एक और दिन गुज़र गया
क्या कहूँ इसे
कम हो गया ज़िन्दगी से
या मौत से इश्क फ़रमाने
की दिशा में बढ गया
अरे रे रे ………
इसे निराशा मत कहना
हताशा मत कहना
ज्ञानोदय मत कहना
जीवन दर्शन है ये तो
आशा निराशा से परे
मझधार में चलती कश्ती का
किनारे की तरफ़ प्रवाह
कभी नैराश्य की ओर नहीं धकेलता
यही है सत्य ………यही है सत्य
आवागमन का
फिर चाहे दिवस हो या ज़िन्दगी
अवसान तो होना ही है …………
क्या कहूँ इसे
कम हो गया ज़िन्दगी से
या मौत से इश्क फ़रमाने
की दिशा में बढ गया
अरे रे रे ………
इसे निराशा मत कहना
हताशा मत कहना
ज्ञानोदय मत कहना
जीवन दर्शन है ये तो
आशा निराशा से परे
मझधार में चलती कश्ती का
किनारे की तरफ़ प्रवाह
कभी नैराश्य की ओर नहीं धकेलता
यही है सत्य ………यही है सत्य
आवागमन का
फिर चाहे दिवस हो या ज़िन्दगी
अवसान तो होना ही है …………
12 टिप्पणियां:
फिर चाहे दिवस हो या ज़िन्दगी
अवसान तो होना ही है ……
सार्थक बात कही आपने सहज भावों वाली सुंदर कविता....वन्दना जी
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति
@ संजय भास्कर
बहुत बढ़िया..
बहुत सही बात कही है आपने . भावनात्मक अभिव्यक्ति बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
गूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना .....
हर प्रकृतिजनित जीवन ढलता,
तब रात ढली, अब दिन ढलता।
वाह! बहुत सुन्दर...
जब आये हैं तो जाना है,
कब अपना यहाँ ठिकाना है.
उदय और अवसान तो कुदरत का नियम है!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
युगों का अवसान हुआ
पर ............ अवसान के आगे हमेशा उदय है
वाह ! सरल सहज शब्दों में जीवन का सत्य..
अभिव्यक्ति को शब्द दे दिए गए हैं ....
एक टिप्पणी भेजें