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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

डायलाग की एक शाम बेटियों के नाम

दोस्तों



23 फ़रवरी की शाम एक यादगार शाम बन गयी जब मिथिलेश श्रीवास्तव जी ने बेटियों के प्रति बढ रही असंवेदनशीलता के प्रति एक जागरुकता का आहवान किया और एकेडमी आफ़ लिटरेचर एंड फ़ाइन आर्टस के अंतर्गत "डायलाग" के माध्यम से सुप्रसिद्ध कवि और आल इंडिया रेडियो के निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई जी , श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी , अंजू शर्मा जी के साथ लगभग 25 कवियों को इस आहवान में शामिल किया और बेटियों के प्रति कौन क्या महसूसता है उन भावनाओं को व्यक्त करने को मंच प्रदान किया । 



इस कार्यक्रम के अंतर्गत सुधा उपाध्याय के द्वारा संचालित मंच पर महाकवि निराला की कविता 'सरोज-स्मृति' का पाठ कवि लीलाधर मंडलोई जी ने किया।कात्यायनी की कविता 'हॉकी खेलती लडकियां' का पाठ करेंगे लक्ष्मी शंकर वाजपेयी और चंद्रकांत देवताले की कविता 'दो लड़कियों का पिता होने से' का पाठ अंजू शर्मा ने किया जिसमें वहाँ उपस्थित हर श्रोता और वक्ता डूब गया।

उसके बाद वहाँ उपस्थित सभी कवियों ने अपनी अपनी वाणी के माध्यम से अपने उदगार प्रस्तुत किये जिसमें शामिल थे ………भावना चौहान,शारिक असिर , शोभा मित्तल, शोभा मिश्रा, राजेश्वर वशिष्ठ, उमा शंकर, शशि श्रीवास्तव, सुधा उपाध्याय, अंजू शर्मा, मिथिलेश श्रीवास्तव, ममता किरन, अजय अज्ञात, उपेन्द्र कुमार, विभा शर्मा, भरत तिवारी,विनोद कुमार, अर्चना त्रिपाठी ,विपिन चौधरी, रूपा सिंह ,ओमलता,अर्चना गुप्ता, संगीता शर्मा और मैं यानि वन्दना गुप्ता सहित काफ़ी कवियों ने कविता पाठ के माध्यम से अपने अपने विचार व्यक्त किये। कुछ नाम याद ना रहने की वजह से छूट रहे हैं उसके लिये माफ़ी चाहती हूँ और काफ़ी लोग आये भी नही थे जिनके नाम शामिल थे । इस प्रकार एक यादगार शाम ने ये सोचने को मजबूर कर दिया कि बेटियों का हमारे जीवन मे क्या महत्व है और आम जन बेटियों के प्रति कितना संवेदनशील है और इस तरह के आयोजन समाज की जागरुकता के लिये होते रहना एक स्वस्थ संकेत हैं ।ना जाने कैसे ये कह दिया गया कि लेखक समाज दामिनी के प्रति हुई क्रूरता के प्रति अपनी संवेदनायें प्रकट करने इंडिया गेट आदि जगहों पर नहीं पहुँचा । शायद उन्होने फ़ेसबुक और ब्लोग आदि पर नज़र नहीं डाली जहाँ दिन रात सिर्फ़ और सिर्फ़ दामिनी के प्रति हुयी क्रूरता पर आक्रोश उबल रहा था और यहाँ तक कि किसी ने नववर्ष की शुभकामनायें भी देना उचित नहीं समझा तो कैसे कह दें बेटियों के प्रति असंवेदनशील है ये समाज या इस समाज का लेखक । यदि उसकी एक झलक देखनी होती तो कल का ये कार्यक्रम अपने आप में पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता है और समाज मे एक संदेश भी प्रसारित करता है। 

इन सबके अलावा काफ़ी मित्रगण भी वहाँ उपस्थित थे जैसे अमित आनन्द पाण्डेय, निरुपमा सिंह, सुशील क्रिश्नेट, विनोद पाराशर जी , जितेन्द्र कुमार पाण्डेय आदि और भी बहुत से मित्रगण जिन्होने अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर ये साबित किया कि कितने जागरुक हैं आज के सरोकारों के प्रति।

