वो रोज मुझे
ये कहता है
प्रेम वो मुझसे
करता है
मैं रोज उसे
ये कहती हूँ
प्रेम तो बस
इक धोखा है
वो रोज मुझे
समझाता है
प्रेम के पाठ
पढ़ाता है
मैं रोज उसे
बतलाती हूँ
ये प्रेम हवा का
झोंका है
जो आकर
गुजर जाता है
कभी ठहर कहीं
नहीं पाता है
ये प्रेम- प्यार
कुछ नही होता है
सिर्फ नज़रों का
ही धोखा है
वो प्रेम को
पूजा कहता है
और प्रेम की
अतल गहराइयों में
ही डूबा रहता है
बस प्रेम- प्रेम
पुकारा करता है
बावरा -सा जग में
घूमा करता है
मैं रोज उसे
समझाती हूँ
प्रेम सिर्फ कोरा
शब्द है यहाँ
कौन वहाँ तक
पहुंचा है
किसने प्रेम को
जाना है
महज शरीरों का
ये धोखा है
उसने इक ही
रटना लगायी है
प्रेम ही उसकी
आशनाई है
सिर्फ एक ही शब्द
तो सीखा है
प्रेम के अलावा
तो कुछ ना जाना है
अब कैसे उसे
समझाऊँ मैं
ये प्रेम डगरिया
बड़ी टेढ़ी है
पथरीले कंटक पथों
पर चलकर भी
प्रेमी कब मिल पाते हैं
विरह अगन में
ही जलते रहते हैं
और प्रेम- प्रेम ही
रटते रहते हैं
दूसरा शब्द तो
जाना ही नहीं
किसी और को तो
पहचाना ही नहीं
प्रेमी भ्रमर तू
मान भी जा अब
जान जाएगी
जान जा अब
मगर भ्रमर
कब सुनता है
अपनी धुन में
ही रहता है
प्रेम अगन में
जलता है
और पिहू -पिहू
कहता है
प्रेम की माला
जपता है
मेरी कुछ ना
सुनता है
वो अपनी धुन
में गाता है
बस प्रेम- प्रेम
दोहराता है
ये कैसा प्रेम
का पंछी है
ये कैसा प्रेम
का पंछी है..............
23 टिप्पणियां:
अब भला प्रेम में इतनी समझदारी कि बात होती हैं कभी ??
वो प्रेम को
पूजा कहता है
और प्रेम की
अतल गहराइयों में
ही डूबा रहता है
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ....अच्छी नज़्म
वो अपनी धुन
में गाता है
बस प्रेम- प्रेम
दोहराता है
प्रेम के पथ से प्रेम की मंजिल तक ही तो जायेगा
प्रेम पथिक है वह प्रेम के सिवा और क्या पायेगा
सुन्दर भावपूर्ण रचना , दोनों ही अपनी-अपने जगह सही है एकदम !
waah sundar geet
बहुत सुन्दर नज़्म
प्रेम करने वाला तो मन का मौजी है .. प्रेम का चितेर है .. वो तो प्रेम करेगा ... उसकी वो ही जाने ...
सुंदर भाव लिए है रचना ...
सुंदर सरल रचना । सीधी और सरल
इस "प्रेम" शब्द को शब्दों में ,
कौन कब कर सका परिभाषित,
जाने कितनों ने कितने जतन किए,
मगर कौन इसे कब समझ पाया ,
वो न जान सका जिसने खो दिया इसे,
वो भी ,जिसने इसको पाया ॥
जिसने देखा जिसा प्रेम को ,
उसने उसे वैसा ही बतलाया ॥
सुन्दर भाव लिये रचना..."
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ...... शुक्रिया
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय!
--
प्रेमी कब मिल पाते हैं
विरह अगन में
ही जलते रहते हैं
और प्रेम- प्रेम ही
रटते रहते हैं
दूसरा शब्द तो
जाना ही नहीं
किसी और को तो
पहचाना ही नहीं
--
आपने रचना को बहुत ही खूबसूरती से सँवारा है!
प्रेम को
पूजा कहता है
और प्रेम की
अतल गहराइयों में
ही डूबा रहता है
bahut khub
bahut sundar.....
प्रेम कि बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
yahi to prem hai...
bhut khub vandna ji yek behtreen rachna mere paas to shabd hi nahi hai mai to varma ji ki laayn dohtrata hun
प्रेम के पथ से प्रेम की मंजिल तक ही तो जायेगा
प्रेम पथिक है वह प्रेम के सिवा और क्या पायेगा
saadar
praveen pathik
9971969084
वो अपनी धुन
में गाता है
बस प्रेम- प्रेम
दोहराता है
ये कैसा प्रेम
का पंछी है
ये कैसा प्रेम
का पंछी है..............
बहुत सुन्दर ...बेहद उम्दा रचना ,,,तारीफ़ के काबिल ,,,शुरू से अंत तक बांधे रखा ...प्रेम पर कुछ हमारे यहाँ भी है सुझाव दे
Hi,
Tujhse prem jo karta etna,
usko kyon tum bahlate ho,
wo to prem, prem ratta hai,
kyon usko tum bharmate ho..
Dil main chah agar hai us se..
Uski baat bhi maano tum..
Na se haan ka meethapan..
Thoda to aakhir jaano tum..
Sundar kavita..
DEEPAK..
नदी की दो किनारों के तरह आप और आपका प्रेमी... आप यो ही मना करती रहेंगी... प्रेमी यो ही प्रेम करता रहेगा... ये नदी यो ही आगे बढती रहेगी... सुंदर रचना
सुन्दर सरल रचना, भावपूर्ण रचना ,
प्यासी निगाहो ने हर पल उनका दीदार मांग़ा
जैसे अमावस ने हर रात चाँद मांग़ा
रुठ गया वो खुदा भी हमसे
जब हमने अपनी हर दवा मे उनका साथ मांगा
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
प्रेम की शानदार अभिव्यक्ति।
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रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
बहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के...
ye panchhee hai hi bada ajeeb.
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