिर उन्ही गलियों के
किसी मोड़ पर
और खोजते हैं
उसमें खुद को
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
22 टिप्पणियां:
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
भूलभुलैयों बहुत अच्छी लगीं - खोएं रहें - सुंदर रचना के लिए बधाई.
मन की गलियां दूर तक सैर कराती हैं
सुंदर पंक्तियों... के साथ बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
कविता मन को छू गई.....
रचना में अद्भुत ताज़गी है। एक अहसास और एकाकी ... एक अपना का संगम।
मन की
विहंगम गलियाँ
और उसके
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
बहुत अच्छी कविता।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सुन्दर कविता, वसंत पंचमी की शुभकामनाये !
मन की गलियों में भटकना ही तो ज़िन्दगी है
और चले जाते हैं
फिर उन्ही गलियों के
किसी मोड़ पर
और खोजते हैं
उसमें खुद को
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
yakeenan bahut sundar baat kahi hai apne .Badhai!!
wakai vandana ji...
bahut achha laga is bhool bhulaaiya mein kho kar...
ये मन की गलियां होती ही ऐसी हैं जहाँ इंसान खुद को खोजता रह जाता है....खूबसूरत लेखन....
सुंदर रचना
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये ओर बधाई आप को .
आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !
मन की विहंगम गलियाँ, ये भूल-भुलैयाँ, जहाँ खुद से भी मिलना संभव नहीं, जहाँ भटकाव ही भटकाव है, वहां किसी से कैसे मिलें ... सुन्दर है
पर आप खुद को मेरे ब्लॉग पर आसानी से खोज सकती हैं.. :)
-पीयूष
www.NaiNaveliMadhushala.com
अति सुन्दर रचना. अकेलेपन मे मह्सूस किया एक एह्सास. बहुत खूब, मन कि गलिंया.
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते
और मन की इन्ही गलियों के खुशनुमा अहसास जीने का संबल बन जाते हैं..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए
यही तो जीवन है!
इसी का नाम तो स्वर्ग है!
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए ...
ये बात तो सच है .... जीने के लिए ये सहारा बहुत है ....... अच्छा लिखा .......
man ki vihangam galian.........................ahsaas tere hone ka..........behatareen...........bahut umda abhivyakti.
bahut sundar kavita..sundar rachna..
aashu
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
बहुत सुन्दर
सारा खेल मन का ही तो है 1
dil ro baccha hai ji !! Gulzar saheb ki likhi yeh panktiyaan..sateek baith-ti hai..
एक टिप्पणी भेजें