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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

तुम लम्हा हो कि खामोशी ???

तुम लम्हा हो कि खामोशी पूछ लिया जब उसने 

दर्दे दिल भी मुस्कुराकर सिमट गया खुद मे 

ढूँढती हूँ खुद मे लम्हों का सफ़र 

बूझती हूँ खुद से खामोशी का कहर

ना लम्हा किसी हद मे सिमट पाया 

ना खामोशी किसी ओट मे छिप पायी

अब खुद को खामोशी कहूँ या लम्हा 

ज़रा कोई उनसे ही पूछकर बतला दे 

कैसे लम्हे खामोशी का ज़हर पीते हैं

कैसे खामोशी लम्हों मे पलती है


कोई जुदा करके बतला दे ………यारा!!!!

12 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर है पोस्ट।

सदा ने कहा…

वाह .... बहुत खूब कहा है आपने

मनोज कुमार ने कहा…

खामोशी की आवाज़ को आपने बेहतरीन ढंग से इस रचना में समाया है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

लम्हा हो या ख़ामोशी ... इस शीर्षक ने ही बाँध लिया

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

ज़रा कोई उनसे ही पूछ कर बतला दे ....
कैसे ,लम्हे खामोशी का ज़हर पीते हैं ?
कैसे खामोशी लम्हों मे पलती है ?
कोई जुदा करके बतला दे ………यारा!!!!
ये फ़लसफा मुझे भी कोई बतला दे ………यारा!!!!

N Quamar ने कहा…

Sunder Rachna..Bhavnao se bhari aur saada.. Behad Umda!!

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता |नमस्ते वंदना जी

Kailash Sharma ने कहा…

कैसे लम्हे खामोशी का ज़हर पीते हैं

कैसे खामोशी लम्हों मे पलती है

कोई जुदा करके बतला दे ………यारा!!!!

.....बहुत खूब!बहुत भावमयी प्रस्तुति...

बेनामी ने कहा…

शानदार और बेहतरीन।

Vinay ने कहा…

हृदयस्पर्शी

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3. गुलाबी कोंपलें

अजय कुमार ने कहा…

khaamoshee aur lamhaa , sundar bhaav achchhee prastuti

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समय जीवन्त हो हमसे बातें करने लगता है।