इस कार्यक्रम की सबसे बडी उपलब्धि ये है कि इसे मीडिया कवरेज भी मिला और आज के हिन्दुस्तान के पेज पाँच पर पूरा एक आर्टिकल चित्र के साथ उपस्थित है जो दर्शा रहा है कि 

पहुँचती है आवाज़ स्वरभेदी दीवारों के पार भी

गर प्यार से दस्तक तो दे कोई 




अंत में अपने अध्यक्षीय भाषण से लीलाधर मंडलोई जी ने कविता कैसे लिखी जाये , कैसे आत्मसात की जाये और फिर कैसे पढी जाये ताकि सामने वाले के दिल में सीधे उतर जाये के बारे में वहाँ उपस्थित सभी कवियों और श्रोताओं  का ज्ञानवर्धन किया और बेटियों के प्रति हो रही असंवेदनशीलता पर अपनी कविता सुनाकर कार्यक्रम को समापन की ओर ले गये। उसके बाद जलपान करके सबने आपस मे एक दूसरे को अपना परिचय दिया और इस प्रकार एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में एक यादगार शाम का समापन हुआ ।



ये है हिन्दुस्तान मे छपी तस्वीर


सुधा उपाध्याय कार्यक्रम का संचालन करती हुई 


लीलाधर मंडलोई जी कविता पाठ करते हुये 


श्रोता सुनते हुये 
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी कविता पाठ करते हुये 

विभा जी
अंजू शर्मा चन्द्रकांत देवताले की कविता का पाठ करती हुई

रूपा सिंह वक्तव्य के साथ कविता पाठ करती हुई
मिथिलेश श्रीवास्तव कविता पाठ करते हुये 

शोभा मिश्रा कविता पाठ करते हुये 



हमें भी मौका मिला तो हमने भी अपनी बात कह ही दी …………पहचान मे आने की गारंटी नहीं………अरे भाई उम्र का तकाज़ा है …………फ़ोंट छोटे थे तो पढने को आँखों पर आँखें चढानी पडीं 

पहचान तो लिया ना :)






विपिन चौधरी कविता पाठ करती हुई








अर्चना त्रिपाठी जी कविता पाठ करती हुयी
शोभा मित्तल कविता पाठ करते हुये 



अर्चना

श्रोता सुनते हुये 

संगीता श्रीवास्तव जी 

मौका था तो कैसे चूकते इसलिये बहती गंगा में हमने भी हाथ धो लिये और एक फ़ोटो लीलाधर मंडलोई जी के साथ खिंचवा ली ………यादों की धरोहर बनाकर 
ये देखिये अंदाज़ खाने पीने का शोभा मिश्रा और निरुपमा का :) 

और ये शाम की आखिरी याद कैमरे मे समेट ली 


जिनके नाम याद नहीं उनके नही दिये और कुछ फ़ोटो सही नहीं आये तो वो नहीं लगाये इसलिये कुछ लोग छूट गये हैं :) …………अगली पोस्ट मे उस कविता का जिक्र करेंगे जो कविता पाठ हमने किया था ……झेलने को तैयार रहियेगा 

9 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बाहर बधाई वंदना जी ...
सार्थक ओर सामाजिक विषय पे ऐसे पाठ जरूर होने चाहियें समाज में चेतना फैलाने के लिए ...
सभी फोटो लाजवाब ...

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

ऐसे प्रयास दिल्ली में भी होने चाहियें | उम्मीद करता हूँ जल्दी ही ये सपना पूरा हो | आपको बहुत बहुत बधाई | सादर


Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Shalini kaushik ने कहा…

hardik shubhkamnayen vandna ji .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आवाज निश्चय ही पहुँचेगी..

Shekhar Suman ने कहा…

अच्छा लगा देखकर... ऐसी चीजें ज़रूरी है बदलाव लाने के लिए...

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

बधाई जी।

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यक्रम तो हमेशा होने चाहिए और इसकी रिपोर्ट भी आनी चाहिए। अच्छा लगा कि समाचार पत्र ने भी कार्यक्रम के प्रति न्याय किया है। खैर आपने तो किया ही है।

बहुत बढिया

Rajendra kumar ने कहा…

ऐसे प्रयास हर जगह होने चाहिए,बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

bahut badiya reporting vandan