जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
बहता पानी
कब ठहरा है
किसी के लिए
प्रवाह कब रुके हैं
किसी के लिए
फिर चाहे
संवेदनाओं के हों
या आवेगों के
भावनाओं के हों
या संवेगों के
हर कोई
बह रहा है
फिर चाहे
वक्त ही
क्यूँ ना हो
कब किसके
लिए ठहरा है
तो फिर
कैसे तुमसे
उम्मीद करूँ
एक आस धरूँ
कि तुम
रुकोगे
मेरे लिए
26 टिप्पणियां:
वन्दना जी
.....संवेदनाओं को सुंदरता से अभिव्यक्त करती प्रभावशाली कविता।
कविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है
कोई नहीं रुकता किसी के लिए
उम्मीद नहीं
पर रुक के तो देखो
ज़िन्दगी एक मायने ले लेगी
न कुछ रुका है और न ही रुकेगा ...बहुत गहन बात कह दी है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
मन को समझाने के लिये यह एक प्रयास है अन्यथा प्रिय से अपेक्षाएं कहाँ मिटती हैं । इसलिये पीडा भी अन्तहीन होती है ।...खैर कविता अच्छी है ।
"कैसे तुमसे
उम्मीद करूँ
एक आस धरूँ
कि तुम
रुकोगे
मेरे लिए" वंदना जी भाव के प्रवाह की तरह बहती कविता मुझे भी बहा ले गई..जितनी कविता में है.. और जो कविता से परे है.. लेकिन कोई ना कोई रुकता है किसी ना किसी के लिए.. नदिया बाँधी नहीं जाती लेकिन कहीं कोई समंदर रुका तो रहता है नदी की आस में .. सुंदर कविता..फिर भी कविता में आशावाद डालिए..
bahut hi khubsurat rachna...
आप एक समर्थ सर्जक हैं। ........ कविता काफी अर्थपूर्ण है! बहुत अच्छी प्रस्तुति।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
फ़ुरसत में …बूट पॉलिश!, करते देखिए, “मनोज” पर, मनोज कुमार को!
बहुत सुंदर रचना मुदिता जी !
बधाई !
जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
यह प्रवाह रूके न रूके पर संग तो ले चले.
सुन्दर रचना
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी
सुन्दर रचना ! जीवन का सत्य है बहाव ... सैल !
सच है .. कोई किसी के लिए नही रुकता ... विरले ही होते हैं जो ऐसा करते हैं ...
सच है .. कोई किसी के लिए नही रुकता ... विरले ही होते हैं जो ऐसा करते हैं .
जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
बहता पानी
कब ठहरा है
किसी के लिए
प्रवाह कब रुके हैं
किसी के लिए..
--
जमीन से जुड़ी इस शाश्वत रचना के लिए
बधाई स्वीकार करें!
आस रहेगी, प्यास रहेगी।
आ जाना तुम, साँस रहेगी।
साथ साथ बहो
तो
पा ही लेंगे
मंजिल
जो ठहर गए
एक जगह
तो सड़
जाएंगे ।
आपने बिल्कुल सत्य कहा है कोई किसी के लिए नहीं रुकता |अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई |
आशा
बहुत खूब .....!!
पानी अगर बहे नहीं तो सड़ने लगता है
मैं सदना नहीं चाहती
बहना चाहती हूँ ...
सरल...निश्छल ....निर्मल .....
अच्छी रचना ।
सच है ,कोई किसी के लिये नहीं रुकता ।
सच है ,कोई किसी के लिये नहीं रुकता ।
बहुत शानदार!
जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
बहता पानी
कब ठहरा है
किसी के लिए
प्रवाह कब रुके हैं
किसी के लिए..
ये तो सच है कोई नही रुकता किसी के लिए
ये ही होता है
बहुत सही कहा आपने
vandana
ek dard ubhar kar aaya hai , antim panktiyo me ... bahut hi prabhaavshaali .. ek seedhi sacchi baat kah di aapne .. lekin kuch prem aise bhi hote hai ..jo rukte hai kabhi kabhi ,.umr bhar...
लगता है इस खूबसूरत रचना मैंने लिखी हो ....वेदना का कौन समझना चाहता है ...?
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