टुकड़ियों के सभी शब्द-चित्र बहुत असरदार हैं! -- दो अक्टूबर को जन्मे, दो भारत भाग्य विधाता। लालबहादुर-गांधी जी से, था जन-गण का नाता।। इनके चरणों में श्रद्धा से, मेरा मस्तक झुक जाता।।
बहुत सुन्दर टुकडियाँ ! अपने आप में सम्पूर्ण और फिर भी माला में गुंथे मोतियों की तरह ! अपना रकीब इन्साँ खुद होता है बाकी गैर मे इतनी जुर्रत कहाँ विशेष रूप से पसंद आयी ! अति सुन्दर !
वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है धन्यवाद .
वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है धन्यवाद .
वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है धन्यवाद .
kya kahun vandana .. bahut dino baad aisa kuch padhne ko mila hai .. amazing .. meri ek hi request hai ki , sabko long poems me convert karo .. wakayi shaanda poems ban jaayengi..
21 टिप्पणियां:
bahot hi bhavmayi post
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
किसी भी मोड से गुजरो
हादसे इंतज़ार मे होते हैं
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
टुकड़ियों के सभी शब्द-चित्र बहुत असरदार हैं!
--
दो अक्टूबर को जन्मे,
दो भारत भाग्य विधाता।
लालबहादुर-गांधी जी से,
था जन-गण का नाता।।
इनके चरणों में श्रद्धा से,
मेरा मस्तक झुक जाता।।
कभी लफ़्ज़ों की बनावट
चेहरा बन जाती है
और कभी
लफ़्ज़ चेहरे पर उतर आते हैं
प्रत्येक अपने आप में सम्पूर्ण
टुकड़ों में लिखी गई बेहरतरीन अभिव्यक्ति.. अलग अलग भाव लेकिन प्रेम और जीवन के सूत्र में बंधी हुई..
शानदार और खूबसूरत
bahut hi sundar abhiwayakti...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
सुंदर टुकडियां
बहुत सुन्दर टुकडियाँ ! अपने आप में सम्पूर्ण और फिर भी माला में गुंथे मोतियों की तरह !
अपना रकीब इन्साँ खुद होता है
बाकी गैर मे इतनी जुर्रत कहाँ
विशेष रूप से पसंद आयी ! अति सुन्दर !
bahot achchi lagi.
वाह..बढ़िया प्रस्तुति
छोटी छोटी रचनयें अच्छी लगीं ।
वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है
धन्यवाद .
वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है
धन्यवाद .
वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है
धन्यवाद .
दिल के छालों का
बीमा करा लेना
कहीं कोई आकर
नश्तर ना चुभा जाये
wah ji jakham ko naya andaaz de do jinda karne ke liye wohi jakham purane
kya kahun vandana ..
bahut dino baad aisa kuch padhne ko mila hai .. amazing .. meri ek hi request hai ki , sabko long poems me convert karo .. wakayi shaanda poems ban jaayengi..
just amazing ..
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