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मंगलवार, 7 अगस्त 2012

काव्य पाठ हो या नारी जीवन

 दोस्तों
 डायलाग मे कविता पाठ करना है जब अंजू जी ने बताया तो समझ नही आया कि कैसे करूँगी क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा मौका आया ही नही था । ये भी नही पता था कि कैसे किया जाता है और इसी उधेडबुन का नतीजा निकला कि ये कविता बन गयी तो सोचने लगी इसे प्रस्तुत करूँ या नही तभी अरुण जी से बात हुई और उन्हें बताया और कविता दिखाई तो बोले कि सबसे पहले यही कविता सुनाना तो थोडा हौसला बढा और आखिरकार डरते डरते पहले कविता पाठ की पहली कविता प्रस्तुत कर ही दी जो अब आपके सम्मुख है …




मुझे नहीं आता
काव्य पाठ करना
ज़िन्दगी भर लिखती ही तो रही
कहाँ रुकना है
कहाँ चलना है
कहाँ वेदना का स्वर देना है
कहाँ आश्चर्य व्यक्त करना है
कहाँ शब्दों को बार बार
दोहराना है
कुछ भी तो नहीं जानती
कभी सोचा जो नहीं इस बारे में
शायद तभी कोई फर्क नहीं है
नारी के जीवन और कर्म में
ऐसे ही तो जी जाती है
वो जीवन को
दे देती है गति अपने कर्म को
कर देती है निर्माण
नवीन स्तंभों का
मगर नहीं जानती
कहाँ रुकना था
और कहाँ चलना था
क्या छुपाना  था
और क्या व्यक्त करना था
क्या दोहराना था
और कहाँ चुप रहना था
नहीं जानती वो ये सब
सिर्फ अपने जीवन की भट्टी में
संघर्ष , सहनशक्ति, आत्मीयता के
तवे पर सिर्फ कर्म की रोटियां सेंकती है
और परोस देती है बिना जलाये
भर देती है पेट सबका
स्व का अर्पण करके
होम कर देती है जीवन अपना
सिर्फ एक निश्छल मुस्कान के लिए
कर्म की ऐसी निश्छल पावनता की प्रतिमूर्ति
सिर्फ नारी में ही तो हो सकता है
शायद तभी
काव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं

23 टिप्‍पणियां:

kunwarji's ने कहा…

असमंजस से उपजी एक गहन भावधारा,एक उत्तम कविता!

कुँवर जी,

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इस साम्यता को कितनी गूढता से आपने सोचा है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शायद तभी
काव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं

बहुत खूब .... सटीक विचार

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं...बहुत सुन्दर रचना है...बधाई स्वीकारें।

सदा ने कहा…

क्‍या बात है :) आपने तो इस काव्‍य पाठ के जरिये नारी जीवन को ही इतनी खूबसूरती से व्‍यक्‍त कर दिया .. आपकी लेखनी को नमन ... बहुत ही अच्‍छा लिखती हैं आप

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग

जीवन विचार
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

वाणी गीत ने कहा…

जीवन की भट्टी में कर्म की रोटी पकती स्त्रियाँ ...
उनकी यही निश्छलता इस सृष्टि का आधार है !
बहुत बढ़िया !

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

काव्य पाठ की कोशिश एक सुन्दर रचना को जन्म दे गई, बहुत सुन्दर, बधाई.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन या कविता, दोनों में प्रवाह आवश्यक है।

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित ...

Vinay ने कहा…

प्रभावशाली

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Mamta Bajpai ने कहा…

नारी मन को उतार दिया पन्नों पर एक एक भाव बिखर गया शब्द बन कर ..इस अद्भुत प्रस्तुति के लिए बधाई

Mamta Bajpai ने कहा…

नारी मन को उतार दिया पन्नों पर एक एक भाव बिखर गया शब्द बन कर ..इस अद्भुत प्रस्तुति के लिए बधाई

Rakesh Kumar ने कहा…

बिना आये ही आपने इतना सुन्दर
काव्य पाठ कर दिया... कमाल है.

आप वाकई में प्रतिभावान कवियत्री हैं,वन्दना जी.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

उत्कृष्ट...... प्रवाहमयी भाव ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आवाज स्पष्ट नहीं सुनाई दी! बधाई स्वीकार करें!

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दरं अंदाज़ में लिखी अनुपम रचना..बधाई..वंदना जी..

Kailash Sharma ने कहा…

शायद तभी
काव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं

....बहुत खूब..सटीक और सुन्दर प्रस्तुति..

Anita ने कहा…

वाह वन्दना जी, समस्या का समाधान इतने सुंदर ढंग से...बधाई!

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' ने कहा…

कविता स्वरूपा नारी...

मनोज कुमार ने कहा…

विचारोत्तेजक।

अजय कुमार ने कहा…

असमंजस की स्थिति की सुंदर प्रस्तुति

Pallavi saxena ने कहा…

अतिम पंक्तियों ने कमाल कर दिया यही सच है बहुत खूब सटीक बात कहती खूबसूरत रचना...