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रविवार, 11 सितंबर 2011

महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो

 महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है  हम से ही कतराने लगे हैं वो

आशियाना नया बनाने लगे हैं वो
सुना है दहलीज को सजाने लगे हैं वो

चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
शायद नयी रौशनी लाने लगे हैं वो

गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो

सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो

नए तरन्नुम में गाने लगे हैं वो
सुना है मौसम को बहलाने लगे हैं वो

36 टिप्‍पणियां:

Dr Varsha Singh ने कहा…

गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो

वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !.

महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो

मतला तो बहुत ही खूबसूरत है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत है ..सब खबर रखी जाती है ..

जासूसी को मेरी आजमाने लगें हैं वो
हम पर ही कहर ढाने लगे हैं वो .

ZEAL ने कहा…

अपने ही कतराने लगते हैं...

Rajesh Kumari ने कहा…

vaah ....mahfile alag jamaane lage hain vo..bahut khoob.achchi ghazal.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सब समझकर मौन हैं वो।
क्या कहे अब कौन हैं वो।।
--
सुन्दर रचना!

Suresh kumar ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत कविता ....

रविकर ने कहा…

अब इसीलिए ये छलिये
बाँध कर रखे जाने लगे हैं ||

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई वंदना जी ||

shikha varshney ने कहा…

kya baat hai :):)

Amrita Tanmay ने कहा…

बेहतरीन रचना के लिए आभार |

Arunesh c dave ने कहा…

जो जाने की ठान ले न संबंधो का भान ले

सो जाना ही उनका ठीक पराये न रहे नजदीक

अशोक सलूजा ने कहा…

नज़रे मुझ से चुराने लगे हैं वो
सब्र मेरा आज़माने लगे हैं वो |
(गुस्‍ताख़ी माफ़)
बहुत अच्छे!
शुभकामनायें !

vijay kumar sappatti ने कहा…

sahi likha hai ji ..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
... badhiya , bahut hi badhiya

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन रचना....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

गज़ल का हर शेर खूबसूरत.शानदार गज़ल.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत ख़ूब! बेहतरीन!!

Unknown ने कहा…

गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो


बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई वंदना जी

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बढ़िया... वाह वाह...
सादर...

सदा ने कहा…

वाह ..बहुत ही बढि़या ।

Anita ने कहा…

वाह ! बहुत सुंदर रचना !
इशारों में धमकाने लगे हैं वो...बिना बात खिलखिलाने लगे हैं वो..

बेनामी ने कहा…

सुभानाल्लाह ये अंदाज़ बहुत पसंद आया वंदना जी .......खुबसूरत ग़ज़ल|

वाणी गीत ने कहा…

किसने की है ऐसी जुर्रत :)
बड़ा प्यारा सा गुस्सा और शिकायत ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बड़ी खूबसूरती से शब्द दिए...सुन्दर भाव..बधाई.

Pallavi saxena ने कहा…

वाह बहुत ख़ूब ....

Latest Bollywood News ने कहा…

really very Nice thoughts our Team Like this.

Regards Team Bollywood-4u.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े भोलेपन से उलाहना दी है।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

hmse hi ktrane lge hain vo.
bhut acha.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

वंदना जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Akhil ने कहा…

bahut khoob

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

aaafareen Vandna jii

कुमार राधारमण ने कहा…

कुछ गड़बड़ लगता है।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

वाह,नए अंदाज़ की रचना पसंद आई.


हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Ankit pandey ने कहा…

एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
शायद नई रौशनी लाने लगे हैं वो .....

वंदना जी कौन है ये मुआ ....?
गैरों पे करम अपनों पे सितम ....???

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सब समझकर मौन हैं वो।
क्या कहे अब कौन हैं वो।।
--
सुन्दर रचना!

Rakesh Kumar ने कहा…

महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो

क्या कर लेंगें वे कतरा कर.

आप तो आप ही हैं.

आपके बिना कोई महफ़िल सज ही
नहीं पायेगी उनकी.