महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो
आशियाना नया बनाने लगे हैं वो
सुना है दहलीज को सजाने लगे हैं वो
चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
शायद नयी रौशनी लाने लगे हैं वो
गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
नए तरन्नुम में गाने लगे हैं वो
सुना है मौसम को बहलाने लगे हैं वो
सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो
आशियाना नया बनाने लगे हैं वो
सुना है दहलीज को सजाने लगे हैं वो
चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
शायद नयी रौशनी लाने लगे हैं वो
गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
नए तरन्नुम में गाने लगे हैं वो
सुना है मौसम को बहलाने लगे हैं वो
36 टिप्पणियां:
गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !.
महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो
मतला तो बहुत ही खूबसूरत है!
:):) ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत है ..सब खबर रखी जाती है ..
जासूसी को मेरी आजमाने लगें हैं वो
हम पर ही कहर ढाने लगे हैं वो .
अपने ही कतराने लगते हैं...
vaah ....mahfile alag jamaane lage hain vo..bahut khoob.achchi ghazal.
सब समझकर मौन हैं वो।
क्या कहे अब कौन हैं वो।।
--
सुन्दर रचना!
बहुत ही खुबसूरत कविता ....
अब इसीलिए ये छलिये
बाँध कर रखे जाने लगे हैं ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई वंदना जी ||
kya baat hai :):)
बेहतरीन रचना के लिए आभार |
जो जाने की ठान ले न संबंधो का भान ले
सो जाना ही उनका ठीक पराये न रहे नजदीक
नज़रे मुझ से चुराने लगे हैं वो
सब्र मेरा आज़माने लगे हैं वो |
(गुस्ताख़ी माफ़)
बहुत अच्छे!
शुभकामनायें !
sahi likha hai ji ..
गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
... badhiya , bahut hi badhiya
बेहतरीन रचना....
गज़ल का हर शेर खूबसूरत.शानदार गज़ल.
बहुत ख़ूब! बेहतरीन!!
गृहप्रवेश की रस्में निभाने लगे हैं वो
सुना है गैर के घर जाने लगे हैं वो
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई वंदना जी
बढ़िया... वाह वाह...
सादर...
वाह ..बहुत ही बढि़या ।
वाह ! बहुत सुंदर रचना !
इशारों में धमकाने लगे हैं वो...बिना बात खिलखिलाने लगे हैं वो..
सुभानाल्लाह ये अंदाज़ बहुत पसंद आया वंदना जी .......खुबसूरत ग़ज़ल|
किसने की है ऐसी जुर्रत :)
बड़ा प्यारा सा गुस्सा और शिकायत ...
बड़ी खूबसूरती से शब्द दिए...सुन्दर भाव..बधाई.
वाह बहुत ख़ूब ....
really very Nice thoughts our Team Like this.
Regards Team Bollywood-4u.com
बड़े भोलेपन से उलाहना दी है।
hmse hi ktrane lge hain vo.
bhut acha.
वंदना जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति
bahut khoob
aaafareen Vandna jii
कुछ गड़बड़ लगता है।
वाह,नए अंदाज़ की रचना पसंद आई.
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.
चौखट पर तेल चुआने लगे हैं वो
शायद नई रौशनी लाने लगे हैं वो .....
वंदना जी कौन है ये मुआ ....?
गैरों पे करम अपनों पे सितम ....???
सब समझकर मौन हैं वो।
क्या कहे अब कौन हैं वो।।
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सुन्दर रचना!
महफिलें अलग ज़माने लगे हैं वो
सुना है हम से ही कतराने लगे हैं वो
क्या कर लेंगें वे कतरा कर.
आप तो आप ही हैं.
आपके बिना कोई महफ़िल सज ही
नहीं पायेगी उनकी.
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